समलैंगिक विवाह.का डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों ने किया विरोध

समलैंगिक विवाह.का डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों ने किया विरोध
दिल्ली की संवर्धिनी न्यास संस्था ने किया सर्वेक्षण

डिजिटल डेस्क. नागपुर। भले ही समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन बड़ी संख्या में डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों ने इस तरह के विवाह का कड़ा विरोध किया है। दिल्ली की संवर्धिनी न्यास संस्थाने देश के विभिन्न हिस्सों में चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े डॉक्टर और विशेषज्ञों के बीच एक सर्वेक्षण किया, जिसमे नागपुर भी शामिल है। इस सर्वे में चिकित्सा क्षेत्र में 5 साल से अधिक अनुभवी डॉक्टर और चिकित्सकों ने हिस्सा लिया। जिन्होंने माना कि समलैंगिकता एक विकार है और समलैंगिक पालकों की परवरिश से बच्चों पर दुष्परिणाम हो सकते हैं।

सर्वे का निष्कर्ष

संवर्धिनी न्यास के सर्वेक्षण के बाद निष्कर्ष सामने आया है। जिसमें 61 प्रतिशत डॉक्टरों ने कहा कि, समलैंगिकता एक विकार है। 67% डॉक्टरों ने कहा, गोद लिए गए बच्चों की परवरिश पर गंभीर सवाल उठाए जा सकते हैं। 83% डॉक्टरों ने संदेह व्यक्त किया कि, ऐसे संबंधों से यौन संचारित रोग बढ़ेंगे। 57% डॉक्टर ने कोर्ट से इसमें हस्तक्षेप न करने का अनुरोध किया है, जबकि 84 फीसदी डॉक्टरों ने कहा- सुप्रीम कोर्ट को ऐसे विवाह को कानूनी मान्यता नहीं देना चाहिए।

फैसला लेने में जल्दबाजी नहीं करना चाहिए

-300 से अधिक डॉक्टर समलैंगिक विवाह के विरोध में संवर्धिनी न्यास द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, समलैंगिकता न केवल एक कानूनी या चिकित्सा का मुद्दा है, बल्कि यह मुद्दा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज के विभिन्न वर्गों को प्रभावित भी करता है। सर्वेक्षण के बाद संवर्धिनी न्यास ने उम्मीद जताई है कि, समलैंगिकता पर उठने वाले सवालों में और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट को इस संबंध में फैसला लेने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। अगर सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देता है, तो समलैंगिकता में जाने वाले पुरुषों और महिलाओं का कभी भी इलाज नहीं किया जा सकता है और उन्हें सामान्य जीवन में वापस नहीं लाया जा सकता है। यह विभिन्न सामाजिक समस्याएं पैदा करेगा। संवर्धिनी न्यास के सर्वेक्षण के बाद निष्कर्ष सामने आया है। जिसमें 61 प्रतिशत डॉक्टरों ने कहा कि, समलैंगिकता एक विकार है। 67% डॉक्टरों ने कहा, गोद लिए गए बच्चों की परवरिश पर गंभीर सवाल उठाए जा सकते हैं। 83% डॉक्टरों ने संदेह व्यक्त किया कि, ऐसे संबंधों से यौन संचारित रोग बढ़ेंगे। 57% डॉक्टर ने कोर्ट से इसमें हस्तक्षेप न करने का अनुरोध किया है, जबकि 84 फीसदी डॉक्टरों ने कहा- सुप्रीम कोर्ट को ऐसे विवाह को कानूनी मान्यता नहीं देना चाहिए।

प्रकृति से खेलने के दुष्परिणाम होते हैं

प्रकृति ने महिला और पुरुष को शारीरिक और मानसिक रूप से अलग बनाया है। इसमें अगर हम छेड़छाड़ करेंगे, तो इसके विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं। अगर महिला एक महिला से और पुरुष एक पुरुष से विवाह करेगा, तो बच्चों को एक मां का सुख और पिता का सुख नहीं मिल सकेगा। ऐसे बच्चे अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं, उनमे असुरक्षा का भाव रहता है। अगर मां या पिता में किसी एक की मृत्यु हो जाती है और सिंगल पैरेंट को बच्चे की परवरिश करनी पड़े, तो विषय अलग है। -डॉ. अपर्णा सदाचार, संवर्धिनी न्यास, नागपुर कोर टीम सदस्य

पढ़े-लिखे डॉक्टर ये नहीं कहेंगे

इस तरह की कोई भी संस्था इस बात की पुष्टि नहीं कर सकती कि, समलैंगिक विवाह अवैध है और उनके बच्चों को किसी तरह की बीमारी हो सकती है। इस पर पहले भी रिसर्च हो चुकी है। अगर ये सत्य है, तो अभी तक इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इसे क्यों नहीं माना? सर्वे में ये डॉक्टर कौन थे, इसकी जानकारी मुझे नहीं है, लेकिन पढ़े-लिखे डॉक्टर समलैंगिक विवाह से समाज को खतरा और उनके बच्चों पर कोई विपरीत परिणाम होंगे, इस तरह की भाषा का उपयोग नहीं कर सकते हैं। डॉ. सुरभि मित्रा, मनोचिकित्सक

Created On :   10 May 2023 2:27 PM IST

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