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राहत: 38 साल लंबे संघर्ष के बाद रेलवे क्लर्क को बॉम्बे हाई कोर्ट से मिला न्याय
- अदालत ने 1997 के पुणे औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसले को रखा बरकरार
- रेलवे की औद्योगिक न्यायाधिकरण के क्लर्क की बहाले के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
- रेलवे को क्लर्क की 1986 में सेवाएं समाप्त करने लेकर सेवानिवृत्ति की तारीख तक चुकाना होगा पूरा वेतन
डिजिटल डेस्क, मुंबई. 38 साल लंबे संघर्ष के बाद रेलवे क्लर्क मुकुंद नारायण देशमाने को बॉम्बे हाई कोर्ट से न्याय मिला है। अदालत ने पुणे औद्योगिक न्यायाधिकरण के देशमाने को रेलवे क्लर्क के पद पर बहाल करने और उन्हें नौकरी से निकाले जाने से लेकर 1997 के फैसले की तारीख तक वेतन के 50 फीसदी राशि देने के आदेश को बरकरार रखा है। मध्य रेलवे में क्लर्क के पद पर तैनात रहे देशमाने की 1986 में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष पुणे औद्योगिक न्यायाधिकरण के देशमाने को बहाल करने के फैसले को चुनौती देने वाली रेलवे की याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हमें औद्योगिक न्यायाधिकरण के 17 अप्रैल 1997 के फैसले में कोई दोष नहीं लगता है। इसलिए उस फैसले को बरकरार रखा गया है। यदि सेवा से बर्खास्तगी की कार्रवाई निर्धारित प्रक्रिया के विपरीत की जाती है, तो इस मामले में विशेष रूप से रेलवे कर्मचारी नियम 1968 और विशेष रूप से नियम 9(25)(i)(ii) के उल्लंघन में रेलवे की कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 का पूर्ण उल्लंघन है। औद्योगिक न्यायाधिकरण के आदेश में कोई कानूनी त्रुटि नहीं पाते हुए रेलवे की याचिका खारिज की जाती है। पीठ ने न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखा है।
पुणे स्थित औद्योगिक न्यायाधिकरण ने 17 अप्रैल 1997 को अपने फैसले में रेलवे को निर्देश दिया कि वह कर्मचारी (क्लर्क) को सेवा की निरंतरता के साथ उसके मूल पद पर बहाल करे और बर्खास्त किए जाने की तारीख से 50 फीसदी पिछला वेतन भी दिया जाए। इस निर्णय को पारित होने की तारीख से तीन महीने के भीतर लागू करने का निर्देश दिया गया था।
मध्य रेलवे के वाणिज्यिक लिपिक (क्लर्क) के पद पर मुकुंद देशमाने कार्यरत थे। जब वह सोलापुर में तैनात थे, तो उन्हें 31 मई 1986 में बर्खास्त कर दिया गया था। इससे पहले देशमाने को 1982 में शाहबाद में स्थानांतरित कर दिया गया था और उसके बाद उनका 1984 में दौंड में स्थानांतरित कर दिया गया था। जब वे घोरपडी में तैनात थे, तो उन्हें उनकी अनुपस्थिति के बारे में स्पष्टीकरण मांगते हुए आरोप पत्र जारी किया गया था। रेलवे ने यह पाते हुए कि उनका स्पष्टीकरण असंतोषजनक है और उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया। उन्होंने अपनी बर्खास्तगी को औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी।
Created On :   1 Sept 2024 8:49 PM IST