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जिला अस्पताल में थैलेसीमिया और सिकल सेल से पीडि़त 182 बच्चे पंजीकृत, अधिकतर 2 से 12 वर्ष के बीच
दोपहर करीब 2 बजे। जिला अस्पताल का बच्चा वार्ड। मौसमी बीमारियों के अटैक से पीडि़त बच्चे इलाजरत हैं, लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसे बच्चे भी हैं जिन्हें ब्लड लगा हुआ है। इन बच्चों के लिए यह माहौल नया नहीं है। जानकर हैरानी होगी कि ये बच्चे जिस मर्ज से पीडि़त हैं उसका कोई इलाज भी नहीं है।
डिजिटल डेस्क जबलपुर । हर महीने-डेढ़ महीने में ये आते हैं और इसी तरह उन्हें रक्त चढ़ा दिया जाता है। ये बच्चे थैलेसीमिया से पीडि़त हैं। एक ऐसी अनुवांशिक बीमारी जिसका कोई इलाज नहीं है। अगर वक्त पर खून न मिले तो जान मुश्किल में पड़ जाए। जिला अस्पताल में ऐसे 182 बच्चे पंजीकृत हैं जो थैलेसीमिया और सिकल सेल से पीडि़त हैं। दोनों ही जेनेटिक बीमारियाँ हैं। माता-पिता की वजह से बच्चे में आती हैं। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी, इनका सबसे अहम लक्षण है। जिला अस्पताल में थैलेसीमिया और सिकल सेल से पीडि़त करीब 10 बच्चों को प्रतिदिन रक्त चढ़ाया जाता है।
एक यूनिट ब्लड अस्पताल से, दूसरी के लिए जद्दोजहद
नियमित समय के बाद रक्त चढ़वाने के लिए अस्पताल आने वाले बच्चों को आमतौर पर एक यूनिट ब्लड की जरूरत होती है, जो कि अस्पताल द्वारा उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन कुछ मामलों को दो यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है। ऐसी स्थिति में डोनर की जरूरत पड़ती है, तब परिजनों को थोड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है। रक्तदान करने वाले समूहों से संपर्क कर रक्त की व्यवस्था की जाती है। बच्चों को ब्लड मिलता रहे और हीमोग्लोबिन नियंत्रित रहे तो सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।
प्रत्येक 1 से 1.5 महीने में ब्लड की जरूरत
जिला अस्पातल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. केके वर्मा ने बताया कि थैलेसीमिया से पीडि़त बच्चों को प्रत्येक 1 से 1.5 महीने में ब्लड की जरूरत पड़ती है। वहीं सिकल सेल के मामलों में 2.5 से 3 महीने के अंतरात में रक्त चढ़ाया जाता है। जिला अस्पताल में थैलेसीमिया के 101 और सिकल सेल के 81 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। जो नियमित अंतराल में ब्लड चढ़वाने के लिए आते हैं। इनमें से ज्यादातर की उम्र 2 से 12 वर्ष के बीच है। कई बच्चे 6-6 साल से आ रहे हैं।
कैसे पता चलता है हीमोग्लोबिन कम है
बच्चे के जन्म के बाद हीमोग्लोबिन की कमी इसका सबसे बड़ा लक्षण है। ब्लड टेस्ट के माध्यम से इसे पता किया जाता है। थैलेसीमिया के लिए एचबी इलेक्ट्रोफोरोसिस और सिकल सेल के लिए सिकलिंग टेस्ट किया जाता है। टेस्ट पॉजिटिव आने पर कंफर्मेशन के लिए सैम्पल आईसीएमआर भी भेजा जाता है। जिले में कुछ अंतराल में इन अनुवांशिक बीमारियों से जुड़े रोगी देखने मिलते हैं।
Created On :   13 Sept 2021 2:39 PM IST