घोर लापरवाही, सिजेरियन टांके आधे खुले और आधे बंद

घोर लापरवाही, सिजेरियन टांके आधे खुले और आधे बंद
  • प्रसव से भी ज्यादा पीड़ा झेल रही महिला
  • नवजात के साथ 13 दिन दौड़ती रही महिला

चंद्रकांत चावरे , नागपुर । सरकारी अस्पताल में कुछ डॉक्टरों व सहायक कर्मचारियों की लापरवाही फिर सामने आई है। मामला डागा स्मृति शासकीय महिला अस्पताल नागपुर का है। यहां एक महिला की सिजेरियन पद्धति से प्रसूति हुई। टांके निकालते समय पता चला जख्म पूरी तरह सूखा नहीं है। बावजूद इसके वहां की सहायक महिला कर्मियों ने आधे टांके खोल दिये। जब गीलापन महसूस हुआ तो अाधे टांके वैसे ही छोड़ दिये। और तो और, वहां के एक डॉक्टर ने जख्म की नमी को देखते हुए तुरंत बैंडेज कर दिया। टांके आधे खुले और आधे बंद रह गए।

ुटांके खोलने बुलाया, जख्म पर किया बैंडेज : कलमना निवासी महेश्वरी चंद्रशेखर अडील (23) 16 मई को दोपहर 2.30 बजे पति के साथ डागा अस्पताल में प्रसूति के लिए गई थी। 17 मई को दोपहर 11.45 बजे महेश्वरी ने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। प्रसूति होने के पहले 21 घंटे तक उसे बेड ही नहीं दिया गया। 17 मई को प्रसूति के बाद उसे वार्ड नंबर 7 में बेड दिया गया। तब तक वह वार्ड के बाहर ही एक लंबी कुर्सी पर पड़ी रही। 20 मई को शाम 4 बजे उसे छुट्‌टी दे दी गई। सिजेरियन के टांके खोलने के लिए संबंधित डॉक्टर ने उसे 26 मई को बुलाया। पति चंद्रशेखर अडील ने बताया कि वह पत्नी महेश्वरी को लेकर 26 मई को सुबह 9 बजे डागा पहुंचे। महेश्वरी ओपीडी में गई। कुछ देर बाद लौटने पर महेश्वरी ने बताया कि ओपीडी में काफी समय तक सुलाकर रखा गया। इसके बाद एक सिस्टर ने टांके खोले। टाके खोलते-खोलते पता चला कि जख्म पूरी तरह सूखा नहीं हैं। घबराहट में सिस्टर ने आधे टांके नहीं खोले। उसने कहा कि डॉक्टर को दिखा दीजिए। इसके बाद महेश्वरी भीतर बैठी डॉक्टर के पास पहुंची। डॉक्टर ने बिना किसी जांच के सिजेरियन के जख्म पर बैंडेज कर दिया। इसके बाद 5 दिन बाद यानि 30 मई को बुलाया गया।

डागा अस्पताल के कर्मचारियों की बड़ी लापरवाही : सुरक्षा गार्ड ने की दादागिरी, दोनाें काे भगा दिया : महेश्वरी 30 मई तक इंतजार नहीं कर पाई। घर आने पर असह्य दर्द होने लगा। 27 तारीख को महेश्वरी पति के साथ फिर डागा पहुंची। सुरक्षा गॉर्ड ने हालात को जाने बिना उससे कहा कि 5 दिन बाद बुलाया है, तो 5 दिन बाद ही आना। गार्ड ने पति-पत्नी को भगा दिया। एक दिन और निकल गया। दर्द जब सीमा से बाहर हुआ तब 29 मई को दोनों ने नरसाला के निजी क्लीनिक का रास्ता पकड़ा। वहां के डॉक्टर ने जांच की, बैंडेज खोला तो बताया कि हालात गंभीर है। अंदर के कुछ हिस्से बाहर भी आ सकते हैं। चंद्रशेखर के अनुसार, बैंडेज खोलने पर आधे टांके के धागे लटक रहे थे। डॉक्टर ने बताया कि महेश्वरी को जल्दी डागा लेकर जाइए। दोनों ऑटो से रात 11 बजे डागा पहुंचे। उस समय सुरक्षा गार्ड नहीं थे, इसलिए भीतर प्रवेश कर गए। रात को डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने रात 12 बजे ड्रेसिंग कर अगले दिन बुलाया।

टांके निकालने से हो गई जगह खराब : 30 मई को जब सहनशक्ति खत्म हुई तो चंद्रशेखर ने महेश्वरी को सीए रोड के एक निजी महिला अस्पताल में भर्ती कर दिया। यहां की महिला डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि सिजेरियन का जख्म सूखा नहीं था, फिर भी टाके निकालने से वह स्थान खराब होने लगा है। वहां पस जमा हो गया है। स्किन खराब होने लगी है। भीतर संक्रमण फैलने की आशंका व्यक्त की। इसके बाद जहां टांके लगे थे, वहां सफाई कर विशेष पद्धति से बैंडेज किया गया। 31 तारीख को उसे छुट्‌टी दी गई। लेकिनकहा गया है कि 2 जून को बैंडेज खोलकर फिर से सफाई व अन्य प्रक्रिया कर नए सिरे से टांके लगाए जाएंगे, तब जाकर महेश्वरी खतरे से बाहर होगी।

रक्त लेने सुइयां चुभोते रहे, नहीं मिलीं नसें : अगले दिन 30 मई को पति-पत्नी सुबह 9 बजे डागा पहुंचे। वहां वार्ड क्रमांक 5 और 7 को लेकर सुरक्षा गार्ड ने विवाद किया। इसके बाद चंद्रशेखर को अस्पताल परिसर से ही बाहर भगा दिया। चंद्रशेखर ने पूर्व पार्षद सेलोकर काे कॉल किया। उसने अधीक्षक डॉ. सीमा पारवेकर का नाम बताकर मिलने कहा, लेकिन अधीक्षक मैडम काफी खोज करने के बाद भी 4 बजे तक मिली नहीं। इसके बाद एक अन्य डॉक्टर से मिलने कहा गया। इस डॉक्टर ने किसी और के पास भेजा। इसके बाद वार्ड क्रमांक 7 में उसके रक्त के नमूने लेने थे। वहां नौसिखिया नर्सों ने 6-7 जगह पर सुईं चुभोई , लेकिन रक्त की नस ही नहीं मिल रही थी। उनके काम की पद्धति से महेश्वरी दर्द से कराहती, आंसू बहाती रही। कुछ महिलाओं को अलग-अलग कारणों से समस्या : हमने संबंधित मरीज की खोजबीन की, लेकिन वे परिसर से चले गए थे। सिजेरियन के बाद टांके खाेलने की जाे प्रक्रिया की गई, वह सामान्य है। सभी महिलाओं की स्कीन एक जैसी नहीं होती। कुछ महिलाओं को अलग-अलग कारणों से समस्या होती है। इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं है। मरीज को अस्पताल के आरएमओ से मिलना चाहिए था। आरएमओ उन्हें सही सलाह देते। अब भी वे अस्पताल में आ सकते हैं। किसी भी अस्पताल में यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। -डॉ. सीमा पारवेकर, अधीक्षक, डागा अस्पताल नागपुर

Created On :   2 Jun 2023 11:58 AM IST

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