जान बचाने वाला खून ही दे रहा एचआईवी वायरस, 5 साल में देश में 7,670 लोग संक्रमित

जान बचाने वाला खून ही दे रहा एचआईवी वायरस, 5 साल में देश में 7,670 लोग संक्रमित
बीते पांच वर्षों (2017-2022) में तक ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से देश में 7,670 लोग एचआईवी संक्रमित हो चुके हैं।

डिजिटल डेस्क, मुंबई, मोफीद खान। आपने कभी सोचा है क्या कि जान बचाने वाला खून ही आपको एचआईवी वायरस दे रहा है। जी हां, यह सच है। रक्त के जरिए महाराष्ट्र सहित पूरे देश में एचआईवी संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है। प्रदेश में पिछले साल 272 लोग ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से एचआईवी की चपेट में आए। उत्तर प्रदेश के बाद ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से एचआईवी का शिकार होने के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में मिले हैं। सामाजिक कार्यकर्ता चेतन कोठारी ने आरटीआई के जरिए नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) से यह जानकारी हासिल की है।

नाको ने 2001-02 से आंकड़ों का संकलन शुरु किया। पहले साल केवल 234 मामले सामने आए थे जो 2002-03 में बढ़ कर 1475 तक पहुंच गए। इसके बाद लगातार यह मामला बढ़ता गया।

दूसरे पायदान पर महाराष्ट्र

ब्लड ट्रांसफ्यूजन की वजह से होने वाले एचआईवी के मामले में महाराष्ट्र दूसरे पायदान पर है। पहले स्थान पर उत्त प्रदेश है। वर्ष 2022 में जुलाई तक यूपी में सबसे अधिक 366 मामले सामने आए थे। इसी दौरान महाराष्ट्र में 272 लोगों में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हुई। 2021 में यूपी में 185 मामले सामने आए थे जबकि महाराष्ट्र में 118 केस दर्ज हुए थे।

जांच की कमी प्रमुख वजह

ब्लड बैंक के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि रक्त जान से हासिल ब्लड की जांच एलाइजा तकनीक से होती है। इस तकनीक से एचआईवी की जांच का विंडो पीरियड तीन से छह महीने होता है। मतलब यह कि यदि तीन महीने पहले किसी डोनर को एचआईवी हुआ होगा तो उसका पता यह मशीन नहीं लगा सकती। यह ब्लड जिसे दिया जाता है, उसमें एचआईवी का खतरा बढ़ जाता है। पूरे देश में इसी तरीके से जांच होती है।

क्या हैं नियम

एफडीए नियमों के अनुसार ब्लड बैंकों में संकलित खून तीन तरह से टेस्ट करना चाहिए। इनमें एलाइजा, न्यूक्लिक एसिड टेस्ट और कैनिलुमिनम शामिल हैं। न्यूक्लिक एसिड टेस्ट सबसे महंगा है। यह टेस्ट एचआईवी को 7 दिन के विंडो पीरियड में पकड़ लेता है। इसलिए सरकार ने इसे अनिवार्य नहीं किया है। इससे ब्लड महंगा हो जाएगा, जिसे आम लोग नहीं खरीद सकते।

एलाइजा तकनीक से जांच

सरकारी ब्लड बैंकों में एलाइजा तकनीक से ही रक्त की जांच की जाती है। यह भी नियम है कि कैंपो में रक्त देने के लिए आनेवाले लोगों से उनके वैवाहिक और शारिरिक रिश्तों के बारे में जानकारी जुटाई जाए। लेकिन ब्लड डोनेशन कैंप में यह नहीं हो पाता है। शिविरों में एक डॉक्टर अनिवार्य है, जिसका भी पालन हर जगह नहीं किया जाता।

क्या कहते हैं अधिकारी

राज्य रक्त संक्रमण परिषद के सह-संचालक डॉ. महेंद्र केंद्रे ने बताया कि एफडीए नियमों के तहत सरकारी ब्लड बैंकों में एलाइजा के जरिए खून की जांच की जाती है। शुरुआती दौर में किसी को संक्रमण है तो इस टेस्ट में पता नहीं लग पाता है। न्यूक्लिक एसिड टेस्ट को लेकर सरकार कदम उठा रही है।

महाराष्ट्र में मिले मामले

वर्ष मामले

2017- 190

2018- 154

2019- 185

2020- 91

2021- 118

2022- 272

Created On :   9 May 2023 12:00 AM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story