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तीन माह में सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी, हाई कोर्ट को दी जानकारी
डिजिटल डेस्क, नागपुर। गणेशोत्सव अब करीब है। इसके साथ ही कई अन्य धार्मिक त्योहार भी शुरू हो जाएंगे, जिनमें जलस्रोतों में मूर्ति व अन्य सामग्री विसर्जित करने की प्रथा है। इससे जल प्रदूषण फैलता है। इसी मुद्दे पर केंद्रित सू-मोटो जनहित याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सुनवाई हुई, जिसमें प्रदेश के पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के उपायुक्त ने हाई कोर्ट में एक शपथ-पत्र दिया। कोर्ट को सूचित किया गया है कि पीओपी की समस्या पर पहले ही एक प्रशासकीय और एक तकनीकी समिति कार्य कर रही थी, लेकिन 17 मई 2023 को मुख्यमंत्री द्वारा ली गई बैठक में राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक नई समिति गठित की गई है। यह समिति पीओपी से प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों के हटाने का अध्ययन करके 3 माह में राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। इसके अलावा अगस्त 2022 में राज्य सरकार द्वारा जारी की गई अस्थाई नीति ‘जैसे की वैसे’ स्थाई तौर पर लागू करनी है या इसमें बदलाव करने हैं, इस मुद्दे पर भी अपनी राय देगी। राज्य सरकार ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों को अपनाते हुए यह नीति अपनाई थी। उक्त बैठक में सभी जिलाधिकारियों, मनपा आयुक्त व स्थानीय स्वराज संस्था प्रमुखों को उनके अधिकार क्षेत्र में इको फ्रेंडली तरीके से त्योहार मनाएं जाएं, यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।
ऐसी है अस्थाई नीति
-केवल प्राकृतिक तरीके से बनी पूरी तरह नष्ट होने वाली मूर्तियों को अनुमति। पीओपी की मूर्तियां प्रतिबंधित होंगी।
-मूर्तियों के अंदर भरने, आभूषण बनाने भूसे, सूखे फूल और प्राकृतिक रंगों के उपयोग को ही अनुमति, केमिकल रंग या डाई प्रतिबंधित।
-मूर्ति सजाने या पंडाल में सिंगल यूज प्लास्टिक या थर्माेकॉल पर भी प्रतिबंध।
-100 से अधिक मूर्तियां बनाने वाले मूर्तिकारों को मनपा या स्थानीय स्वराज संस्था से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य किया गया है।
-इन नियमों का उल्लंघन करने पर स्थानीय प्रशासन मूर्तिकार का डिपॉजिट जब्त करके उस पर कम से कम 2 वर्ष का प्रतिबंध।
-आयोजन समितियां केवल स्थानीय प्रशासन से लाइसेंस प्राप्त मूर्तिकार से ही मूर्ति खरीद सकेंगी।
Created On :   8 Aug 2023 11:08 AM IST