कानून: सुप्रीम फैसला धन शोधन केस में अदालत के संज्ञान लेने के बाद ईडी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकता
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा कि धन शोधन मामलों में प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर विशेष कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद जांच एजेंसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती।
नई दिल्ली, 16 मई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा कि धन शोधन मामलों में प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर विशेष कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद जांच एजेंसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि यदि ऐसे मामलों में आगे जांच के लिए आरोपी की हिरासत जरूरी है तो ईडी को इसके लिए विशेष अदालत में आवेदन देना होगा। पीठ में उज्जल भुयान भी शामिल थे।
शीर्ष अदालत ने कहा, "आरोपी का पक्ष सुनने के बाद विशेष अदालत को संक्षेप में कारण बताते हुए आवेदन पर अनिवार्य रूप से फैसला सुनाना होगा। सुनवाई के बाद अदालत हिरासत की अनुमति तभी देगी जब वह इस बात से संतुष्ट हो कि हिरासत में रखकर पूछताछ जरूरी है।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत में जिस व्यक्ति को आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है उसे गिरफ्तार करने के लिए ईडी को धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए), 2002 की धारा 19 की शर्तों को पूरा करना होगा।
इसके अलावा, जिस व्यक्ति को धन शोधन मामले की जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया है, लेकिन वह धन शोधन कानून के तहत जारी समन पर विशेष अदालत के समक्ष उपस्थित होता है, उसकी जमानत के लिए कड़ी दोहरी शर्त की अनिवार्यता नहीं होगी।
पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत पाने के लिए दोहरी शर्त की अनिवार्यता है। इसमें पहली शर्त यह है कि अदालत इस बात को लेकर आश्वस्त हो कि आरोपी दोषी नहीं है। दूसरी शर्त यह है कि अदालत को यह भरोसा हो कि आरोपी जमानत पर कोई अपराध नहीं करेगा।
न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन और एस.के. कौल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने जमानत के लिए दो अतिरिक्त शर्त जोड़ने वाली पीएमएलए की धारा 45(1) को मनमाना बताते हुए नवंबर 2017 में रद्द कर दिया था।
हालांकि, विजय मदनलाल चौधरी मामले में न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी.टी. रविकुमार की तीन जजों की खंडपीठ ने जुलाई 2022 में उस फैसले के पलटते हुए पीएमएलए, 2002 में वर्ष 2019 के संशोधनों को उचित ठहराया था। इसके बाद धन शोधन के मामलों में जमानत पाना लगभग असंभव हो गया था क्योंकि आरोपी को अपराधी साबित करने की जिम्मेदारी ईडी पर होने की बजाय खुद को निरपराध साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर डाल दी गई थी।
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ दो प्रमुख कारणों से पीएमएलए के प्रावधानों की समीक्षा के लिए सहमत हुई थी - पहला कि इसमें आरोपी को गिरफ्तारी के समय ईसीआईआर (आम मामलों में एफआईआर के समान) की कॉपी नहीं दी जाती, और दूसरा कि इसमें आरोप साबित होने तक निरपराध मानने के सिद्धांत से समझौता किया गया है।
पिछले साल नवंबर में न्यायमूर्ति एस.के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले ईडी की शक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का आदेश दिया था ताकि वह सुनवाई के लिए नई खंडपीठ को जिम्मेदारी सौंप सकें।
अस्वीकरण: यह न्यूज़ ऑटो फ़ीड्स द्वारा स्वतः प्रकाशित हुई खबर है। इस न्यूज़ में BhaskarHindi.com टीम के द्वारा किसी भी तरह का कोई बदलाव या परिवर्तन (एडिटिंग) नहीं किया गया है| इस न्यूज की एवं न्यूज में उपयोग में ली गई सामग्रियों की सम्पूर्ण जवाबदारी केवल और केवल न्यूज़ एजेंसी की है एवं इस न्यूज में दी गई जानकारी का उपयोग करने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों (वकील / इंजीनियर / ज्योतिष / वास्तुशास्त्री / डॉक्टर / न्यूज़ एजेंसी / अन्य विषय एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें। अतः संबंधित खबर एवं उपयोग में लिए गए टेक्स्ट मैटर, फोटो, विडियो एवं ऑडिओ को लेकर BhaskarHindi.com न्यूज पोर्टल की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है|