बॉम्बे हाईकोर्ट: स्वामी रामगिरी महाराज के खिलाफ दर्ज सभी मामलों की जांच एमआईडीसी पुलिस को सौंपी

स्वामी रामगिरी महाराज के खिलाफ दर्ज सभी मामलों की जांच एमआईडीसी पुलिस को सौंपी
  • मुंबई साइबर पुलिस को सभी विवादित वीडियो को सोशल मीडिया से हटाने का निर्देश
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने शिवसेना सांसद रविंद्र वायकर को लोकसभा में जीत को लेकर हलफनामा दाखिल करने का दिया निर्देश
  • हत्या के प्रयास के मामले की सुस्त जांच और लापरवाही के लिए हाई कोर्ट ने ठाणे पुलिस को लगाई फटकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्वामी रामगिरी महाराज के पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ टिप्पणी करने को लेकर दर्ज सभी 58 मामले की जांच सिन्नर के एमआईडीसी पुलिस स्टेशन को सौंपा दिया है। अदालत ने मुंबई साइबर पुलिस को सभी विवादित वीडियो को सोशल मीडिया से हटाने का निर्देश दिया है। साथ ही अदालत ने 4 सप्ताह में मामले में कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने को कहा है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष हजरत ख्वाजा गरीब नवाज वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से वकील मोहम्मद तौसिफ खान और वकील डॉ.एजाज नकवी की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील मोहम्मद तौसिफ खान ने दलील दी कि स्वामी रामगिरी के 15 अगस्त को पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर एक समुदाय विशेष के लोगों में भारी नाराजगी है। मुंबई समेत राज्य भर में 58 मामले दर्ज है। इसके बावजूद पुलिस ने स्वामी रामगिरी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस मामले में उनकी गिरफ्तारी की जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि पुलिस कानून के मुताबिक निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई करेगी। सभी 58 मामले की एक साथ जांच सिन्नर के एमआईडीसी पुलिस स्टेशन करेगा। पुलिस को 4 सप्ताह में मामले की जांच कर कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया गया है। वकील एजाज नकवी ने नासिक जिले के सिन्नर तालुका के शाह पंचाले गांव में एक धार्मिक कार्यक्रम में पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ की गई टिप्पणी को सोशल मीडिया से हटाने का आग्रह किया। पीठ ने मुंबई के साइबर पुलिस को सोशल मीडिया से सभी विवादित सामग्री हटाने का भी निर्देश दिया।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने शिवसेना सांसद रविंद्र वायकर को लोकसभा में जीत को लेकर हलफनामा दाखिल करने का दिया निर्देश

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के सांसद रविंद्र वायकर को लोकसभा में जीत को लेकर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर ने वायकर की जीत के खिलाफ याचिका दायर की है। याचिका में वायकर के सांसद के रूप में चुनाव को रद्द करने और उन्हें विजेता घोषित करने का अनुरोध किया गया है। कीर्तिकर मुंबई के उत्तर-पश्चिम लोकसभा क्षेत्र से वायकर के खिलाफ चुनावी मुकाबले में 48 वोटों के अंतर से हार गए थे। 3 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है। न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की एकलपीठ के समक्ष अमोल कीर्तिकर की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान वायकर की ओर से वरिष्ठ वकील अनिल सखारे पेश हुए। पीठ ने वायकर को कीर्तिकर की याचिका का जवाब के लिए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। कीर्तिकर की याचिका दावा किया गया है कि उन्होंने विसंगतियों के कारण मतगणना के दिन मतों की पुनर्गणना का अनुरोध किया था। नजदीकी मुकाबले में वायकर को 4,52,644 वोट मिले और कीर्तिकर को 4,52,596 वोट मिले। मतगणना प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग के अधिकारियों द्वारा गंभीर चूक की गई, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित किया। चुनाव आयोग ने वास्तविक मतदाताओं के स्थान पर 333 नकली मतदाताओं द्वारा डाले गए अमान्य मतों को अनुचित तरीके से स्वीकार गया। वह (याचिकाकर्ता) ईसीआई अधिकारियों द्वारा मतगणना प्रक्रिया से संबंधित नियमों के उल्लंघन के कारण व्यथित हैं, जिससे चुनाव परिणामों पर असर पड़ा है। कीर्तिकर ने अदालत से समीक्षा के लिए पूरी चुनाव आयोग से मतगणना प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग मंगवाने का अनुरोध किया है।

हत्या के प्रयास के मामले की सुस्त जांच और लापरवाही के लिए हाई कोर्ट ने ठाणे पुलिस को लगाई फटकार

वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने हत्या के प्रयास एक मामले की सुस्त जांच और लापरवाही के लिए ठाणे पुलिस को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि यह आपराधिक न्याय प्रणाली का मजाक है। हम इस मामले को ठाणे के पुलिस आयुक्त के संज्ञान में लाना उचित समझते हैं और उन्हें हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं। मामले की अगली सुनवाई 13 सितंबर को रखी है। दो आरोपियों की दायर याचिका में उनके खिलाफ दर्ज हत्या के प्रयास और डकैती के मामले को रद्द करने का अनुरोध किया गया है। उन पर कथित तौर पर एक व्यक्ति और उसकी मां पर तलवार एवं लोहे की रॉड से हमला कर लूटपाट करने का आरोप है। न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ के समक्ष दो आरोपियों की याचिकाओं पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि हत्या के प्रयास और डकैती के अपराध गंभीर प्रकृति के हैं। यह बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ अपराध हैं। पुलिस ने पीठ को बताया कि आरोपियों ने उन्हें एक पत्र दिया था, जिसमें दावा किया गया था कि वे (शिकायतकर्ता) मामले को निपटाना चाहते हैं। इसलिए मामले की जांच रोक दी गई। पीठ ने इस पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि मामले में अपराध हत्या के प्रयास और डकैती का था। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी व्यक्तियों के विरुद्ध अपराध गंभीर प्रकृति का है। धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 397 (डकैती) के अंतर्गत अपराध समाज के विरुद्ध अपराध है। इसलिए जांच अधिकारी को जांच पूरी करनी चाहिए थी। भले ही पक्षों द्वारा समझौता करने की मंशा व्यक्त की गई हो। पीठ ने कहा कि यह एक और मामला है, जिसमें हत्या के प्रयास के अपराध की जांच सबसे अधिक उदासीन और सुस्त तरीके से की गई। हमारे अनुसार यह वर्तमान अपराध के जांच अधिकारी द्वारा आपराधिक न्याय प्रणाली का मजाक उड़ाना है। पीठ ने कहा कि राज्य को गंभीर अपराधों की जांच करनी होती है। वह अपराधों के होने और उसके बाद पक्षों द्वारा किसी भी कारण से समझौता किए जाने पर मूकदर्शक नहीं रह सकते। जिस तरह से जांच की गई, वह पुलिस की ईमानदारी पर संदेह पैदा करने के लिए पर्याप्त है।

Created On :   2 Sept 2024 10:43 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story