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फर्जीवाड़ा माफ नहीं, नाइंसाफी स्वीकार नहीं
डिजिटल डेस्क, नागपुर। फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर एमबीबीएस पाठ्यक्रम में अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग के तहत प्रवेश लेने वाली चंद्रपुर निवासी दो सगी बहनों को बॉम्बे हाई कोर्ट ने किसी प्रकार की राहत देने से इनकार कर दिया है। इन छात्राओं को राज्य चिकित्सा शिक्षा संचालनालय द्वारा एमबीबीएस की पढ़ाई से प्रतिबंधित किया गया है। छात्राओं ने जुर्माना भरने के बाद इस प्रार्थना के साथ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी कि उन्हें आेपन प्रवर्ग से शेष पढ़ाई पूर्ण करने दी जाए, लेकिन हाई कोर्ट ने साफ किया कि छात्राओं को इस प्रकार की राहत देना हाई कोर्ट के अधिकार में ही नहीं है। कानून स्पष्ट है कि अगर फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर प्रवेश लिया, तो पूरा प्रवेश ही अवैध माना जाएगा। इस निरीक्षण के साथ हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। मामले में सरकार की ओर से सरकारी वकील विनोद ठाकरे ने पैरवी की।
फर्जी था प्रमाणपत्र
दरअसल, याचिकाकर्ता छात्राओं ने चंद्रपुर के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल में शैक्षणिक सत्र 2016-17 में अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग से प्रवेश लिया। इसके लिए छात्राओं ने नागपुर एसडीओ द्वारा जारी किया गया जाति प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया। प्रवेश के बाद 20 सितंबर 2020 को जाति वैधता पड़ताल समिति ने उनका प्रमाण-पत्र फर्जी पाया। छात्राओं ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायलय तक चुनौती दी, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद डीएमईआर निदेशक ने छात्राओं को 21 जनवरी 2021 को नोटिस जारी करके गलत तरीके से मेडिकल की सीट हासिल करने के कारण 10-10 लाख रुपए जुर्माना भरने का आदेश दिया। वहीं कॉलेज ने भी छात्राओं को ओपन श्रेणी की 2.89 लाख रुपए फीस भरने को कहा। दोनों छात्राअों ने यह जुर्माना भर दिया। इसके बाद कार्रवाई करते हुए उनका एमबीबीएस प्रवेश रद्द कर दिया गया। ऐसे में छात्राओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। छात्राओं की दलील थी कि उन्होंने नियमानुसार पूरा जुर्माना और फीस भर दी है। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने दलील दी कि छात्राओं ने फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर मेडिकल में प्रवेश पाया। इसकी पुष्टि होने के बाद नियमों के तहत उन्हें प्रतिबंधित किया गया। मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया है।
Created On :   9 Aug 2023 10:54 AM IST