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मजदूरों का दूसरे राज्यों में पलायन -लॉकडाउन में लौटे थे 34 हजार प्रवासी श्रमिक
डिजिटल डेस्क कटनी । मजदूरों को साल में सौ दिन काम की गारंटी के लिए लागू की गई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना 16 साल बाद भी मेहनतकशों को रास नहीं आ रही है। प्रदेश के व्यवसायिक जिलों में शामिल कटनी से लोगों का पलायन अब विवशता बना गया है। मजदूरों के पलायन का खुलासा कोरोना संक्रमण काल में ही हुआ। जब लॉकडाउन घोषित होने के बाद अन्य प्रदेशों में काम करने गए प्रवासी मजदूर वापस लौटे। मनरेगा में जितने मजूदरों को काम दिया जा रहा है उससे दोगुने श्रमिक पलायन कर जाते हैं। लॉक डाउन के दौरान जिले में 34 हजार से अधिक मजदूर वापस लौटे थे। तक जिले में मनरेगा मजदूरों का आंकड़ा 77 हजार से अधिक पहुंच गया था लेकिन अनलॉक होने के बाद मजदूर फिर पलायन करने लगे। मनरेगा से मोहभंग का एक कारण मेहनत अधिक और मजदूरी कम माना जा रहा है। इस बाद को पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारी भी स्वीकारते हैं लेकिन नियमों में वे भी बंधे हैं।
जब मौत ने निगल लिया
पेट की आग और परिवार की परवरिश की चिंता के आगे लॉक डाउन की मुसीबतें भी भूल गए। जैसे ही अनलॉक घोषित हुआ अगस्त-सितम्बर से जिले में पलायन शुरू हो गया था। 25 सितम्बर का दिन बरही-बड़वारा तहसीलों के चार गांवों के छह परिवार कभी नहीं भूल सकते। जब मजूदरी करने पिकअप वाहन में जा रहे उबरा, खिरहनी, लुरमी, रमपुरी के मजदूर उज्जैन-देवास रोड में दतना गांव के पास हादसे का शिकार हो गए थे। इनमें से छह मजदूरों की मौके पर ही मौत हो गई थी।
मशीन चलाने वालों को मिट्टी खोदने का काम
महाराष्ट्र, तमिलनाडू, गुजराज एवं अन्य प्रदेशों में पलायन करने वाले श्रमिक वहां मशीनों में काम करते थे। लॉकडाउन में वापस लौटने पर ऐसे श्रमिकों को भी मनरेगा में काम देने शासन ने निर्देश दिए। पंचायतों के सामने यह चुनौती थी कि ऐसे मजदूर मिट्टी खोदने का काम करने तैयार नहीं थे। यही कारण था कि 36 हजार में से मात्र 16 हजार प्रवासी मजदूर ही मनरेगा में शिफ्ट हुए थे। अनलॉक के बाद जब फैक्टरियां शुरू हुईं तो पलायन कर गए। ग्राम पंचायत सलैया कोहारी के सचिव भगवान दास पटेल स्वीकारते हैं कि प्रवासी मजदूर मनरेगा में काम करने तैयार नहीं होते थे। बुजबुजा के राजाराम कोल के अनुसार उड़ीसा की कोल्ड ड्रिंक फैक्टरी में उसे तीन हजार रुपये महीना वेतन मिलता था। यहां मनरेगा में वह दो माह में तीन हजार नहीं कमा पाया। मजदूरी के लिए भी महीनों चक्कर लगाना पड़े।
इनका कहना है
मनरेगा के तहत जिले भर में कहीं पर भी काम की कमीं नही है। यह बात जरुर है कि इसके बावजूद भी मजदूर बाहर चले जाते हैं। जिसमें मनपसंद काम न मिलना भी एक वजह है। कोविड संक्रमण में जितने भी प्रवासी मजदूर लौटे थे। उनका कार्ड बनवाया गया था और उनके काम भी दिया गया है।
- जगदीश चंद्र गोमे, सीईओ
Created On :   26 March 2021 6:33 PM IST