कोर्ट की आयु्क्त को फटकार, कहा-स्वास्थ्य से खिलवाड़ का अधिकार न केंद्र को है, न राज्य सरकार को

कोर्ट की आयु्क्त को फटकार, कहा-स्वास्थ्य से खिलवाड़ का अधिकार न केंद्र को है, न राज्य सरकार को

Anita Peddulwar
Update: 2020-06-02 06:09 GMT
कोर्ट की आयु्क्त को फटकार, कहा-स्वास्थ्य से खिलवाड़ का अधिकार न केंद्र को है, न राज्य सरकार को

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कोरोना संक्रमण से सीधे दो-दो हाथ कर रहे फ्रंटलाइन वर्कर्स (चिकित्सक, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस व अन्य) की कोरोना जांच कराने की मांग का विरोध करने वाले नागपुर महानगरपालिका आयुक्त तुकाराम मुंढे को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने फटकार लगाई है। न्यायमूर्ति रवि देशपांडे और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने मुंढे के इस पक्ष को बेबुनियाद और "जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता" के संवैधानिक अधिकार का विरोधाभासी करार दिया है।

दरअसल, सिटीजंस फोरम फॉर इक्विलिटी नामक सामाजिक संगठन ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके फ्रंटलाइन वर्कर की कोरोना जांच (आरटी-पीसीआर) का मुद्दा उठाया था। मनपा आयुक्त ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया था कि फ्रंटलाइन वर्कर को काेरोना जांच की कोई जरूरत नहीं है। उलट ऐसा करने से न केवल राज्य सरकार पर अतिरिक्त खर्च पड़ेगा, बल्कि मनपा का बहुत सा मानवबल इस काम में व्यस्त हो जाएगा। फ्रंटलाइन वर्कर को सुरक्षात्मक सामान दे दिए गए हैं, ऐसे में उनकी जांच की कोई जरूरत नहीं है। इस दलील के लिए हाईकोर्ट ने मनपा आयुक्त को फटकारते हुए नागपुर ही नहीं, पूरे विदर्भ में फ्रंटलाइन वर्कर की जांच कराने के आदेश जारी किए हैं।

यह दिया आदेश
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को विदर्भ के सभी अस्पतालों और प्रतिबंधित क्षेत्र में तैनात फ्रंटलाइन वर्कर की कोरोना जांच कराने के आदेश दिए हैं, चाहे उन्हें कोरोना के लक्षण हों या न हों।
विदर्भ में सभी फ्रंटलाइन वर्कर की कोरोना जांच के लिए आईसीएमआर को एक सप्ताह में जरूरी नीति निर्धारित करने को कहा गया है।
राज्य सरकार, मनपा आयुक्तों, जिलाधिकारियों सहित सभी जिम्मेदार अधिकारियों को फौरन फ्रंटलाइन वर्कर की कोरोना जांच कराने के आदेश दिए गए हैं।

इन्होंने रखा पक्ष
मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड. तुषार मंडलेकर, राज्य सरकार की ओर से मुख्य सरकारी वकील सुमंत देवपुजारी, केंद्र की ओर से एएसजीआई एड. उल्हास औरंगाबादकर और मनपा की ओर से एड. सुधीर पुराणिक ने पक्ष रखा।

हाईकोर्ट की टिप्पणी...
हाईकोर्ट ने कहा कि कोरोना से लड़ाई में जुटे फ्रंटलाइन वर्कर के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का अधिकार केंद्र और राज्य सरकारों में से किसी को नहीं है। इनका जीवन कीमती है, क्योंकि ये हमारे असली योद्धा है। अपना जीवन खतरे में डाल कर सामाजिक दायित्व निभा रहे हैं। ऐसे में उनके स्वास्थ्य की देखभाल करना सरकार की जिम्मेदारी है, जिससे बचा नहीं जा सकता। सरकार कहीं भी यह रिकॉर्ड में नहीं ला सकी है कि विश्व में आरटी-पीसीआर जांच किट की कोई कमी है। आईसीएमआर की गाइडलाइन में फ्रंटलाइन वर्कर में लक्षण न दिखने पर जांच का प्रावधान नहीं है। बावजूद इसके राज्य सरकार को इससे आगे जाकर उनकी जांच करानी होगी। 

मनपा आयुक्त का तर्क 
फ्रंटलाइन वर्कर को काेरोना जांच की कोई जरूरत नहीं है। उलट ऐसा करने से न केवल राज्य सरकार पर अतिरिक्त खर्च पड़ेगा, बल्कि मनपा का बहुत सा मानवबल इस काम में व्यस्त हो जाएगा। 

हाईकोर्ट का आदेश 
राज्य सरकार, मनपा आयुक्त, जिलाधिकारी सहित सभी जिम्मेदार अधिकारी फौरन फ्रंटलाइन वर्कर की कोरोना जांच कराने की व्यवस्था करें। साथ ही, आईसीएमआर एक सप्ताह में जरूरी नीति निर्धारित करे।


 

Tags: