एमपी में फिर चुनावी मोड़ में बीएसपी, क्या बीजेपी और कांग्रेस को दे पाएंगी चुनौती?

  • बीएसपी की चुनावी रणनीति
  • हर गांव में पहुंची बीएसपी की चुनावी यात्रा
  • 26 जून को बूथ स्तरीय समीक्षा सम्मेलन
  • यात्रा को मिल रहा है समर्थन

ANAND VANI
Update: 2023-06-20 12:54 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल के अंतिम महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है। सभी राजनैतिक दलों ने चुनावी तैयारियां जोरों शोरों से शुरू कर दी है। बहुजन समाज पार्टी चार राज्य राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मध्यप्रदेश के चुनावी मैदान में उतरेगी। बीएसपी पार्टी प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती इन राज्यों के चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी है। बीएसपी इस महीने से चारों राज्यों में चुनावी अभियान को तेज करेगी। बीएसपी चीफ मायावती ने कुछ दिन पहले ही चारों राज्यों में चुनावी अभियान की जिम्मेदारी अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल कोर्डिनेटर आकाश आनंद व सेंट्रल कोर्डिनेटर व राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को दी है।

तीसरे दल के रूप में उभरने की कोशिश

आगामी चुनावों को लेकर प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस के साथ बीएसपी ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। बीएसपी की बढ़ती सक्रियता से कांग्रेस और बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है। आपको बता दें भले ही बीएसपी मध्यप्रदेश में कभी भी किंग मेकर की भूमिका में ना रही हो लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जहां बीएसपी कांग्रेस और बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा करती है। और कुछ सीटों पर हार जीत में निर्णायक भूमिका निभाती है। मध्यप्रदेश के चुनावी सफर की बात की जाए तो मप्र के सियासी इतिहास में अभी तक किसी तीसरे दल ने सरकार नहीं बनाई है। या यूं कहे कि मध्यप्रदेश में अभी तक तीसरे मोर्चा नहीं उभरा। लेकिन बीएसपी ने साल के अंत में होने वाले चुनावों को लेकर मोर्चाबंदी शुरू कर दी है। जगह जगह यात्राएं निकाली जा रही है, बैठक, सभाएं और जनसभाएं की जा रही है। मध्यप्रदेश में बीएसपी तीसरे दल के रूप में उभरने की कोशिश में है।

एमपी में बीएसपी और उसका इतिहास

मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। जबकि 70 से 80 सीटें ऐसी हैं जहां एससी वोटर निर्णायक भूमिका में होता है, जो प्रत्याशी की हार जीत का फैसला करता है। जिन पर बीएसपी की सीधी नजर हैं। यहां अधिकतर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पहले मध्यप्रदेश में बीएसपी का कई सीटों पर सीधा असर था, लेकिन अब बीएसपी का वोट बैंक छिंटक रहा है। जिस तरह उत्तरप्रदेश में बीएसपी का जनाधार घटा है, उसका असर मध्यप्रदेश में भी पड़ सकता है। लेकिन यूपी में मिली हार से बीएसपी ने सबक लेकर चुनावी राज्यों में अपनी सक्रियता बढ़ाई है। आपको बता दें मध्यप्रदेश में बीएसपी का दबदबा उत्तरप्रदेश से सटे सीमावर्ती इलाकों में है। बीएसपी ने ग्वालियर -चंबल संभाग और विंध्य के इलाकों में अपनी सक्रियता को बढ़ा दिया है। बड़े बड़े कार्यक्रम व महारैली आयोजित कर बीएसपी को मिल रहे जनाधार से पार्टी ने इन इलाकों में मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उसने दोनों प्रमुख दलों की नींद उड़ा दी है।

आपको बता दें मध्यप्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटें है, जिनमें 148 जनरल,35 अनुसूचित, 47 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। मध्य प्रदेश के सियासी इतिहास में बहुजन समाज पार्टी ने 1993 और 1998 के विधानसभा चुनाव में 11-11 सीटें जीतकर प्रदेश में तीसरे दल बनने की राह बनाई थी। उस समय छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा था। 1993 में बीएसपी को 7.05 फीसदी वोट मिला था। जबकि 1998 में 6.15 फीसदी वोट मिला था। तब बीएसपी का प्रदेश में अच्छा खासा दखल था। अब प्रदेश में बीएसपी की महज दो सीटें ही हैं। 2003 में बीएसपी को 2 सीट के साथ 7.26 फीसदी वोट मिले थे। जबकि 2008 में बीएसपी को 7 सीट व 8.97 फीसदी वोट मिलें, 2013 की बात की जाए तो 6.29 फीसदी वोट के साथ 4 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि पिछले 2018 के चुनाव में बीएसपी को 2 सीटें मिली थी, जबकि उसका वोट प्रतिशत घटकर 5.1 प्रतिशत मिला था।

साल         वोट परसेंट        सीट

1993       7.05                11

1998       6.15                11

2003       7.26                 2

2008       8.97                 7

2013       6.29                 4

2018       5.1                   2

0.6 फीसदी ने बिगाड़ा खेल

2018 के चुनाव के नतीजों को देखें तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर महज 0.6 फीसदी था जबकि बीएसपी को 1.3 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में कह सकते है कि यदि बीएसपी मैदान में नहीं होती तो किसी एक दल को मजबूती मिलती। अब जब बीएसपी ने मध्यप्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है, आगामी चुनाव बीएसपी फिर से जनाधार जुटाने में जुटी हुई है। इसके लिए बीएसपी प्रदेश प्रभारी राज्यसभा सांसद इंजी रामजी गौतम के नेतृत्व में ग्वालियर में बहुजनराज अधिकार यात्रा निकाली गई थी। अब देखना होगा कि 2023 के चुनाव में बीएसपी किसका गणित बिगाड़ने में कामयाब हो पाती है। 

आपको बता दें मध्यप्रदेश की कई सीटों पर बीएसपी मजबूत स्थिति में होती है, 2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी दो सीटों पर ही सिमटकर रह गई थी, लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में पार्टी तीसरे नंबर पर रही थी। मध्यप्रदेश की सियासी जमीन पर बीएसपी का अपना बेसिक वोट है। और अगर ये वोट एकमुश्त पड़ जाए तो बीएसपी का हाथी देश की दिल की सियासत पर दौड़ने लग जाएगा। उत्तरप्रदेश में रहते हुए बीएसपी की राजनीति की बात की जाए तो बीएसपी की धर्म से हटकर अपनी अलग रणनीति अनुशासन और कुशल प्रशासन रही है। बीएसपी कांग्रेस और बीजेपी पर समय समय पर निशाना साधती रहती है।

बीएसपी की चुनावी रणनीति

बीएसपी की चुनावी रणनीति को लेकर भास्कर हिंदी संवाददाता ने बीएसपी मध्यप्रदेश प्रभारी व राज्यसभा सांसद इंजी रामजी गौतम से बात की। सांसद गौतम ने बताया कि बीएसपी ने पहले से ही चुनावी तैयारियां शुरू कर दी है। पार्टी की ओर से पूरे प्रदेश में हर जिले में साइकिल यात्रा निकाली गई। अभी हाल ही में बीएसपी की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में जन संपर्क यात्रा निकाली जा रही है। श्योपुर से शुरू हुई यात्रा रीवा में पुहंच चुकी है। यात्रा को 60 दिन पूरे हो गए है। यात्रा में शामिल बीएसपी के पदाधिकारी व कार्यकर्ता एक दिन में जहां पहुंचते है, रातभर वहीं ठहरते है। यात्रा में हर गांव में बीएसपी को समर्थन मिल रहा है। गौतम ने आगे कहा कि अबकी बार बसपा मजूबती के साथ चुनावी मैदान में उतरकर सत्ता तक पहुंचेंगी। आगे की तैयारियों को लेकर जब सांसद रामजी गौतम से सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया कि 26 जून को भोपाल पार्टी कार्यालय पर बीएसपी की समीक्षा बैठक का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें पार्टी के बूथ स्तरीय कार्यकर्ता मौजूद रहेंगे। पार्टी के बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं से चुनावी रणनीति पर विचार विमर्श और गहन मंथन किया जाएगा।  

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