लंबित आपराधिक मामला छुपाना नौकरी से बर्खास्त करने का आधार नहीं- बॉम्बे हाईकोर्ट

लंबित आपराधिक मामला छुपाना नौकरी से बर्खास्त करने का आधार नहीं- बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लंबित आपराधिक मामला छुपाना कर्मचारी को नौकरी से बर्खास्त करने का आधार नहीं हो सकता। इस मामले में कंपनी को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। अनुकंपा के आधार पर नियुक्त चपरासी ने तथ्य छुपाए थे।

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (एमएसईडीसीएल) को अनुकंपा के आधार पर नियुक्त एक चपरासी को बर्खास्त करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है। चपरासी ने नियुक्ति के समय अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामले को छुपाया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि कंपनी उस कर्मचारी को बर्खास्त करने के लिए बाध्य नहीं है, जिसने अपने खिलाफ आपराधिक मामले के लंबित होने के तथ्य को छुपाया है।

कंपनी कर्मचारी के पद की संवेदनशीलता पर गौर करे

न्यायमूर्ति रोहित बी. देव और न्यायमूर्ति अनिल एल. पंसारे की खंडपीठ ने कहा कि कंपनी का कर्मचारी यदि किसी संवेदनशील पद पर तैनात है और उसने नियुक्ति के समय अपने पिछले अपराधिक मामले को छुपाया है, तो कंपनी के पास उस कर्मचारी की नौकरी समाप्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वर्दीधारी या अनुशासित बल या उच्च पद पर कार्यरत व्यक्ति की तुलना में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की नौकरी समाप्त करने का वही आधार नहीं हो सकता है। खंडपीठ ने कहा कि कर्मचारी को बर्खास्त करने या नहीं करने का फैसला करते समय अन्य विषयों, जैसे आरोप की प्रकृति और अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति को ध्यान में रखा जा सकता है।

क्या है मामला

याचिकाकर्ता को उसके पिता की मृत्यु के कारण अनुकंपा के आधार पर एमएसईडीसीएल कंपनी में चपरासी के पद पर नियुक्त किया गया था। नियुक्ति आदेश के साथ प्रमाणित चरित्र और पूर्ववृत्त सत्यापन प्रपत्र में एक विशिष्ट प्रश्न था कि क्या उम्मीदवार के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला लंबित है। नियुक्ति पत्र में एक चेतावनी भी शामिल थी कि झूठी सूचना देने या सूचना छुपाने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

याचिकाकर्ता ने सत्यापन फॉर्म में जानकारी नहीं भरी थी। जब एमएसईडीसीएल ने चरित्र सत्यापन के तहत पुलिस रिपोर्ट मांगी, तो पता चला कि याचिकाकर्ता एक मामले में आरोपी है। याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। याचिकाकर्ता ने अपने जवाब में कहा कि वह अंग्रेजी नहीं जानता है, इसलिए उससे गलती हो गई थी। उसने यह भी दावा किया कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया था। अदालत ने इस औचित्य को स्वीकार नहीं किया कि याचिकाकर्ता ने अनजाने में गलती की है। अदालत ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता को एक सीमित भूमिका के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

कोर्ट की दलील

अदालत ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लंबित आपराधिक मामले का खुलासा न करना, अपने आप में बर्खास्तगी का आधार हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणियां एक पूर्ण सिद्धांत को निर्धारित नहीं करती हैं। नियुक्ति करने वाला उस कर्मचारी को नौकरी से बर्खास्त कर सकता है, जो गंभीर लंबित आपराधिक मामले को छुपाता है।

कंपनी मामले में नए सिरे से विचार करे

खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में कुछ विशेष परिस्थितियां मौजूद हैं। कंपनी कर्मचारी को बर्खास्त करने का निर्णय लेने से पहले उन पर विचार कर सकती थी। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस मामले में कंपनी के पास एक विकल्प है और अपराध छुपाने के परिणामस्वरूप नौकरी की समाप्ति नहीं हो सकती है।

खंडपीठ ने एमएसईडीसीएल को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता तब तक बहाली या किसी अन्य राहत का हकदार नहीं है, जब तक कि एमएसईडीसीएल मामले पर नए सिरे से विचार नहीं करता। यदि एमएसईडीसीएल कंपनी पुनर्विचार करने के बाद याचिकाकर्ता के पक्ष में कोई अनुकूल निर्णय लेती है, तो वह नौकरी से बर्खास्त करने के आदेश की तारीख से बहाल हो जाएगा।

Created On :   7 May 2023 8:24 PM IST

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