मप्र: भोपाल रंगविदूषक के निदेशक पद्मश्री रंगकर्मी बंसी कौल नहीं रहे, कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी को किया था डिजाइन
मप्र: भोपाल रंगविदूषक के निदेशक पद्मश्री रंगकर्मी बंसी कौल नहीं रहे, कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी को किया था डिजाइन
डिजिटल डेस्क, भोपाल। प्रख्यात रंगकर्मी और पद्मश्री से सम्मानित बंसी कौल का आज (शनिवार, 6 फरवरी 2021) सुबह निधन हो गया। 72 वर्ष के कौल कई दिनों से अस्वस्थ थे। बता दें कि हाल के दिनों में उनका कैंसर की वजह से ऑपरेशन भी किया गया था। नवंबर माह के बाद से उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गई। शनिवार सुबह 8.46 बजे दिल्ली के द्वारका अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
वे अपने पीछे पत्नी अंजना, रंगविदूषक संस्था और हजारों रंगकर्मी शिष्यों की जमात छोड़ गए। उनके जाने से कला जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। उनके रंगकर्म में योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री समेत देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जा चुका था। बंसी दादा की अंतिम यात्रा 7 फरवरी 2021 को उनके निवास स्थल सतीसर अपार्टमेंट प्लाट नंबर 6, सेक्टर 7, विश्व भारती स्कूल के सामने से 1: 30 बजे प्रस्थान करेगी तथा दोपहर 3 बजे लोधी रोड शमशान घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा।
23 अगस्त 1949 को श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर) में जन्मे कौल संघर्षशील, अनुशासित, मिलनसार, लेखक, चित्रकार, नाट्य लेखक, सेट डिजाइनर और रंग निर्देशक थे। बंसी कौल राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक रहे। उन्होंने भोपाल में रंग विदूषक के नाम से अपनी संस्था बनाई। 1984 से रंग कौल ने देश और दुनिया में अपनी नाट्य शैली की वजह से अलग पहचान बनाई।
कॉमनवेल्थ गेम्स और आईपीएल जैसे कई बड़े इवेंट की डिजाइनिंग की
बंसी कौल देश के प्रख्यात डिजाइनर रहे हैं। उन्होंने कई बड़े इवेंट की डिजाइनिंग की। कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी हो या आईपीएल की ओपनिंग सेरेमनी हो अपनी रचनाधर्मिता से उसे नया रंग दिया। आखिरी दिनों तक बंसी कौल रंगकर्म और नाटकों की दुनिया को लेकर ही चिंतित रहे। थिएटर ऑफ लाफ्टर, सामूहिकता, उत्सव धर्मिता को लेकर एक नया मुहावरा रच गए बंसी कौल।
बंसी दा के उल्लेखनीय नाटक
हिंदी, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, सिंहली, उर्दू, बुदेलखंडी एवं बघेलखंडी भाषाओं 100 से अधिक नाटकों के निर्देशन। आला अफसर, मृच्छकटिकम, राजा अग्निवर्ण का पैर, अग्निलीक, वेणीसंहार, दशकुमार चरित्तम, शर्विलक, पंचरात्रम, अंधा युग, खेल गुरू का, जो राम रचि राखा, अरण्याधिपति टण्टयामामा, जिन्दगी और जोंक, तुक्के पर तुक्का, वतन का राग, कहन कबीर और सौदागर आदि उल्लेखनीय हैं।
इन समारोहों में भरे कल्पनाशीलता के नए रंग
आपने अपना उत्सव (1986-87), खजुराहो नृत्य महोत्सव (1988), इंटरनेशनल कठपुतली महोत्सव (1990), नेशनल गेम्स (2001), युवा महोत्सव, हरियाणा (2001) का संकल्पना की। इसके साथ ही गणतंत्र दिवस समारोह, दिल्ली (2002), प्रशांत एशियाई पर्यटक एसोसिएशन (2002), महाभारत उत्सव, हरियाणा (2002) आदि के मुख्य आकल्पक रहे। फ्रांस (1984) और स्विट्जरलैंड (1985), रूस (1988, 2012), चीन (1994), थाईलैण्ड (1996), एडिनबर्ग मेला (2000, 2001) में आयोजित भारत महोत्सव एवं पुस्तक मेला जर्मनी (2008) में भी बतौर आकल्पक आपकी सृजनात्मकता ने कुछ विशिष्ट बनाया।