- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- पवई में झोपड़े तोड़ने के मामले में...
बॉम्बे हाईकोर्ट: पवई में झोपड़े तोड़ने के मामले में बीएमसी और मुंबई पुलिस को लगाई फटकार, फैक्ट-चेक यूनिट पर फैसला सुरक्षित
- अदालत ने कार्रवाई के दौरान एक गर्भवती से मारपीट के मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश
- अदालत ने 10 साल से जेल में बंद व्यक्ति को रिहा करने का दिया निर्देश
- फैक्ट-चेक यूनिट पर बॉम्बे हाई कोर्ट में फैसला सुरक्षित
- बच्ची के साथ दुराचार के दोषी को हाई कोर्ट ने राहत देने से किया इनकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को पवई के जय भीम नगर में अवैध झोपड़े तोड़ने के मामले में मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और मुंबई पुलिस को फटकार लगाई। अदालत ने बीएमसी से पूछा कि वह किस आधार पर बारिश के समय में गरीबों के झोपड़े तोड़ने गई। जबकि राज्य सरकार के जीआर के मुताबिक बारिश के समय में अवैध झोपड़ों को तोड़ने की कार्रवाई नहीं की जाएगी। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की पीठ के समक्ष पवई निवासी मीनाबाई गोविंद लिंबोले की ओर से वकील राकेश सिंह की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने बीएमसी से पूछा कि वह किस आदेश पर तोड़ने की कार्रवाई की? उसके हलफनामे मे कहा गया है कि मानवाधिकार आयोग 3 जून को बीएमसी को कानून के मुताबिक अवैध झोपड़े के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया। आयोग के निर्देश के आधार पर कार्रवाई की गई। बीएमसी के जवाब पर पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आयोग ने कानून के मुताबिक कार्रवाई के लिया कहा था, लेकिन आप (बीएमसी) अपने कानून का भी पालन करना भूल गए। अदालत ने पूछा कि मामले की जांच पवई पुलिस स्टेशन से साकीनाका पुलिस को क्यों ट्रांसफर किया गया? केस की पुलिस डायरी कहां है? पीड़ित महीला पुलिस स्टेशन में शिकायत करने गई थी, तो उसकी शिकायत क्यों दर्ज नहीं की गई? पीठ ने महिला के बयान के आधार पर मामला दर्ज करने और पुलिस जांच दूसरे परिमंडल के अंतर्गत आने वाले पुलिस स्टेशन को सौंपा जाए और उस पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक की देखरेख में मामले की जांच की जाए। अदालत ने लोगों के खिलाफ कानून हाथ में लेने और पथराव करने के मामले की भी जांच उसी पुलिस स्टेशन को सौंपने का निर्देश दिया है। 9 अगस्त को सरकारी वकील वेनेगावकर अदालत को बताया कि जांच किस पुलिस स्टेशन को सौंपी जा रही है। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि पवई के जय भीम नगर में पिछले 30 साल से 800 परिवार रहता है। उनके पास आधार कार्ड, राशन कार्ड और लाइट बिल समेत सभी जरूरी कागजात हैं। बिल्डर के साथ मिल कर बीएमसी के अधिकारियों ने वहां पुलिस प्रोटेक्शन के साथ जेसीपी, क्रेन और अन्य मशीनरी लेकर 6 जून को बिना किसी पूर्व सूचना के पहुंच गए और उनके झोपड़े तोड़ने लगे। लोगों को अपने घरों से सामानों को भी निकालने नहीं दिया गया। यहां तक कि जब लोग अपने घरों से सामना निकालने गए, तो पुलिस ने उन पर डंडे बरसाए। इसमें कई लोगों को गंभीर चोटें आयी। इस दौरान एक गर्भवती महिला गंभीर रूप से घायल हो गई थी। उस पर बिल्डर के लाए गए बाउंसर ने हमला किया। वह पवई पुलिस स्टेशन में शिकायत करने गई, तो उसकी शिकायत नहीं ली गई।
बेटी की हत्या के दोषी पिता को हाई कोर्ट से राहत
दूसरे मामले में बेटी की हत्या के दोषी पिता को हाई कोर्ट से राहत मिली है। अदालत ने उसके खिलाफ सेशन कोर्ट के आजीवन कारावास की सजा को 10 साल की कारावास की सजा में बदल दिया। साथ ही अदालत ने 10 साल से जेल में बंद व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष दिनेश चंद्रकांत सुतार की ओर से वकील डॉ.युग मोहित चौधरी की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि हम उसे (याचिकाकर्ता) आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए बरी करना उचित समझते हैं। इसके बजाय उसके कृत्य को आईपीसी की धारा 304 के भाग दो के तहत उसे दोषी पाते हुए 10 साल के कारावास की सजा दी जाती है। क्योंकि वह पहले ही 10 साल की सजा काट चुका है। इसलिए धारा 302 के तहत उसके दोष को खारिज करते हुए उसके अनुरोध को स्वीकार किया जाता है। हम याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा करने का निर्देश देते हैं। याचिकाकर्ता के वकील डॉ.युग मोहित चौधरी ने दलील दी कि सतारा के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा याचिकाकर्ता को अपनी ही एक बेटी की हत्या करने और दूसरी बेटी की हत्या का प्रयास करने के आरोप में दोषी पाए जाने पर आईपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास और धारा 307 के तहत 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है। याचिकाकर्ता एक ऐसा व्यक्ति है, जिसका जीवन दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से प्रभावित है। उसे निराशा की स्थिति का सामना करना पड़ा, जब उसकी पत्नी झगड़े कर दो बच्चियों को छोड़ कर मायके चली गई। उसने अपनी पत्नी को कई बार घर आने का आग्रह किया, लेकिन वह नहीं आयी। उसने अपनी 4 और 8 साल की बेटियों को जहर पीला कर खुद जहर पी ली और आत्महत्या करने की कोशिश की। उसके परिजनों को जैसे ही इसकी जानकारी हुई, उन्होंने उसे और उसकी दोनों बेटियों को अस्पताल पहंचाया। जहां उसकी और उसकी बड़ी बेटी की जान बच गई, लेकिन उसकी छोटी बेटी को बचाया नहीं जा सका। सतारा पुलिस ने 15 जुलाई 2012 को उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 307, 309 के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद से ही वह सलाखों के पीछे जेल में बंद है।
आईटी नियम 2023 को चुनौती - फैक्ट-चेक यूनिट पर बॉम्बे हाई कोर्ट में फैसला सुरक्षित
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ऑनलाइन फर्जी खबरों के तथ्य-जांच को लेकर संशोधित आईटी नियमों के मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा है। केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आक्षेपित नियम केवल उस सूचना के संदर्भ में लागू होता है, जो भारत सरकार की आधिकारिक फाइलों में कारोबारी नियमों के तहत दर्ज होती है। न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर की एकल पीठ के समक्ष गुरुवार को स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा समेत अन्य दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर फर्जी और झूठी खबरों के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, तो यह नकारात्मक प्रभाव होना चाहिए। सभी को चेतावनी दी जानी चाहिए कि वे फर्जी या झूठी खबरें नहीं डाल सकते। इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि सरकार अंतिम मध्यस्थ नहीं होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहला मध्यस्थ मध्यस्थ होगा और अंतिम मध्यस्थता न्यायालय होगा। सही जानकारी प्राप्त करने का अधिकार भी समाचार प्राप्त करने वाले का मौलिक अधिकार है। याचिकाकर्ताओं ने एफसीयू की निरर्थकता पर जोर दिया। कुणाल कामरा के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देते हुए अपनी याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाओं में आईटी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023 के नियम 3 (1) (II) (ए) और (सी) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि यह वास्तव में नियम 3 में संशोधन करेगा। आईटी नियम 2021 के (1) (ए) और 3 (1) (बी) (वी) सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों और संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
बच्ची के साथ दुराचार के दोषी को हाई कोर्ट ने राहत देने से किया इनकार
इसके अलावा बच्चियों के साथ दुराचार के दोषी अकबर इमरान शेख को हाई कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने उसके खिलाफ सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए 12 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई है। न्यायमूर्ति सारंग वी.कोतवाल की एकलपीठ के समक्ष अकबर इमाम शेख की ओर से वकील कार्तिक एस.गर्ग की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि पीड़ित बच्चियों ने वारदात के विषय में बताया था। अभियोजन पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध साबित किया गया है। अपराध की गंभीरता और पीड़िता की कम उम्र को ध्यान में रखते हुए सेशन कोर्ट के फैसले को रद्द नहीं की जा सकती है। पुणे के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 15 सितंबर 2018 को याचिकाकर्ता को दोषी ठहराते हुए 12 साल की कारावास की सजा सुनाई थी। याचिकाकर्ता पीड़ित बच्चियों के पड़ोस में रहता था। जब 29 अक्टूबर 2015 की शाम को बच्चियां उसके (याचिकाकर्ता) घर गयी थी। बच्चियों की मांग घर का काम कर रही थी। इसी दौरान उन्होंने अपनी छोटी बेटी के चिल्लाने की आवाजें सुनी, तो वह पड़ोसी याचिकाकर्ता के घर गई। वह 8 साल की बच्ची के दुराचार कर रहा था। जबकि उसकी बड़ी बहन भी वहां मौजूद थी। पीड़ित बच्चियों के माता-पिता ने खडक पुलिस स्टेशन में याचिकाकर्ता के खिलाफ दुराचार का मामला दर्ज कराया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने पांच गवाहों से पूछताछ की। इसमें दोनों पीड़िता, उनकी मां और चिकित्सा अधिकारी शामिल थे। दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में मेडिकल रिपोर्ट तैयार की गईं। इसके आधार पर न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया और उसे विभिन्न धाराओं के तहत सजा सुनाई।
Created On :   9 Aug 2024 3:46 PM IST