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मरीजों की सेवा करते-करते अपनों को समय नहीं दे पा रहीं नर्स
डिजिटल डेस्क, मुंबई, मोफीद खान| सिस्टर! जैसा पवित्र संबोधन है, वैसा ही पवित्र है यह पेशा। रोगियों की सेवा करने के साथ-साथ हौंसला बंधाती, उनमें जूझने का उत्साह भी बढ़ाता है। ठीक होने पर मरीज थैंक्यू सिस्टर, भी कहते हैं। मरीजों की सेवाओं को अपना दायित्व मानते हुए वे अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाती हैं। इसका उन्हें दर्द तो है, लेकिन वे अपना दर्द मरीजों की सेवा में भूल जाती हैं। हर वर्ष 12 मई को विश्व नर्स दिन मनाया जाता है। यह दिन सभी नर्स के सेवाभाव को रेखांकित करता है। अस्पतालों की कुछ नर्सों ने दैनिक भास्कर से बातचीत करते हुए अपना दर्द, परेशानियां और अनुभव साझा किए।
पति का भरपूर सहयोग : मनपा के नायर अस्पताल में ज्योति ढाकने बीते 12 वर्षों से नर्स की ड्यूटी कर रही हैं। ज्योति ने बताया कि उन्हें अपने पति से काफी सहयोग मिला है। उनके पति भी पेशे से नर्स हैं और उनके दो बच्चे हैं। ज्योति को इस बात का दर्द है कि एकांत की वजह से उनका छोटा बच्चा ठीक से बोल नहीं पाता है, जिससे आज उसे स्पीच थेरेपी की जरूरत पड़ी।
परिवार को नहीं दे पाते है समय: मुलुंड के वीर सावरकर अस्पताल में कार्यरत नर्स लीना प्रवीण निकाले ने बताया कि वह अपने पेशे से काफी खुश हैं। नर्स के साथ-साथ उन्हें एक पत्नी और एक मां की भी भूमिका निभानी पड़ती है। मरीजों की सेवा करते हुए वह अपने परिवार की देखभाल करने की भी कोशिश करती हैं। वह बताती हैं कि मैं अपने परिवार को पूरा समय नहीं दे पाती।
नहीं मिलती छुट्टी : केईएम अस्पताल में बीते 13 वर्षों से मेल नर्स के रूप में प्रशांत कराड सर्जरी वॉर्ड में कार्यरत हैं। प्रशांत बताते हैं, काम का दबाव इतना रहता है कि हम अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाते हैं। माता-पिता मुंबई से 500 किमी की दूरी पर बीड़ जिला के परली बैजनाथ में रहते हैं। सप्ताह में एक दिन ही छुट्टी मिलती है। इसी एक दिन में वे अपने माता-पिता से मिलकर आते हैं।
Created On :   12 May 2023 7:52 PM IST