तिरंगे के सम्मान के लिए प्राण देने तक तैयार

तिरंगे के सम्मान के लिए प्राण देने तक तैयार
  • संघ मुख्यालय पर तिरंगा क्यों नहीं फहराया?
  • सम्मान के लिए प्राण देने तक तैयार
  • अग्रसेन छात्रावास में बच्चों को मार्गदर्शन करने पहुंचे सरसंघचालक मोहन भागवत से बच्चों ने पूछे सीधे सवाल

डिजिटल डेस्क, नागपुर. पढ़ना क्यों है, यह तय हुआ तो पढ़ना क्या है, यह भी तय हो जाएगा। किताबों की पढ़ाई के साथ जीवन शैली की पढ़ाई की भी जरूरत है। यह विचार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने व्यक्त किए। बुधवार को शहर के अग्रसेन छात्रावास में बच्चों को मार्गदर्शन करते वह बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि कई बार हमें जिंदगी पाठ पढ़ाना चाहती है, परंतु हम समझ नहीं पाते और हाथ आया मौका छोड़ देते हैं। सरसंघचालक से बच्चों ने कई विषयों पर खुलकर सवाल किए। एक बार सवाल सुनकर वहां मौजूद लोग भी चौंक गए। कार्यक्रम में अग्रवाल समाज के शिवकिशन अग्रवाल, लक्ष्मीकांत अग्रवाल, कैलास जोगानी, रामानंद अग्रवाल विशेष रूप से उपस्थित थे।

वंश मुनिया ( धामनगांव) ने पूछा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि जब कोई भी छोटी जाति का व्यक्ति बड़े पद पर जाएगा, तो आरक्षण क्लीयर हो जाएगा। अभी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु हैं। क्या यह आरक्षण खत्म होगा या फिर आगे कब तक रहेगा?

अपने देश में सामाजिक विषमता का इतिहास रहा है। हमने अपने ही समाज के बंधुओं को सामाजिक व्यवस्था के तहत पीछे रखा। करीब 2 हजार वर्ष से ऐसा चला है। महाभारत में भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं। बराबरी में लाने के लिए उपाय योजना करने पड़ेंगे। आज भी जातिवाद है, पर छुपा जाति भेद है। आरक्षण को समझने की बात तर्क की नहीं, मन की बात है। अब ऐसे लोगों को आरक्षण दिया जाए, जिन्हें इनकी जरूरत है। नफा-नुकसान का विचार न करें। इन विचारों के साथ उन्होंने आरक्षण को समर्थन देने की बात कही।

भारत आपकी नजर में अखंड भारत कब तक हो जाएगा? - विराट सिंघल

मैं तो जानवरों का डॉक्टर हूं, भविष्यवक्ता नहीं। मगर यदि आप जैसे युवा अभी से प्रयास करें तो आपके बूढ़े होने तक इसके आसार नजर आने लगेंगे।

आजकल के बच्चे भारत में मिलने वाले संसाधन, सुविधा का उपयोग कर बड़ी शिक्षा हासिल करते हैं और विदेश में जाकर बस जाते हैं। ऐसे में भारत का विकास कैसे होगा?

- विषम अग्रवाल

आज लोग विदेश जाकर थोड़ा पैसा कमाकर यहां आकर समाजसेवा करते हैं। पूरे देश में इसकी संख्या बढ़ रही है। नई पीढ़ी देश सेवा में तत्पर है।

आरएसएस हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद को कैसे जोड़ता है?

-श्लोक खंडेवाल ( तुमसर)

राष्ट्रवाद हम नहीं सोचते, हम राष्ट्रीयता सोचते हैं। मनुष्य समूह में जीता है तो सुरक्षित रहता है, लेकिन समूह में सब लोगों के स्वभाव बदलते रहते हैं। जैसे इंग्लैंड की भाषा इंग्लिश है, तब तक वह एक हैं। अरब के बिखरे कबीले को इस्लाम रीलिजन देकर एक किया। जब तक इस्लाम है, तब तक अरेबियाई हैं, नहीं तो वह अलग-अलग कबीले हैं, अलग-अलग राजवंश हैं। आर्थिक हित के चलते अमेरिका-इंग्लैड एक हैं। वरना स्पैनिश व अन्य यूरोपियन-अमेरिकन में खाई है। सत्ता है, तब तक एक आधार पर चलना पड़ता है। सत्ता चली गई, तो सब खत्म हो जाता है। हमारी विभिन्नता में ही एकता है। हिंदुत्व हमारा स्वभाव है।

52 साल आरएसएस मुख्यालय पर तिरंगा फहराने से परहेज क्यों?

- मानस नाईके (यवतमाल)

आपका कहना गलत है। हम लोग प्रति वर्ष 15 अगस्त 26 जनवरी को जहां हैं, वहां ध्वजारोहण करते हैं। एक घटना बताता हूं। 1933 में जलगांव के पास तेजपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। पहली बार 80 फीट ऊंचे पोल पर जवाहरलाल नेहरूजी के हाथ में रस्सी देकर ध्वज फहराया गया, लेकिन वह बीच में ही अटक गया। 10 हजार लोग थे, अब क्या करें, 40 फीट ऊंचे पर चढ़कर उसे ठीक करना था। तभी एक जवान दौड़कर आया। पोल पर चढ़कर ध्वज ऊपर तक ले गया और फहराया। सबने उसकी वाहवाही की। नेहरूजी ने उसकी पीठ थपथपाई। दूसरे दिन अधिवेशन में बुलाया। वहां उसका अभिनंदन करने की बात कही। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योकि कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि यह संघ की शाखा में जाता है। यह बात डॉ. हेडगेवार को पता चली। लंबी यात्रा कर उस व्यक्ति तक पहुंचे और उसे छोटा-सा पीतल का सिक्का और बख्शीश देकर उसकी पीठ थपथपाई। जब भी तिरंगे के सम्मान की बात आती है, तब संघ का हर स्वयंसेवक आगे रहता है। प्राण भी देने के लिए तैयार रहता है।

Created On :   7 Sept 2023 5:38 PM IST

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