नागपुर ने भी आदिवासियों की परंपरा सांस्कृतिक धरोहर को संजोया

नागपुर ने भी आदिवासियों की परंपरा सांस्कृतिक धरोहर को संजोया
विश्व आदिवासी दिवस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विश्व आदिवासी दिवस पृथ्वी पर रहने वाले विभिन्न आदिवासी समुदायों के सम्मान और उनके सांस्कृतिक धरोहर को याद करने का एक विशेष अवसर है। हर साल 9 अगस्त को मनाया जाने वाला यह पर्व एकता और समरसता का प्रतीक है। यह दिन आदिवासी समुदायों के अधिकारों और समस्याओं को भी उजागर करने के साथ उनके अतीत से जुड़ने का मौका भी प्रदान करता है। भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण के सिविल लाइंस स्थित मानव विज्ञान संग्रहालय में मौजूद साक्ष्य भी आदिवासी समाज के अतीत में झांकने का मौका देती है। इस संग्रहालय में मानव विकास का क्रम और आदिवासियों की सांस्कृतिक धरोहरों को संजोकर रखने का प्रयास किया गया है। यहां मध्य भारत की मुरिया, दंडामी, माडिया, धुरवा, कोलाम, सहारिया, भारिया, बैगा, भील, कमार, गोंड आदि जनजातियों की कलाकृतियां, संस्कृति, जीवनशैली आदि को प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय प्रबंधन का दावा है कि यहां प्राचीन धरोहरों की जानकारी प्राप्त करने तथा मानव विज्ञान का अध्ययन करने के लिए हर माह तकरीबन 500 लोग आते हैं। इनमें अधिकतर स्कूली विद्यार्थी होते हैं। ये विद्यार्थी गड़चिरोली, अमरावती, वर्धा, कामठी व नागपुर के विद्यालयों के होते हैं।

पूरी दुनिया में आज आदिवासियों की कुल आबादी लगभग 48 करोड़ है, जिसका लगभग 22 फीसदी आदिवासी समाज भारत में रहता है। 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में आदिवासियों की संख्या मात्र 8.6 फीसदी है। विकासक्रम में अन्य निवासियों की तुलना में आदिवासी समाज सर्वाधिक पिछड़ा नजर आता है।

अधिकांश राज्यों ने अपने भूमि कानूनों में संशोधन कर आदिवासियों की भूमि हस्तांतरण/अधिग्रहण का मार्ग प्रशस्त कर दिया, नए खदान और ख़निज विकास अधिनियम (2015) के माध्यम से आदिवासियों की हज़ारों हेक्टेयर जमीन पर खदान शुरू की गई। जन सुरक्षा अधिनियमों के अंतर्गत विकास का विरोध करने वाले सैकड़ों आदिवासियों को बंदी भी बनाया गया और वनाधिकार कानून (2006) के सुरक्षात्मक प्रावधानों के बावज़ूद आदिवासियों के अधिकार के दावे निरस्त कर दिए गए। यह दुर्भाग्य है कि आज भी जनजातीय क्षेत्रों में विकास का मूल्यांकन आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के नाम पर पूंजी निवेश के आधार पर किया जाता है। अफ़सोस है कि भारत में आदिवासी समाज के स्वायत्तता , आत्मनिर्णय और सांस्कृतिक अस्मिता के सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। अनुसूचित क्षेत्र की संवैधानिक अवधारणा और उसके संवैधानिक कवच के ठीक विरुद्ध, आदिवासी समाज को विकास से कोसों दूर खड़ा रखा गया है।

Created On :   9 Aug 2023 10:50 AM IST

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