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धज्जियां: बैन व सख्ती के बावजूद बिकीं लाखों पीओपी मूर्तियां
डिजिटल डेस्क, नागपुर। हर साल पीओपी मूर्तियों को लेकर नीति-नियम बनाए जाते हैं। इस बार पीओपी मूर्तियों पर प्रतिबंध के लिए शहर सीमा पर ही रोक लगाई जाने वाली थी, लेकिन मनपा की सभी योजनाएं हर मोर्चे पर विफल हुई। चंद मूर्तियां जब्त कर 10 हजार जुर्माना वसूलने की कार्रवाई की गई। इससे दुकानदारों की हिम्मत बढ़ी और खुलेआम पीओपी मूर्तियां बिकने लगीं। इस बार पीओपी मूर्तियों के नाम पर तीन से पांच एमएम लेयर के खोखले ढांचे बनाम गणेश मूर्तियां बेची गईं, श्रद्धा के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया गया।
सारे निर्णय कागज पर ही
मनपा ने गणेशोत्सव के लिए जो अस्थायी नीति बनाई थी, उसमें सबसे प्रमुख था कि मूर्तियां पर्यावरण पूरक होनी चाहिए, लेकिन इसके उलट इस बार बाजार में पर्यावरण पूरक यानी मिट्टी की मूर्तियाें का प्रमाण 5 फीसदी से भी कम था, जबकि पीओपी मूर्तियों का प्रमाण 95 फीसदी था। पीओपी मूर्तियों का आयात तीन महीने पहले से शुरू हो गया था, जबकि एक भी वाहन को सीमा पर रोका नहीं गया।
शहर में 450 से अधिक दुकानें
सूत्रों के अनुसार इस बार शहर में 450 से अधिक छोटी-बड़ी मूर्तियों की दुकानें लगी थीं। मनपा की टीम ने इन दुकानों से नाममात्र मूर्तियां जब्त कीं। दूसरी तरफ, दुकानदारों ने पीओपी मूर्तियों को साडू मिट्टी मिक्स मूर्तियां बताकर बेच डालीं।
माटी कलाकार करते रहे ग्राहकों का इंतजार
इस बार अधिकमास होने से पीओपी मूर्तियांे का उत्पादन अधिक प्रमाण में हुआ था। इसलिए मूर्तियां बनाने वालों ने दाम घटाकर नागपुर के दुकानदारों को मूर्तियां बेच दी थीं। लालच में दुकानदारों ने पिछले साल के मुकाबले अधिक मूर्तियां खरीदकर लाईं थी। इसलिए इस साल मांग के हिसाब से मूर्तियों की संख्या अधिक हो गई थी। नतीजतन पीओपी मूर्तियों के दाम भी सस्ते कर दिए गए थे। अधिक मूर्तियां आने से बाजार में 25 फीसदी मूर्तियां नहीं बिक पाईं। वहीं माटी कलाकारों के पास गिनी-चुनी संख्या में मूर्तियां होने के बावजूद उनकी पूरी मूर्तियां नहीं बिक पाईं। इसका कारण यह था कि पीओपी के मुकाबले मिट्टी की मूर्तियां महंगी पड़ रही थी।
बाहर से 90 % से अधिक आयात
जिले में हर साल 3 लाख से अधिक मूर्तियों की मांग होती है। यहां कुल मिलाकर 85 हजार मूर्तियों का निर्माण होता है, जबकि यहां 2.15 लाख मूर्तियां बाहर से आयात होने का अनुमान है। यहां हर साल अनुमानत: 3 लाख से अधिक छोटी-बड़ी मूर्तियों की आवश्यकता होती है। अकेले शहर में ही 1.30 लाख मूर्तियां व ग्रामीण में 75 हजार मूर्तियों की आवश्यकता होती है। मांग के हिसाब से मूर्तियांे का निर्माण कम होने से यहां मूर्ति विक्रेता दूसरे शहर पेण, मुंबई, अमरावती, बडनेरा, परतवाड़ा, अहमदनगर, पुणे, कोल्हापुर आदि शहरों से मूर्तियां आयात करते हैं। इसमें पीओपी की मूर्तियों का सर्वाधिक 90 से 95 फीसदी समावेश होता है।
Created On :   22 Sept 2023 10:53 AM IST