1 लाख मंजूर, लेकिन फूटी कौड़ी का नहीं मिला लाभ, मेडिकल अस्पताल में भटकने को मजबूर परिजन

1 lakh approved, but did not got the benefit
1 लाख मंजूर, लेकिन फूटी कौड़ी का नहीं मिला लाभ, मेडिकल अस्पताल में भटकने को मजबूर परिजन
मजबूरी 1 लाख मंजूर, लेकिन फूटी कौड़ी का नहीं मिला लाभ, मेडिकल अस्पताल में भटकने को मजबूर परिजन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मेडिकल के एक वार्ड में जीबीएस (गुलियन बैरे सिंड्रोम) नामक बीमारी से ग्रस्त युवक का इलाज चल रहा है। इस युवक को आईवीआईजी नामक 20 इंजेक्शन की आवश्यकता थी। एक इंजेक्शन की कीमत 8450 रुपए है। युवक के उपचार के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले जनस्वास्थ्य योजना अंतर्गत 1 लाख रुपए मंजूर हुए हैं। दुर्भाग्य यह कि मेडिकल में इंजेक्शन का स्टॉक ही नहीं था। बाद में परिजनों को बाहर से इंजेक्शन लाकर बिल जमा करने को कहा गया। परिजनों ने दूसरों से कर्ज लेकर इंजेक्शन का जुगाड़ किया। खबर लिखे जाने तक 16 इंजेक्शन दिए गए हैं, लेकिन अब बिल स्वीकृत नहीं किए गए। परिजनों को नियम बताते हुए कहा गया कि बिल लेकर पैसे नहीं दिए जा सकते। इस कारण सरकार की स्वास्थ्य योजना का लाभ मरीज को नहीं मिल पा रहा है। मेडिकल में ऐसे मामले रोज होते हैं। 

गिड़गिड़ाते परिजनों पर नहीं आता तरस

मंजूर राशि में से 48 हजार रुपए का क्या करेंगे पूछने पर समाधानकारक जवाब नहीं दिया जा रहा है। जगदीश को बताया गया कि यह राशि अन्य कामों पर खर्च करना पड़ता है। इस तरह स्वास्थ्य योजना का लाभ पाने के लिए गरीबों को परेशान होना पड़ता है। मरीज को मंजूरी के बावजूद स्वास्थ्य योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। जगदीश के अनुसार स्वास्थ्य योजना संचालन करने मेडिकल के केंद्र में बैठे कर्मचारी व संबंधित अधिकारी बराबर जवाब नहीं देते। अपने परिवार के सदस्यों की जान बचाने रोते-गिड़गिड़ाते परिजनों पर किसी को तरस नहीं आता। उन्हें उलटे जवाब देकर लौटाने की कोशिश की जाती है। जगदीश को तो यहां तक कहा गया कि जिसके पास जाना है जाकर शिकायत करो, जिस मंत्री को बताना है बता दो। जगदीश ने बताया कि कुछ कर्मचारियों ने उसकी और उसके परिजनों की मजबूरी और नासमझी की खिल्ली भी उड़ाई। 

8450 रुपए का एक इंजेक्शन

यवतमाल जिले की आर्णी तहसील अंतर्गत साखरतांडा गांव का निवासी 18 साल के प्रयाग जीवन चव्हाण की 19 नवंबर को अचानक तबीयत खराब हुई। उसे यवतमाल के निजी अस्पताल ले जाया गया। जांच के बाद पता चला कि उसे जीबीएस (गुलियन बैरे सिंड्रोम) नामक बीमारी है। इसका उपचार महंगा हाेने से वहां के डॉक्टरों ने उसे तुरंत नागपुर के मेडिकल में भर्ती करने को कहा गया। अगले दिन परिजनों ने प्रयाग को नागपुर के मेडिकल में भर्ती कराया। यहां के डॉक्टरों ने भी जांच के बाद उसे जीबीएस (गुलियन बैरे सिंड्रोम) नामक बीमारी होना बताया। इस बीमारी के उपचार के लिए आईवीआईजी नामक इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता बताई गई। मरीज को 20 इंजेक्शन लगाना जरूरी बताया गया। एक इंजेक्शन की कीमत 8450 रुपए होने से करीब 1 लाख 70 हजार रुपए का खर्च का अनुमान लगाया गया।

इंजेक्शन का स्टॉक नहीं, इसलिए लाभ नहीं

परिजन खेत मजदूर होने से उनके पास इतने पैसे नहीं थे। तब उन्होंने महात्मा ज्योतिबा फुले जनस्वास्थ्य योजना अंतर्गत उपचार करने के लिए योजना कार्यालय से संपर्क किया। कार्यालय के माध्यम से सारी प्रक्रिया पूरी की गई। पता चला कि प्रयाग के उपचार के लिए 1 लाख रुपए मंजूर हो चुके हैं। लेकिन इन पैसों का मरीज को कोई लाभ नहीं हो सका। क्योंकि मेडिकल में आईवीआईजी इंजेक्शन का स्टॉक ही नहीं है। इसलिए परिजनों को बाहर से इंजेक्शन लाने और बिल जमा करने को कहा गया। परिजनों ने प्रयाग की जान बचाने अपने परिचितों से रुपए उधार लेकर इंजेक्शन का जुगाड़ किया। खबर लिखे जाने तक उसे 16 इंजेक्शन लगाए जा चुके थे। 4 इंजेक्शन और लगाए जाने हैं। प्रयाग वार्ड क्रमांक 36 में भर्ती है। 

बाहर से इंजेक्शन खरीदने के बाद मरीज के परिवार के सदस्य जगदीश पवार महात्मा ज्योतिबा फुले जनस्वास्थ्य योजना के केंद्र में बिल जमा करने पहुंचा। लेकिन उसका बिल स्वीकृत नहीं किया गया। उसे बताया कि बाहर के बिल जमा कर योजना में मंजूर पैसे देने का नियम नहीं है। जगदीश पवार के अनुसार पहले उसे यही बात बताई गई थी कि बाहर से इंजेक्शन खरीद लो और बिल जमा कर दो। पवार के अनुसार मरीज के नाम पर 1 लाख रुपए मंजूर हुए है। यह जानकारी उसे टोल फ्री क्रमांक से तीन बार दी गई है। जबकि कार्यालय द्वारा केवल 52 हजार रुपए तक ही उपचार करने की हामी भरी गई है। यह भी तब जब मेडिकल में इंजेक्शन उपलब्ध होंगे। अब तक योजना अंतर्गत मरीज को फूटी कौड़ी का लाभ नहीं मिला है। जगदीश के अनुसार मेडिकल में स्टॉक आने तक इंतजार करेंगे तो मरीज की जान चली जाएगी। 
 

Created On :   28 Nov 2021 7:20 PM IST

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