हर 3 दिन में दो व्यक्ति कर रहे सुसाइड, दुनिया में हर 40 सेकेंड में एक

2 people suicides in every 3 days, 1 in every 40 seconds in world
हर 3 दिन में दो व्यक्ति कर रहे सुसाइड, दुनिया में हर 40 सेकेंड में एक
हर 3 दिन में दो व्यक्ति कर रहे सुसाइड, दुनिया में हर 40 सेकेंड में एक

डिजिटल डेस्क, सिंगरौली (वैढ़न)। रोजमर्रा की भागदौड़ और व्यक्तिगत समस्याओं में उलझे हम सभी को शायद यकीन न होगा कि हमारे जिले में हर डेढ़ दिन  में एक व्यक्ति असमय मौत को गले लगा रहा है। अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चैनल्स में फांसी लगाने, जहर खाने जैसे तरीकों से किसी के भी मौत की खबर को हम केवल सरसरीतौर पर पढ़कर देखकर संबंधित विषय से अपने को अलग कर लेते हैं। लेकिन, यह मुद्दा बेहद संवेदनशील हो गया है। वजह, जनवरी 2015 से अब तक 648 लोगों का जीवन की जंग में खुद मैदान छोड़ देना है।

हर साल सुसाइड प्रकरणों का आंकड़ा पुलिस से ज्यादा समाज के लिए चिंतनीय बनता जा रहा है, लेकिन अभी तक सिंगरौली में इसकी व्यापक स्तर पर रिसर्च करने किसी भी एनजीओ या समाजसेवी ने कदम नहीं बढ़ाए हैं। आज जरूरत है, परेशानियों में जूझ रहे लोगों को सही मार्गदर्शन की, उनकी हौसला अफजाई की। बिखरते परिवारों, घटती मानवीय संवेदनाओं, बढ़ती व्यक्तिवादी सोच जैसे मुद्दों पर खुलकर संवाद करने की।

दिमागी बीमारी ने बरपाया कहर
क्रिटिकली पॉल्यूटेड सिंगरौली में दिमागी बीमारी का आंकड़ा भी सिर चढ़ कर बोल रहा है। यह चिकित्सकों के लिए ही नहीं शासन, प्रशासन के लिए भी खतरे की घंटी है। ऐसा हम दिमागी बीमारी और विक्षिप्ता की वजह से हो रही आत्महत्याओं के आंकड़ों के आधार पर कह पा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में इस कारण के चलते 60 लोगों ने मौत को गले लगाया, तो वर्ष 2016 में 37 ने बीमारी से बचने मौत को गले लगाना ज्यादा आसान समझा। ये तो वे आंकड़ें हैं जो सामने आ गए। इस बीमारी से पता नहीं कितने लोग जूझ रहे हैं, अधिकांश बीमारियों के इलाज के लिए यहां से रेफर कर दिए जाने के कारण भी इसकी भयावहता सामने नहीं आ पा रही है।

लंबी बीमारी से तंग आकर मौत का रास्ता चुनने वालों की संख्या भी हमें इस ओर ध्यान देने आगाह कर रही है। वर्ष 16 और वर्ष 17 में 37-37 प्रकरण में लंबी बीमारी के कारण आत्महत्या किया जाना पूरे सिस्टम के लिए चुनौती पेश कर रहा है। नपुसंकता के कारण पिछले दो वर्षों में 5 लोगों ने मौत को गले लगाकर इस बात की ओर इशारा किया है कि प्रदूषणजन्य कही जाने वाली बीमारियों में से एक नपुसंकता भी यहां दबे छिपे तौर पर अपने पैर पसार रही है। यह ऐसा विषय है, जिस पर आम और खास, मुखर होने से हमेशा बचता आया है।

बर्दाश्त नहीं हो रहीं पारिवारिक समस्याएं
एक समय था जब कठिन से कठिन पारिवारिक समस्याओं पर भी घर के बढ़े बुजुर्गों के बीच बैठकर आसान रास्ता निकाल लिया जाता था। लेकिन अब न जो वैसे बड़े परिवार ज्यादा संख्या में बचे हैं और ना ही नई पीढ़ी में अपने पुरखों जैसा धैर्य। ऐसा आप वर्ष 16 में 35 और वर्ष 17 में 33 सुसाइड के दर्ज प्रकरणों को देखकर कह सकते हैं। पारिवारिक सुलह समझौता न होने के कारण ही लोग घरेलू कारणों के कारण मौत को गले लगा रहे हैं। अवैध गर्भधारण पर पिछले साल एक ने मौत को चुना। प्रेम प्रसंग पर वर्ष 16 में दो और वर्ष 17 में 6 सुसाइड के केस दर्ज हुए।

Created On :   30 July 2018 1:20 PM IST

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