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विचार: विचारों से ही सोशल वर्क करने का मिलेगा मोटिवेशन
डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारतीय समाज में जाति-प्रथा और डायवर्सिटी का उल्लेख करते हुए विद्यापीठ अनुदान आयोग (यूजीसी) के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. सुखदेव थोरात ने कहा कि जाति-प्रथा के कारण हिंदू धर्म में मिशनरी का अभाव है। इसका असर सोशल वर्क पर भी दिखता है। जाति व्यवस्था सहानुभूमि को भी डिवाइड करती है। हर कोई अपने-अपने वर्ग के लिए काम कर रहा है। इसलिए सोशल वर्क की स्टडी में डायवर्सिटी का कैरेक्टर लाना जरूरी है। सोशल वर्क कोर्स को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचारों से जोड़कर डिग्री या डिप्लोमा कोर्स तैयार करने पर विचार होना चाहिए है। कोर्स को विचारधारा से जोड़ने पर सोशल वर्क को और अधिक प्रभावी तरीके से करने का मोटिवेशन मिलेगा।
सोशल वर्क का प्रशिक्षण : राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विद्यापीठ के डॉ. बाबासाहब आंबेडकर अध्यासन विभाग द्वारा ‘शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित हो’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया था। कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. थोरात ने ऑनलाइन मार्गदर्शन किया। मंच पर प्रमुख वक्ता डॉ. आंबेडकर चेयर, एनआईएसडब्ल्यूएएसएस भुवनेश्वर (ओडिसा) की प्रोफेसर डॉ. शश्मी नायक, नागपुर विद्यापीठ में इतिहास विभाग के प्रमुख डॉ. श्याम कौरती, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर अध्यासन विभाग के प्रमुख प्रो. अविनाश फुलझेले उपस्थित थे। डॉ. थोरात ने आगे कहा कि अनेक संस्थाओं में सोशल वर्क का प्रशिक्षण दिया जाता है। कुछ ने सोशल वर्क का कोर्स भी शुरू किया है। इससे समझ में आता है कि सामाजिक कार्य होता है। समस्याओं को हल करने के लिए अगर विचारधारा नहीं है तो समस्या हल नहीं होगी। सिर्फ सोशल वर्क ही रहेगा। बुद्धिज्म में दु:ख और उसका कारण बताया गया है। वह दु:खों के निर्मूलन कार्य के लिए प्रेरित करता है। अगर विचारधारा है तो सोशल वर्क में मोटिवेशन मिलेगा। विचारधारा से प्रेरित हुए बिना हम सेक्युलर तरीके से कार्य कैसे कर सकेंगे। इसलिए सोशल वर्क को विचारों से जोड़ना जरूरी है। मोटिवेशन ही बदलाव लाएगा।
बाबासाहब का नारा आज भी सार्थक : कार्यशाला के विषय की सराहना करते हुए डॉ. श्याम कौरती ने कहा कि हमें स्कूलों में उदाहरण दिया जाता था। इकट्ठा लकड़ियों को तोड़ नहीं सकते। इसलिए बाबासाहब ने शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित हो का नारा दिया। यह आज भी सार्थक है। जाति प्रथा का उन्मूलन आवश्यक है। शिक्षित लोग ही संघर्ष की भाषा और मानवाधिकारों को समझते हैं। वे जानते थे कि शिक्षित वर्ग अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है। संघर्ष और संगठित होकर अधिक प्रभावशाली काम कर सकते हैं। डॉ. शश्मी नायक ने भी अपने विचार रखे।
व्यवस्था में सहानुभूति की कमी : कार्यशाला की भूमिका विषद करते हुए प्रो. अविनाश फुलझेले ने बताया कि कार्यक्रम को भुवनेश्वर के सहयोग से आयोजित किया गया है। बाबासाहब ने पहला संगठन बहिष्कृत हितकारिणी सभा बनाया और शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित होने का नारा दिया था। भारत में जाति को कैसे तोड़ें और समाज को कैसे एक साथ लाया जाए यह स्पष्ट किया था। भारत में जाति प्रथा क्यों है? इसका संशोधन करने पर पता चलता है कि हिंदू व्यवस्था में सामाजिक सहानुभूति की कमी है। जिसकारण गाय को पानी, रोटी तो दी जाती है, लेकिन इंसान को नहीं। इसके लिए एक ही रास्ता है शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित होे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सरोज डांगे और आभार प्रदर्शन प्रो. प्रीति वानखेड़े ने किया।
Created On :   22 Sept 2023 2:53 PM IST