फंसे 2990 मेडिकल छात्र, और पैसे वाले छूट गए

2990 medical students stranded, and those with money left
फंसे 2990 मेडिकल छात्र, और पैसे वाले छूट गए
बॉन्ड की बेड़ी फंसे 2990 मेडिकल छात्र, और पैसे वाले छूट गए

डिजिटल डेस्क, नागपुर. देश में मेडिकल बॉन्ड को लेकर सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) में मतभेद है। वहीं अलग-अलग राज्यों में बॉन्ड की राशि कम-ज्यादा और कुछ राज्यों में बॉन्ड अनिवार्य नहीं है। महाराष्ट्र में बॉन्ड अनिवार्य है। यहां यूजी (ग्रैजुएट) के लिए 10 लाख, पीजी (पोस्ट ग्रैजुएट) के लिए 20 लाख व पोस्ट पीजी (डीएम) के लिए 50 लाख रुपए प्रतिवर्ष का मेडिकल बॉन्ड भरकर देना पड़ता है। नागपुर में दोनों सरकारी अस्पतालों में 2990 विद्यार्थी शिक्षा ले रहे हैं। इनमें ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट और पोस्ट पीजी के विद्यार्थियों का समावेश है। शिक्षा व बॉन्ड की अवधि पूरी होते-होते 35 साल की उम्र बीत जाती है। अाखिर के 4 साल बचाने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम 5 फीसदी विद्यार्थी बॉन्ड के पैसे भर कर मुक्त हो जाते हैं। 

इस तरह है बॉन्ड की राशि

राज्य में एमबीबीएस के विद्यार्थियों को प्रवेश के साथ ही मेडिकल बॉन्ड भरकर देना पड़ता है। इसमें यूजी के लिए 10 लाख, पीजी के लिए 20 लाख व पोस्ट पीजी के लिए 50 लाख रुपए सालाना का बॉन्ड होता है। शिक्षा पूरी होने के बाद 4 साल तक बॉन्ड के अधीन रहकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर बड़े सरकारी अस्पतालों में सेवा देनी पड़ती है। इसके बदले में मानधन दिया जाता है। एमबीबीएस की शुरुआत से लेकर बॉन्ड की मियाद पूरी होने तक विद्यार्थियों की उम्र 35 साल की हो जाती है। इसके बाद ही वह स्वतंत्र होकर अपने आगे का करियर शुरू कर पाता है। प्रवेश के समय विद्यार्थी की आयु 19 साल की होती है। इसके बाद 4. 50 साल यूजी के, 3 साल पीजी के, 3 साल पोस्ट पीजी के, 1 साल इंटर्नशिप के और 4 साल की बॉन्ड अवधि होती है। 

जो आर्थिक रूप से कमजोर, वह परेशान

नागपुर के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) में वर्तमान में यूजी के 1100, पीजी के 600 और पोस्ट पीजी के 25 विद्यार्थी मिलाकर कुल 1725 संख्या है। वहीं, इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेयो) में यूजी के 950 व पीजी के 320 विद्यार्थी है। दोनों महाविद्यालयों में कुल विद्यार्थी संख्या 2990 है। हर साल 5 फीसदी विद्यार्थी बॉन्ड के पैसे भरकर मुक्त हो जाते हैं। यानी करीब 150 विद्यार्थी बॉन्ड के बंधन से स्वयं को मुक्त कर लेते हैं। यह विद्यार्थी आर्थिक रूप से सक्षम होने से बॉन्ड का पैसा भर देते हैं। इनमें से अधिकतर विद्यार्थियों का पारिवारिक क्लीनिक या अस्पताल होता है। आर्थिक कमजोर विद्यार्थी के लिए बॉन्ड के पैसे भरना संभव नहीं होता। वहीं बॉन्ड के अधीन जितने विद्यार्थी होते हैं, उतने स्थान उपलब्ध नहीं होते हैं। प्रशासन और सरकार इस बात के प्रति उदासीनता बरत रही है। 

विषमता खत्म कर स्थान उपलब्ध करवाना चाहिए

डॉ. सजल बंसल, राष्ट्रीय महासचिव, फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक देश के अलग-अलग राज्यों में बॉन्ड के अलग-अलग नियम हैं। यह विषमता खत्म होनी चाहिए। जब एकता की बात करते हैं, तो देश के हर डॉक्टर के लिए बॉन्ड के अलग अलग नियम क्यों लगा रहे हैं, यह बड़ा सवाल है। जितने डॉक्टरों को बॉन्ड के अधीन रखा जाता है, उतने स्थान उपलब्ध नहीं होते हैं। सरकार को इस विषय को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। ऐसे में बॉन्ड के कारण कभी भी विषम परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं। डॉक्टर विद्यार्थी आंदोलन भी कर सकते हैं। 


 

Created On :   7 Nov 2022 7:14 PM IST

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