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सावधान - मनोचिकित्सालय से चौंकाने वाला खुलासा, 5 साल में 78 युवा अवसादग्रस्त
- चौंकाने वाला खुलासा
- 5 साल में 78 युवा अवसादग्रस्त
डिजिटल डेस्क, नागपुर, चंद्रकांत चावरे | प्रादेशिक मनोचिकित्सालय, नागपुर के हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। मामला किशोरों और युवाओं से जुड़ा है, इसलिए गंभीरता और भी बढ़ जाती है। कोरोनाकाल के पहले, कोरोनाकाल काल के दौरान और फिर इसके बाद यहां उपचार के लिए आने वाले मरीजों में किशोरों और युवाओं की संख्या नई पीढ़ी के अवसादग्रस्त होने व उसका प्रमाण बढ़ने का संकेत दे रही है। यह स्थिति विकास की नई इबारत लिख रहे शहर के लिए खतरे की घंटी बजा रही है। इसलिए किशोरों और युवाओं को लेकर गंभीर होना जरूरी है।
तब मंजिल की तलाश चरम पर होती है : आमतौर पर 20 से 30 वर्ष की उम्र में युवा अपनी मंजिल तलाश रहे होते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए खुद को तैयार कर रहे होते हैं। इस उम्र में अगर अवसाद घेरने लगे, तो अभिभावकों को चेत जाना चाहिए। प्रादेशिक मनोचिकित्सालय, नागपुर के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018-19 के दौरान उपचार के लिए 11-20 साल के करीब 13 किशोरों को लाया गया। इसी साल 21 से 30 साल के 9 युवाओं को भी अवसाद से ग्रसित पाया गया। हालांकि कोरोनाकाल के दौरान वर्ष 2019-20 और 2022-21 में अवसादग्रस्त किशोरों और युवाओं की संख्या काफी कम रही। ध्यान रहे, इस दौरान स्कूल और कॉलेज बंद रहे थे। परीक्षा परिणामों का खास तनाव नहीं था। अलग-अलग स्तर पर औसतन स्थिति रखी गई थी। इसलिए प्रतिस्पर्धा और उसके कारण उपजे तनाव जैसी कोई बात नहीं थी। इसकी पुष्टि भी अगले ही साल होती है, जब वर्ष 2021-22 में अचानक अवसादग्रस्त किशोरों और युवाओं की संख्या क्रमश: 14 और 7 तक पहुंच गई। इसी प्रकार 2022 में भी अवसादग्रस्त किशोरों और युवाओं की संख्या क्रमश: 16 और 6 तक पहुंच गई।
समस्या की सीमा
इस समय दुनिया 10-24 वर्ष की आयु के 1.8 अरब युवाओं का घर है, जो विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग एक-चौथाई योगदान करते हैं। भारत में इस आयु वर्ग की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है। यह भविष्य पर प्रमुख प्रभाव डालने वाला प्रारंभिक काल है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में लगभग 20-25 प्रतिशत युवा अवसाद से पीड़ित हैं। भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 8 का अनुमान है कि 18-29 वर्ष के आयु वर्ग में मानसिक विकारों की वर्तमान व्यापकता 7.39 प्रतिशत (तंबाकू उपयोग विकार को छोड़कर) और जीवनकाल की व्यापकता 9.54 प्रतिशत है। ऐसा माना जाता है कि सभी मानसिक बीमारियों में से लगभग आधी 14 वर्ष की आयु तक और तीन-चौथाई 20 वर्ष की आयु के मध्य तक शुरू हो जाती हैं।
हर घर में आमतौर पर देखा जाता है कि दसवीं व बारहवीं में पास होने वाले बच्चों की परिजनों से खास अपेक्षा होती है। वे मनपसंद वस्तुओं की मांग करते हैं। मगर, इसी समय अभिभावकों को आर्थिक मोर्चे पर उनके स्वर्णिम भविष्य के लिए लड़ना पड़ता है, ऐसे में यदि उन्हें वह वस्तु खरीदकर नहीं दी गई तो, वे तनावग्रस्त हो जाते हैं। परिजन तबीयत खराब होने का अनुमान लगाकर सामान्य क्लीनिक में दिखाते हैं। असर नहीं होने पर मनोचिकित्सकों को दिखाया जाता है। मनोचिकित्सालय में पिछले तीन साल में ऐसे ही जुड़े मामलों में 78 बच्चों का उपचार किया गया है।
हर साल औसत 26 बच्चों का उपचार
प्रादेशिक मनोचिकित्सालय के आंकड़े बताते हैं कि यहां ओपीडी में हर रोज 250 से अधिक मरीज उपचार के लिए आते हैं। इसमें सभी आयु वर्ग के और विविध मनोरोग से ग्रस्त मरीज होते हैं। इनमें बच्चों का भी समावेश होता है। प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में 2021 से 2023 तक 78 बच्चों का उपचार किया गया है। यानी हर साल ऐसे औसत 26 बच्चों का उपचार किया जाता है।
समुपदेशन का अब तक बेहतर परिणाम
मनोचिकित्सालय में समुपदेशन किया जाता है। फिर मनोचिकित्सक द्वारा बच्चों की मानसिक स्थिति की जांच की जाती है। उस आधार पर उसका उपचार किया जाता है। समय पर उपचार नहीं किया गया तो परिणाम घातक हो सकते हैं।
साल | उम्र (11-20) | उम्र (21-30 साल) |
2018-19 | 13 | 09 |
2019-20 | 03 | 02 |
2020-21 | 05 | 03 |
2021-22 | 14 | 07 |
2022-23 टोटल | 16 51 | 06 27 |
(इस तरह प्रादेशिक मनोचिकित्सालय के आत्महत्या प्रतिबंधक क्लिनिक (आरएमएचनएन सुसाइड प्रिवेंशन क्लिनिक) में कुल 78 विद्यार्थियों का उपचार किया गया।)
प्रलोभन से अपेक्षाएं न थोपें
डॉ. श्रीकांत करोडे, प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक, प्रादेशिक मनोचिकित्सालय, स्पर्धा के दौर में अभिभावकों द्वारा बच्चों पर अपनी अपेक्षाएं थोप दी जाती हैं। उसे पूरी करने के लिए प्रलोभन दिया जाता हैं। जिद पूरी नहीं हुई तो बच्चा तनावग्रस्त होता है। ऐसे में मनोरोग के लक्षण दिखाई देते हैं। इसलिए अभिभावकों ने बच्चों पर अपनी अपेक्षाएं नहीं थोपनी चाहिए।
Created On :   30 July 2023 4:25 PM IST