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आईआईटी बाम्बे: बिना एसी के कूल-कूल होंगे सकेंगे घर और दफ्तर, 21 फीसदी तक तापमान कम करेगा लेप
- अभियंताओं ने विकसित की सामग्री
- 21 फीसदी तक तापमान कम करगा ऊष्मारोधी लेप
डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बांबे के अभियंता दल ने एक नई लेपन सामग्री (कोटिंग मटेरियल) विकसित करने में सफलता पाई है जिससे घर और दफ्तर जैसी जगहों का तापमान 21 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है। सबसे अच्छी बात यह है कि इससे एसी या कूलर की तरह ऊर्जा नहीं खर्च करनी पड़ती इसलिए यह पर्यावरण के भी बेहद अनुकूल है। आईआईटी बांबे के धातुकर्म अभियांत्रिकी और पदार्थ विज्ञान के प्रोफेसर स्मृतिरंजन परिदा की अगुआई में अभियंता दल ने लेपन सामग्री विकसित की है। प्रोफेसर परिदा ने बताया कि तैयार किया गया लेपन सौर ऊर्जा ऊष्मा को प्रभावी ढंग से परावर्तित करता है और अवशोषित की जाने वाली ऊष्मा की मात्रा को कम करता है। जिसके चलते जहां इसका लेपन किया जाता है उस सतह के नीचे तापमान बेहद कम रहता है। उन्होंने बताया कि तैयार किया गया आलेप हाइड्रोफोबिक और एपॉक्सी संमिश्रित है जो ऊष्मा का संचालन भी कम करता है। लगभर 65 माइक्रोमीटर पतले आलेप के जरिए ही गर्मी अंदर दाखिल होने से रोका जा सकता है।
छत और दीवार पर लगा सकेंगे लोग
परिदा ने कहा कि तैयार किया गया आलेप घरों और दफ्तरों में तापमान कम करने के लिए एक आदर्श समाधान हो सकता है क्योंकि इसमें ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता। फिलहाल किसी जगह को ठंडा करने के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल होता है। पहला कूलर या एसी के जरिए ऐसा किया जाता है लेकिन इसमें ऊर्जा के इस्तेमाल होता है और ऊर्जा के इस्तेमाल के चलते दुनिया में कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ रहा है। इसके अलावा फाइबरग्लास, पॉलीस्टायरीन या वायु प्रवाह बढ़ाने वाली रचना के जरिए भी गर्मी कम करने की कोशिश होती है लेकिन इसे भी नियमित रखरखाव और मोटे खर्च की जरूरत होती है। हमने जो लेपन विकसित किया है उसे कम खर्च में छतों और दीवारों पर लगाया जा सकेगा इससे छत और दीवारें ज्यादा टिकाऊ भी बनेंगी।
लगातार बढ़ रहा है तापमान
भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक साल 1901 के बाद 2023 भारत का दूसरा सबसे गर्म साल रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल तापमान में वृद्धि हो रही है। ऐसे में घरों और कार्यालयों को ठंडा रखने के लिए ऐसा समाधान ढूंढा जाना जरूरी है जिससे और प्रदूषण न फैले। प्रोफेसर परिदा ने कहा कि इसी सोचन के साथ हमने काम शुरू किया और इस समाधान तक पहुंचे हैं। हमने पाया कि जिन सतहों पर लेपन किया गया उसके ऊपर का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस तक रहे जबकि निचले हिस्से का तापमान 15 से 21 डिग्री सेल्सियस तक घट गया।
Created On :   26 Feb 2024 6:36 PM IST