विद्या दान की ऐसी लगन, सेवानिवृत्ति के बाद भी बांट रहे ज्ञान

जागरुकता के लिए भी कर रहे कार्य, विभिन्न अभियानों में सरकार के साथ कदमताल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। एक शिक्षक अपने जीवन में बच्चों से लेकर हर आयु वर्ग को शिक्षा देकर उसके जीने का मार्ग आसान कर देता है। कहावत है कि गुरु बिना ज्ञान नहीं मिलता। शिक्षक की भूमिका इसी पर आधारित होती है। हर साल 5 सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर उनके सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। शहर की स्कूलों में विद्या दान का कार्य कर सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षक गण अब भी अपना धर्म निभा रहे हैं। समाज को शिक्षित व जागरुक करने का काम कर रहे हैं। ऐसे की कुछ शिक्षकों के कार्य की दखल ली गई है।

जिस स्कूल के विद्यार्थी थे, उसी स्कूल में बने मुख्याध्यापक : कोई बच्चा किसी स्कूल में अ, आ, इ, ई…पढ़ने जाए और एक दिन वह उसी स्कूल का मुख्याध्यापक बन जाए, एेसे उदाहरण शायद कम ही देखने को मिलते हैं। मनपा की महात्मा गांधी मराठी प्राथमिक शाला हनुमान नगर में प्राथमिक शिक्षा लेनेवाले संजय मधुकर पुंड इसी स्कूल में मुख्याध्यापक बनकर सेवानिवृत्त हुए हैं। पहली नियुक्ति 1984 में कला शिक्षक के रूप में नागपुर में हुई थी। 1992 में मनपा संचालित डॉ. बाबासाहब आंबेडकर माध्यमिक शाला में नियुक्ति हुई। 2016 से लालबहादुर शास्त्री हिंदी माध्यमिक शाला में मुख्याध्यापक के रूप में सेवारत हुए। इसी साल वे सेवानिवृत्त हुए हैं, लेकिन उन्होंने विद्या दान का कार्य बंद नहीं किया है। युवा स्पंदन पत्रिका के माध्यम से समाजहित में कार्य कर रहे हैं।

बच्चे आ ही जाते हैं घर में पढ़ने : राजेंद्र पुसेकर ने शिक्षा पूरी करने के बाद 1997 में शिक्षक बनकर विद्यादान का कार्य शुरू किया। प्राथमिक शिक्षक से लेकर प्रभारी शिक्षाधिकारी बनने तक का सफर तय किया। 1997 में में वे शिक्षक के रूप में नियुक्त किये गए। 2014 में वे मुख्याध्यापक बने। 2022 में नागपुर महानगर पालिका में प्रभारी शिक्षाधिकारी बने। इसी साल राममनोहर लोहिया स्कूल से सेवानिवृत्त हुए हैं। मनपा में प्रभारी शिक्षाधिकारी आकांक्षा द्वारा चलाए जा रहे अभियान की सफलता के लिए योगदान किया। सेवानिवृत्ति के बाद भी विद्यादान शुरू है। उनके घर में ही बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। सामाजिक कार्य से भी जुड़े हैं। उनके द्वारा शिक्षित विद्यार्थी देशभर के विविध विभागों में बड़े पदों पर आसीन हैं।

विद्यादान के बाद अब स्वास्थ्य का पाठ : मोरेश्वर वरघणे 2018 में सेवानिवृत्त हुए। 1994 में प्राथमिक शिक्षक के रूप में नियुक्त होने के बाद उन्होंने 23 साल तक हजारों बच्चों को शिक्षित किया। नागपुर महानगर पालिका की विविध स्कूलों में सेवा दी। सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने पतंजलि योग पीठ हरिद्वार से योग प्रशिक्षक के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने योग का प्रचार-प्रसार कर समाज को स्वस्थ करने का बीड़ा उठाया। अब तक अलग-अलग 40 स्कूलों में जाकर बच्चों को योग का महत्व बताकर उन्हें योगाभ्यास सिखाया है। उन्होंने कला, क्रीड़ा, स्वास्थ्य, हस्ताक्षर, लेखन, पठन आदि को लेकर अनेक अभियान चलाए। अब वे योग शिक्षा पर विद्या दान कर रहे हैं।

Created On :   5 Sept 2023 11:37 AM IST

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