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बॉम्बे हाई कोर्ट में मामले: माता-पिता के प्रति बच्चों के बेरुखी पर गहरी चिंता, सांसदों-विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की 30 दिनों में सुनवाई करें पूरी, नौसेना की महिला को मुआवजा देने का निर्देश

- माता-पिता के प्रति बच्चों के बेरुखी के बरताव गहरी चिंता जताई
- राज्य में सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की 30 दिनों में सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाने का निर्देश
- भारतीय नौसेना में कार्यरत रही महिला को 58 लाख मुआवजा इंश्योरेंस कंपनी को देने का दिया निर्देश
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने माता-पिता के प्रति बच्चों के बेरुखी को लेकर गहरी चिंता जताई। अदालत ने कहा कि आज के ज़माने में बच्चे तीर्थयात्रा के बजाय माता-पिता को अदालत ले जाते हैं। कोल्हापुर में रह रहे अपने माता-पिता को मुंबई में इलाज के लिए अपने घर का इस्तेमाल करने से रोकने की मांग करने वाले एक व्यक्ति की याचिका पर अदालत ने निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि माता-पिता को कोई असुविधा न हो और उनके साथ अत्यंत सम्मान, प्यार और देखभाल के साथ व्यवहार किया जाए। न्यायमूर्ति जितेंद्र एस. जैन की एकल पीठ ने बेटे की याचिका पर श्रवण कुमार का हवाला देते हुए कहा कि यह एक और उदाहरण है। जहां एक बेटे ने अपने बीमार और वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने के नैतिक कर्तव्य का निर्वहन करने के बजाय प्रतिबंध की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया है। हमारी संस्कृति में निहित नैतिक मूल्य इस हद तक गिर गए हैं कि हम श्रवण कुमार को भूल गए हैं, जो अपने माता-पिता को तीर्थयात्रा पर ले गए थे और रास्ते में ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे। पीठ ने यह भी कहा कि आज के युग में हमारे बच्चों के पालन-पोषण में कुछ बहुत ही गंभीर गड़बड़ी है कि एक बच्चा अपने माता-पिता को तीर्थयात्रा पर ले जाने के बजाय उन्हें अदालत ले जा रहा है। अपने माता-पिता की देखभाल करना न केवल एक पवित्र और नैतिक कर्तव्य है, बल्कि यह प्रेम का एक ऐसा श्रम है, जो पूर्ण चक्र में आता है। जब आप अपने माता-पिता का सम्मान, प्रेम, आदर और देखभाल करना चुनते हैं, तो यह केवल कृतज्ञता की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह स्वयं ईश्वर का सम्मान है। दुख की बात है कि कठोर वास्तविकता कभी-कभी बिल्कुल अलग होती है, जब आपको एहसास होता है कि माता-पिता दस बच्चों की देखभाल कर सकते हैं, लेकिन कभी-कभी दस बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकते। पीठ ने कहा कि प्रतिवादियों के तीन बेटे हैं, जिनमें से एक मुंबई में, दूसरा नवी मुंबई में और तीसरा कोल्हापुर में रहता है और उन्हें नियमित रूप से इलाज के लिए मुंबई जाना पड़ता है। पीठ ने मामले के तथ्यों में जाए बिना और वर्तमान बच्चों के रवैये और माता-पिता के साथ किए जा रहे व्यवहार पर आगे कुछ लिखे बिना एक अंतरिम व्यवस्था के लिए आदेश पारित करने की आवश्यकता पर बल दिया। पीठ ने माता-पिता से कहा कि वे अपने मुंबई स्थित बेटे को अस्पताल में अपनी यात्राओं के बारे में सूचित करें। उसे और उसकी पत्नी को शहर पहुंचने पर उन्हें लेने उनके घर तक उनके साथ जाने और इलाज के दौरान उनकी सहायता करने के लिए कहें। बेटे को सभी संबंधित खर्च भी वहन करने होंगे। इलाज के बाद उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे बिना किसी असुविधा के सुरक्षित घर लौट आएं और जब माता-पिता अपने अन्य बेटों से मिलने जाना चाहें, तो उनकी यात्रा की व्यवस्था करनी होगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि उसके आदेश का उल्लंघन किया जाता है या माता-पिता को असुविधा होती है, तो बेटे को आदेश की अवमानना का दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू की जाएगी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य में सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की 30 दिनों में सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाने का निर्देश
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को राज्य के विभिन्न जिलों में सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की ट्रायल कोर्ट में चल रही सुनवाई को 30 दिनों में पूरी कर फैसला देने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने उन आरोपी सांसदों एवं विधायकों के बयान दो सप्ताह में दर्ज करने को कहा है, जिनके मामले की सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है। इसके अलावा अदालत ने आरोपियों के खिलाफ चार सप्ताह में आरोप तय करने का भी निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकारी वकील ने पीठ को विभिन्न जिलों में सांसदों एवं विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के पूरी लिस्ट सौंपी, जिसमें राज्य भर में जनप्रतिनिधियों के 488 मामले दर्ज है। इसमें 10 मामलों का निपटारा हो गया है। जबकि 16 मामलों पर हाई कोर्ट और 5 मामलों पर जिला न्यायालय ने रोक लगाया है। इसके साथ ही 47 मामलों में आरोप तय हो गए हैं। सरकारी वकील ने कहा कि 488 में घरेलु हिंसा से जुड़े मामले शामिल नहीं है। पीठ ने कहा कि जिन सांसदों और विधायकों के खिलाफ आरोप पत्र दायर हो चुके हैं, उनके मामलों की ट्रायल कोर्ट में 30 दिनों में सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाया जाए। 19 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है।
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने भारतीय नौसेना में कार्यरत रही महिला को 58 लाख मुआवजा इंश्योरेंस कंपनी को देने का दिया निर्देश
इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने भारतीय नौसेना के सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला में कार्यरत अलका विजय चौत्रे को 58 लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि एनएमएमसी जनरल अस्पताल के मेडिकल बोर्ड द्वारा उनकी जांच की गई। वह 43 फीसदी दिव्यांग पाई गई है। यह स्थायी प्रकृति की है, लेकिन इसमें सुधार की संभावना नहीं है। अलका को ये चोटें वाहन चालक द्वारा की गई वाहन दुर्घटना के कारण लगी थी। न्यायमूर्ति एस.एम.मोडक की एकल पीठ ने बीमा कंपनी बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस की याचिका खारिज करते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनी के पॉलिसी उल्लंघन, वीआरएस और मेडिक्लेम के बारे में तर्कों को नकारने में कोई गलती की है। इसलिए बीमा कंपनी की याचिका में कोई दम नहीं है। न्यायाधिकरण के मूल निर्णय के अनुसार दावेदार बीमा कंपनी द्वारा अलका को तीन सप्ताह के भीतर मुआवजे की राशि देनी होगी। 51 वर्षीय अलका विजय चौत्रे 8 जनवरी 2015 को सड़क पर खड़ी थी। इस दौरान टेम्पो के चालक ने तेज गति से टेम्पो को रिवर्स लिया और अलका को टक्कर मार दी। वह गंभीर रूप से घायल हो गई। उन्होंने मुंबई के शिवाजी नगर पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 279, 337, 338 और मोटर वाहन अधिनियम की धारा 184 के तहत टेम्पो चाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। इस दुर्घटना की वजह से अलका ने 23 मई 2016 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। इसके बाद उन्होंने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण में मुआवजा के लिए याचिका दायर किया। न्यायाधिकरण ने बीमा कंपनी को अलका के याचिका की तारीख 7.5 फीसदी प्रति वर्ष ब्याज सहित 58 लाख 54 हजार 183 रुपए मुआवजा उन्हें देने का निर्देश दिया। बीमा कंपनी ने न्यायाधिकरण के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
Created On :   14 Nov 2025 9:16 PM IST












