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करोड़ों की धोखाधड़ी प्रकरण - नागपुर के मौदा थाने में दर्ज 40.31 लाख की ठगी में आ सकता है नया मोड़
- फरार आरोपियों की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
- 40.31 लाख की ठगी में आ सकता है नया मोड़
डिजिटल डेस्क, नागपुर. देशभर में 18 हजार से अधिक निवेशकों से करीब 470 कराेड़ के धोखाधड़ी प्रकरण में फरार आरोपियों की मुश्किलें बढ़ सकती है। सूत्रों के अनुसार पुणे की श्रीमंत बाजार ओपीसी प्रा.लि. कंपनी के मुख्य आरोपी संचालक श्रीकांत रामा अचार होलेहुन्नूर उर्फ डॉ. श्रीकांत आचार्य की ही अभी तक गिरफ्तारी हुई है। इस प्रकरण में फरार आरोपी राजू कांबले, जवाहर नगर, औरंगाबाद, राकेश शर्मा, क्वार्टर नं.-7 ए रोड-24, भिलाई, छत्तीसगढ़ और गोपाल शेखावत, सूरत, गुजरात निवासी की गिरफ्तारी नहीं किए होने से कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैैं। इस मामले में फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के आदेश मिलते ही आरोपियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
इस प्रकरण की जांच करने वाली पुलिस टीम से पुलिस विभाग के आला अफसर जबाब-तलब कर सकते हैं कि, बाकी आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि, नागपुर जिले के मौदा निवासी तुषार चुन्नै की शिकायत पर 41.30 लाख की ठगी का प्रकरण दर्ज हुआ। इसकी जांच ग्रामीण क्राइम ब्रांच की अार्थिक विंग ने शुरू की। इस प्रकरण में आरोपी डॉ. श्रीकांत आचार्य का 12 दिन का पीसीआर हासिल किया गया। इसके बाद आरोपी नागपुर से वापस पुणे की जेल में पहुंच गया। इस प्रकरण में फरार आरोपियों की गिरफ्तार के लिए किए जा रहे प्रयासों पर अब वरिष्ठ अधिकारियों का पूरा ध्यान लग गया है।
सूत्रों के अनुसार नागपुर में कुछ वर्ष पहले श्री सूर्या कंपनी के संचालक समीर जोशी, वासनकर ग्रुप समूह पर भी एमपीआईडी के तहत कार्रवाई की गई थी। इन आरोपियों ने निवेश के नाम पर नागपुर सहित राज्य के 1 हजार से अधिक निवेशकों को साथ करोड़ों रुपए की ठगी की है। इनमें से कुछ आरोपी आज भी जेल में बंद हैं। इन आरोपियों ने कई बार जमानत के लिए प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। कानून के जानकारों का मानना है कि, एमपीआईडी के तहत दर्ज मामला आर्थिक धोखाधड़ी के अंतर्गत आता है। ऐसे मामले को कमजोर बनाने का प्रयास करने वालों की भूमिका की जांच हो सकती है। सूत्रों के अनुसार पूर्व, विशेष सरकारी वकील बी.एम. करडे को सरकार ने श्री सूर्या कंपनी द्वारा धोखाधडी प्रकरण में पीड़ित निवेशकों की ओर से नियुक्त किया था। इसके बाद उन्होंने वासनकर समूह के खिलाफ पीड़ित निवेशकों की ओर से कामकाज लंबे समय तक देखा। उनका कहना है कि, जब एमपीआईडी का मामला दर्ज होता है तब कई ऐसी कानूनी धाराएं हैं, जिसके अंतर्गत आरोपियों पर जांच के दौरान बढ़ाईं जा सकती हैं। यह सब कुछ उस जांच टीम पर निर्भर करता है कि, जिसने उस प्रकरण की कितनी गंभीरता से जांच-पडताल की है। आरोपी से पीसीआर में क्या-क्या जानकारी हासिल की गई। वह सारी जानकारी संबंधित न्यायालय के समक्ष रखनी पड़ती है।
सबूत व संपत्ति नष्ट करने का खतरा
बी.एम. करडे, पूर्व विशेष सरकारी वकील के मुताबिक कोई भी इकोनॉमिक अफेंस सीरियस अफेंस होता है, जिसमें किसी अपंग, महिला, पुरुष व वरिष्ठ नागरिकों के साथ भरोसा दिलाकर की गई ठगी आर्थिक ठगी होती है, ऐसी परिस्थिति में किसी आरोपी को जमानत मिलने पर वह आरोपी मामले से जुड़े सबूत और अन्य संपति को नष्ट कर सकता है, जो उसके खिलाफ आगे चलकर सबूत का काम कर सकते हैं। ऐसे आरोपी से पीड़ित निवेशकों का रकम वसूलना मुश्किल हो सकता है। इतना ही नहीं, उसके द्वारा छिपाई गई संपत्ति का कोई ब्यौरा सामने नहीं आ सकेगा, वह उसे भी नष्ट कर सकता है। नागपुर में एमपीआईडी के कई मामले में आज तक आरोपियों को जमानत नहीं मिल सकी है। ऐसे में मामले में संबंधित अदालतों का यही मानना रहा है कि, ठंडे दिमाग से किया गया यह आर्थिक अपराध है।
Created On :   30 July 2023 6:08 PM IST