क्या इस फॉर्म की बदौलत टोक्यो में स्वर्ण जीत पाएंगी सिंधू?

क्या इस फॉर्म की बदौलत टोक्यो में स्वर्ण जीत पाएंगी सिंधू?

IANS News
Update: 2020-01-10 12:00 GMT
क्या इस फॉर्म की बदौलत टोक्यो में स्वर्ण जीत पाएंगी सिंधू?
हाईलाइट
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पीवी सिंधू ने जब बीते साल अगस्त में स्विट्जरलैंड में विश्व चैम्पियनशिप जीता था, तब आईएएनएस ने इंटरव्यू में यह सवाल किया था कि क्या जापान की अकाने यामागुची के दूसरे दौर में हारने और स्पेन की कैरोलिना मारिन के नहीं खेलने से आपका खिताब तक पहुंचना आसान हो गया? इसके जवाब में सिंधू ने कहा था कि इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि टॉप-10 में शामिल सभी खिलाड़ी खेल के स्तर के लिहाज से लगभग एक जैसी हैं।

विश्व चैम्पियनशिप से भारत लौटने के बाद भारत के राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद ने सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार किया था कि मारिन की गैरमौजूदगी और यामागुची की असमय विदाई ने सिंधू का काम आसान किया था।

सिंधू ने विश्व चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में चीनी ताइपे की ताइ जु यिंग को हराया था लेकिन नए साल के अपने पहले ही टूर्नामेंट-मलेशिया मास्टर्स में वह यिंग के हाथों हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गईं। सिंधू के लिए 2019 में पूरे साल यही चलता रहा। किसी टूर्नामेंट में उन्होंने एक खिलाड़ी को हराया और फिर अगले टूर्नामेंट में उसी से हार गईं। और यही कारण कहा कि बीते साल विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण के अलावा सिंधू ने सिर्फ इंडोनेशिया मास्टर्स में रजत जीता था।

ऐसी उम्मीद थी कि नए साल में सिंधू नए सिरे से शुरुआत करेंगी लेकिन हुआ इसके उलट। सिंधू को मुंह की खानी पड़ी। इस हार ने टोक्यो ओलंपिक में सिंधू की पदक की दावेदारी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। सिंधू ने रियो ओलंपिक में रजत जीता था और इस साल उनसे स्वर्ण की उम्मीद है लेकिन हाल के प्रदर्शन को देखते हुए यह साफ तौर पर कहना मुश्किल हो गया है कि सिंधू अपने इस लक्ष्य को हासिल कर पाएंगी।

यह कहा जा सकता है कि इस तरह की अटकलें लगाना जल्दबाजी है क्योंकि किसी एक टूर्नामेंट से किसी खिलाड़ी की क्षमता का आकलन नहीं किया जा सकता। ओलंपिक जुलाई-अगस्त में होने हैं और उससे पहले सिंधू को अपने खेल में सुधार लाने का काफी समय मिलेगा लेकिन मौजूदा फॉर्म को देखते हुए अटकलें लाजिमी हो जाती हैं।

इन तमाम अटकलों का कारण यह है कि सिंधू ने इस साल के लिए तीन लक्ष्य रखे हैं। पहला-ओलंपिक स्वर्ण। दूसरा-वर्ल्ड नम्बर-1 बनना और तीसरा-कुछ सुपर सीरीज खिताब जीतना। सिंधू अभी वर्ल्ड नम्बर-6 हैं। 2018 में वह वर्ल्ड नम्बर-3 थीं लेकिन उसके बाद से वह आगे नहीं जा पाई हैं।

सिंधू मानती हैं कि बीता साल उनके लिए उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा था लेकिन नए साल वह खुद को नए सिरे से साबित करने का प्रयास करेंगी। इस क्रम में सिंधू ने हालांकि यह भी कहा कि उनकी ज्यादातर प्रतिद्वंद्वी मानती हैं कि उनके खेल में जबरदस्त अनिश्चितता है और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है।

बीते दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ साक्षात्कार में सिंधू ने कहा था, अनिश्चितता मेरी सबसे बड़ी ताकत है। मेरी समझ से यह अच्छी चीज है। आपकी जीत मैच के दिन कई चीजों-शटल, सराउंडिंग और अन्य बातों पर निर्भर करती है। मैंने कभी भी शुरुआती दौर में अपनी हार को निराशा के तौर पर नहीं लिया। पहले राउंड में हार के बावजूद मुझे लगा कि मैं अगले टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करूंगी। वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मेरा प्रदर्शन इस बात का सबूत है।

तो क्या सिंधू बड़े टूर्नामेंट की खिलाड़ी हैं? 24 साल की उम्र में कई कीर्तिमान अपने नाम कर चुकीं सिंधू के लिए यह बात शायद फिट बैठती है। सिंधू भारत की एकमात्र ऐसी बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने विश्व चैम्पियनशिप में पांच पदक (एक स्वर्ण, दो रजत और तीन कांस्य) जीते हैं। इसके अलावा ओलंपिक में उनके नाम एक रजत है। साथ ही सिंधू ने उबेर कप में दो बार कांस्य जीते हैं जबकि एशियाई खेलों में एक रजत और एक कांस्य जीत चुकी हैं। इसके अलावा सिंधू ने राष्ट्रमंडल खेलों में एक रजत और एक कांस्य जीता है तथा एशियाई चैम्पियनशिप में एक कांस्य जीता है।

सायना नेहवाल की छत्रछाया से निकलकर देश की सबसे बड़ी बैडमिंटन स्टार बनने वाली सिंधू के सामने हालांकि नए साल को लेकर कई चुनौतियां भी हैं। उनके साथ वह कोच भी नहीं है, जिसने उन्हें विश्व चैम्पियनशिप जीतने में मदद की थी। बीते साल अप्रैल में दक्षिण कोरिया की सुंग जी ह्यून को सिंधू का कोच बनाया गया था। ह्यून विश्व चैम्पियनशिप के बाद कड़वे अनुभव लेकर व्यक्तिगत कारणों से स्वदेश लौट चुकी हैं।

ऐसे में सिंधू को फिर से गोपीचंद कैम्प में लौटना पड़ा है, जिनके पास अब शायद सिंधू को कुछ नया देने के लिए नहीं रह गया है। ऐसे में सिंधू को अपने लिए नई राह तलाशनी होगी और वह भी जल्दी क्योंकि अपने लिए उन्होंने जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनके लिहाज से वक्त की कमी है।

 

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