2000 मरीजों के नहीं हुए ऑपरेशन, निजी अस्पतालों की ओर कर रहे रुख

2000 patients not operated, turning to private hospitals
2000 मरीजों के नहीं हुए ऑपरेशन, निजी अस्पतालों की ओर कर रहे रुख
मेडिकल की विट्रेक्टॉमी मशीन बंद 2000 मरीजों के नहीं हुए ऑपरेशन, निजी अस्पतालों की ओर कर रहे रुख

डिजिटल डेस्क, नागपुर. गरीबों व मध्यमवर्गियों के लिए वरदान बने शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) आए दिन किसी न किसी कारण से चर्चा में आता है। कभी डॉक्टरों का अभाव, कभी मशीन बंद, तो कभी दवाओं की अनुपलब्धता के कारण मरीजों को कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है। यहां की मशीनों को लेकर हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी ने कहा था कि मशीनें बंद होने पर उन्हें सुधारने के लिए संबंधितों को समय पर बिलों का भुगतान नहीं किया जाता। इसलिए उन मशीनों में सुधार नहीं हो पाता है। नेत्ररोग विभाग में सर्जिकल रेटिना के उपचार के लिए विट्रेक्टॉमी नामक मशीन है। यह मशीन पिछले दो साल से बंद है, इसलिए आॅपरेशन नहीं हो पा रहे हैं।

6 साल पहले आई थी मशीन

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मेडिकल के नेत्ररोग विभाग में 6 साल पहले विट्रेक्ट्रॉमी नामक मशीन लगाई गई थी। इस मशीन की सहायता से रेटिना का उपचार किया जाता है। लेकिन यह मशीन पिछले दो साल से बंद है। इसलिए कम से कम 2000 लोगों का उपचार नहीं हो पाया है। मेडिकल में रेटिना का उपचार नहीं होने से गरीब व मध्यमवर्गियों को निजी अस्पताल का रुख करना पड़ता है। लेकिन वहां का महंगा उपचार होने से कई लोग बिना उपचार के ही जैसे-तैसे जीवन बिता रहे हैं।

दूसरे शहर जाने की दे रहे सलाह

अब यह मशीन बंद होने से यहां के मरीजों को देश के अन्य शहराें के अस्पताल में जाने की सलाह दी जाती है। गरीब व मध्यमवर्गीय मरीजों के लिए यह संभव नहीं हो पाता है। बताया जाता है कि मरीजों को मुंबई, दिल्ली, चेन्नई व हैदराबाद सहित निजी अस्पतालों में जाने की सलाह दी जाती है। मशीन बंद होने से आंखों की एंजियोग्राफी, सीटी स्कैन, आंखों के भीतर के रक्त को साफ करना, आंखों में इंजेक्शन देकर रेटिना का रक्त प्रवाह सामान्य करना आदि काम रुके हुए हैं। कुल मिलाकर विट्रेक्टॉमी मशीन बंद होने से आंखों का उपचार प्रभावित हुआ है।

हर दिन 25 से अधिक मरीज पहुंच रहे

मेडिकल के नेत्ररोग विभाग में 24 साल पहले तत्कालीन विभाग प्रमुख ने रेटिना से संबंधित बीमारी का उपचार करने की शुरुआत की गई थी। उस समय से आॅपरेशन शुरू हैं। 2016 में तत्कालीन अधिष्ठाता डॉ. अभिमन्यू निसवाड़े ने नेत्ररोग विभाग में सुधार किया। वहां ओटीसी, लेजर, विट्रेक्टॉमी नामक मशीन लगाई गई। लेकिन यह यंत्र पिछले दो साल से बंद पड़ा है। इसलिए मरीजों को दूसरे अस्पतालों में रेफर किया जाता है। बताया जाता है कि नेत्ररोग विभाग में हर दिन 25 से अधिक रेटिना से संबंधित विविध बीमारियों से ग्रस्त मरीज आते हैं। इनमें से 4 या 5 मरीजों की रोज शल्यक्रिया की जाती थी। कहा जाता है कि मधुमेह के कारण रेटिना की रक्तवाहिनी पर असर होता है। विट्रेक्टॉमी मशीन की सहायता से डायबिटिक रेटिनापैथी का उपचार किया जाता था। 

Created On :   3 April 2022 6:34 PM IST

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