चुनावी समीकरण: क्या कांग्रेस के साथ जाएंगे दुष्यंत चौटाला, पांच प्वाइंट्स में समझें क्यों लिया यूटर्न?

  • कांग्रेस का हाथ क्यों थामना चाहते हैं चौटाला?
  • कहा - 'जेजेपी अब बीजेपी के साथ नहीं जाएगी'
  • पांच प्वाइंट्स में समझें क्यों लिया यूटर्न?

Ritu Singh
Update: 2024-05-09 13:07 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश में जारी लोकसभा चुनाव के बीच हरियाणा की सियासत में जबरदस्त हलचल पैदा हो गई है। हरियाणा की बीजेपी सरकार से तीन स्वतंत्र विधायकों की समर्थन वापसी के ऐलान के बाद दो महीने पहले मुख्यमंत्री बने नायब सिंह सैनी की सरकार पर संकट के बादल मंडराते दिख रहे हैं। जिन तीन निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया है, उनमें सोमवीर सांगवान (दादरी), रणधीर सिंह गोलेन (पुंडरी) और धरमपाल गोंदेर (नीलोखेड़ी) के नाम शामिल हैं। यही नहीं तीनों विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया है।

इस बीच जेजेपी नेता और पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला भी बीजेपी की सरकार गिराने के लिए कांग्रेस को समर्थन देने के लिए तैयार हैं। इतना ही नहीं, जेजेपी ने राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को चिट्ठी लिखकर हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग भी की है। ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी सरकार में सहयोगी रहे दुष्यंत चौटाला अचानक कांग्रेस के साथ जाने के लिए क्यों तैयार हैं?

'जेजेपी अब बीजेपी के साथ नहीं जाएगी'- चौटाला

हिसार में मीडिया से बातचीत के दौरान दुष्यंत चौटाला ने कहा, "मैं सदन में विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा से कहना चाहता हूं कि विधानसभा की मौजूदा संख्या के आधार पर जब सरकार अल्पमत में आ गई है, तो ऐसे में लोकसभा चुनाव के बीच अगर इस सरकार को गिराने के लिए कोई भी कदम उठाया जाता है, तो हम उन्हें बाहर से समर्थन देने के लिए तैयार हैं।" उन्होंने आगे की रणनीति कांग्रेस के जिम्मे डालते हुए कहा, 'अब कांग्रेस को सोचना होगा कि क्या वो बीजेपी सरकार को गिराने के लिए कोई कदम उठाएगी।'

इसके अलावा चौटाला ने बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा, 'मैं साफ कर देना चाहता हूं कि जेजेपी अब बीजेपी के साथ नहीं जाएगी।' उन्होंने सैनी सरकार के सामने बहुमत साबित करने या इस्तीफा देने की मांग की है। बता दें कि दो महीने पहले ही भाजपा ने जेजेपी को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाते हुए मनोहर लाला खट्टर की सरकार को गिराकर नायब सिंह सैनी को हरियाणा का नया मुख्यमंत्री बनाया था।

कांग्रेस का हाथ क्यों थामना चाहते हैं चौटाला?

1. गठबंधन टूटने से नाराज

दुष्यंत चौटाला की जेजेपी और भारतीय जनता पार्टी का पिछले चार साल से हरियाणा में गठबंधन था। लेकिन आपसी मतभेद के चलते दो महीने पहले दोनों पार्टियों के रास्ते अलग हो गए थे। गठबंधन से निकाले जाने के कारण दुष्यंत चौटाला फिलहाल भारतीय जनता पार्टी से काफी नाराज हैं। यही वजह है कि कांग्रेस को समर्थन देना उन्हें भाजपा में दोबारा जाने से बेहतर लग रहा है। इसके अलावा कांग्रेस का साथ देकर जेजेपी अध्यक्ष प्रदेश राजनीति में अपना दमखम दिखाने की भी कोशिश करेंगे।

2. जाट फैक्टर

हरियाणा में जाट वोटरों की संख्या करीब 25 फीसदी है। जाट वोटर्स दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेपीपी के कोर वोटर माने जाते हैं तो वहीं भारतीय जनता पार्टी को गैर-जाट पार्टी करार दिया जाता है। ऐसे में अगर चौटाला भाजपा के साथ जाते हैं तो जाट वोट कट सकता है। प्रदेश के 25 प्रतिशत जाट वोटर अगर किसी एक पार्टी को वोट देते हैं तो दूसरी पार्टियों को निश्चित तौर पर नुकसान होगा। दुष्यंत चौटाला जाटों के वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी की जगह कांग्रेस का हाथ थामना ज्यादा मुनासिब समझ रहे हैं।

3. पहलवानों की नाराजगी

माना जा रहा है कि राजधानी दिल्ली में हुए पहलवानों के प्रदर्शन का खामियाजा भाजपा को चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। पहलवानों के विरोध प्रदर्शन के बाद से हरियाणा की जनता भी भारतीय जनता पार्टी से नाराज है। ऐसे में अगर बीजेपी के वोटर्स विधानसभा चुनाव में पार्टी से नाराज होकर कांग्रेस का रूख करते हैं तो जेजेपी उनके साथ सरकार बना सकती है।

4. किसान आंदोलन

किसानों के हालिया विरोध प्रदर्शन के बाद पंजाब और हरियाणा के किसान केंद्र सरकार से काफी नाराज हुए। किसानों के 'दिल्ली कूच' को रोकने के लिए केंद्र और हरियाणा सरकार ने काफी सख्ती दिखाई। इस वजह से किसान इतने नाराज हुए कि उन्होंने जेजेपी अध्यक्ष दुष्यंत चौटाला को हिसार के नारा गांव आने से 5 अप्रैल को रोक दिया था। नाराज किसानों को साधने के लिए बीजेपी से दूरी बनाते हुए कांग्रेस के करीब जाना चौटाला के लिए फायदेमंद हो सकता है।

5. जाट वोटों का गणित

देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने वाला है। हरियाणा के 90 विधानसभा सीटों में से करीब 36 सीटों पर जाट वोटर्स महत्वपूर्ण है। सीवोटर एजेंसी के मुताबिक, 2019 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 33.7 फीसदी और कांग्रेस को 38.7 फीसदी वोट मिला था। वहीं जेजेपी ने 12.7 प्रतिशत मत हासिल किए थे। इन आंकड़ों में कांग्रेस की स्थिति भाजपा से ज्यादा मजबूत दिखाई दे रही है। भाजपा से किसान, जाट और पहलवानों की नाराजगी वोट प्रतिशत के साथ कांग्रेस और जेजेपी के सीटों की संख्या भी बढ़ा सकती है।

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