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Beed News: ज़िले में हर 36 घंटे में एक किसान कर रहा आत्महत्या, पिछले 10 माह में 198 किसानों ने दी जान

- 10 माह में 198 आत्महत्याएं
- सिंचाई परियोजनाएं पर्याप्त नहीं, बारिश में फसलें बर्बाद
Beed News. ज़िले में किसानों की स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है। कभी बारिश की मार, कभी सूखे की चपेट में फसल, किसानी हर मोर्चे पर संकटों से घिरी है। फसल समय पर तैयार भी हो जाए तो सरकारी खरीद केंद्र देरी से खुलते हैं, प्याज खेतों में सड़ जाता है, और जो फसल बिक भी जाए, उसके बदले मिलने वाली रकम ढुलाई के खर्च तक को पूरा नहीं कर पाती। इन्हीं परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फँसकर कई किसान कर्ज़ के बोझ से टूट जाते हैं और अंततः आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
10 माह में 198 आत्महत्याएं—हर 36 घंटे में मौत के मुंह में एक किसान
जनवरी 2025 से अक्टूबर 2025 के अंत तक, यानी 10 महीनों (304 दिनों) में 198 किसानों ने आत्महत्या की है। इसका अर्थ है कि हर डेढ़ दिन (36 घंटे) में जिला प्रशासन के रिकॉर्ड में एक किसान की आत्महत्या दर्ज हो रही है। यह आंकड़ा जिले की खस्ताहाल कृषि व्यवस्था का गंभीर संकेत है।
सिंचाई परियोजनाएं पर्याप्त नहीं, बारिश में फसलें बर्बाद
- कभी सूखे से जूझने वाला यह ज़िला पिछले कुछ वर्षों में अधिक बारिश के कारण भी फसलों की बर्बादी का शिकार बना है।
- क्षेत्र में कोई बड़ी सिंचाई परियोजना नहीं है, इसलिए भारी बारिश का पानी बह जाता है और खेती अब भी मौसमी वर्षा पर निर्भर है।
- ऐसे में कृषि से लाभ की कोई गारंटी नहीं बचती।
बिक्री केंद्र समय पर न खुलने से बढ़ता संकट
- फसल कटाई के बाद सरकारी खरीद केंद्र समय पर नहीं खुलते।
- प्याज का उत्पादन बढ़ने के बावजूद उसे बेचने सोलापुर या नासिक ले जाने पर परिवहन लागत ही निकल पाना मुश्किल हो जाता है।
- कई किसानों को घाटे के डर से फसल खेतों में ही छोड़ देनी पड़ती है।
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कर्ज़ वितरण लक्ष्य का आधा ही पूरा—लाखों किसान बाहर
सरकारी लक्ष्य के मुकाबले अब तक केवल आधा ऋण वितरण ही संभव हो पाया है। ऋण न मिलने से किसान निजी साहूकारों के चंगुल में फंस जाते हैं और कर्ज़ का बोझ बढ़ता जाता है।
किसान आत्महत्याओं के मुख्य कारण
- ऋण वितरण में कमी
- प्राकृतिक आपदाओं के चलते उत्पादन लागत तक नहीं निकल पाती
- बेचने से पहले खरीद केंद्रों की देरी
- ढुलाई खर्च फसल के दाम से अधिक
- वर्षों से जारी कर्ज़ का चक्र और उससे मुक्ति न मिलने का डर
- सरकारें और योजनाएं बदलीं, पर किसानों की हालत जस की तस
व्यवस्था में कोई ठोस सुधार नहीं
किसान आत्महत्याओं की समस्या के स्थायी समाधान की घोषणाएं लगातार विफल साबित हो रही हैं। ज़िले में मौत का यह सिलसिला वर्षों से जारी है, और अंकुश का कोई ठोस रास्ता दिखाई नहीं देता।
Created On :   14 Nov 2025 8:07 PM IST












