लोकसभा चुनाव 2024: कोसी की तरह बदलती सुपौल की सियासी धारा में क्या जलेगी 'लालटेन' ?

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के बाद राजनीतिक दलों ने तीसरे चरण के चुनावी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। ऐसे में कोसी क्षेत्र की सुपौल सीट पर भी सरगर्मियां तेज हो गई हैं।

IANS News
Update: 2024-05-04 08:05 GMT

सुपौल, 4 मई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के बाद राजनीतिक दलों ने तीसरे चरण के चुनावी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। ऐसे में कोसी क्षेत्र की सुपौल सीट पर भी सरगर्मियां तेज हो गई हैं।

सुपौल के मध्य से गुजरने वाली कोसी की धारा की तरह यहां की सियासी धारा भी बदलती रही है। लेकिन, इस क्षेत्र से अब तक राजद नहीं जीत सकी है। इस सीट में एक बार फिर निवर्तमान सांसद जदयू के दिलेश्वर कामत चुनावी मैदान में हैं, जिनका मुकाबला राजद के चंद्रहास चौपाल से है।

पिछले लोकसभा चुनाव में जद (यू) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे दिलेश्वर ने रंजीत रंजन को कड़ी शिकस्त दी थी। इस बार दिलेश्वर कामत भाजपा, जदयू और लोजपा (रा) सहित अन्य दो दलों के एनडीए के उम्मीदवार हैं, इसलिए चुनावी चौसर का हिसाब-किताब लगाने वाले इस बार भी उनका पलड़ा भारी मानते हैं। सुपौल से पहली बार राजद चुनाव मैदान में है। दलित समुदाय से आने वाले सिंघेश्वर क्षेत्र के विधायक चंद्रहास चौपाल को मुकाबले में उतारकर राजद ने यहां की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। हालांकि जातीय समीकरण के इन आंकड़ों में जोड़-तोड़ की पूरी गुंजाइश है। कहा जा रहा है राजद ने दलित चेहरे को प्रत्याशी उतारकर नई सियासी चाल चली है।

राजद को मुस्लिम और यादव के वोट बैंक पर विश्वास है, हालांकि यादव प्रत्याशी नहीं दिए जाने से यादव मतदाता नाराज भी बताए जाते हैं। परिसीमन के बाद सहरसा, मधेपुरा और अररिया के कुछ इलाकों को मिलाकर बना संसदीय क्षेत्र सुपौल में अब तक हुए तीन चुनाव में पहली बार 2009 में जद (यू) विश्वमोहन कुमार से रंजीत रंजन को हार का सामना करना पड़ा था, जबकि 2014 में कांग्रेस की रंजीत रंजन यहां से सांसद बनी थी।

छह विधानसभा क्षेत्र वाले सुपौल में मतदाताओं की संख्या करीब 19 लाख के करीब है।

इस चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यह है कि एनडीए गठबंधन की ओर से जदयू प्रत्याशी दिलेश्वर कामत दूसरी बार जीत का परचम लहरायेंगे या फिर इंडिया गठबंधन की ओर से राजद प्रत्याशी चंद्रहास चौपाल पहली बार सुपौल लोकसभा क्षेत्र में लालटेन को रोशन कर पायेंगे।

वैसे, निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व आईआरएस अधिकारी बैद्यनाथ मेहता त्रिकोणीय संघर्ष बनाने में जुटे हुए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मंच के राष्ट्रीय महासचिव रहे बैद्यनाथ मेहता को जातीय वोट बैंक पर भरोसा है, वहीं जदयू को नरेंद्र मोदी के चेहरे पर गुमान है।

सुपौल में अब तक हुए तीन चुनावों में मतदाताओं ने हर बार पुराने चेहरे को बदला है और नए को मौका दिया है। एनडीए और महागठबंधन को भीतरघात का भी भय सता रहा है, जिसे लेकर दोनों प्रत्याशी सक्रिय हैं।

बहरहाल, मतदाता प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ सहित अन्य समस्याओं को लेकर राजनीतिक दलों पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। माना जा रहा है कि एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला है। सुपौल में तीसरे चरण के तहत सात मई को मतदान होना है।

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