नष्ट होगी 40 हजार 900 एकड़ पर फैली वनसंपदा, आर-पार की लड़ाई के संकेत 

District Mineral Fund is not being used in Gadchiroli!
गड़चिरोली में जिला खनिज निधि का नहीं हो रहा कोई उपयाेग!
नष्ट होगी 40 हजार 900 एकड़ पर फैली वनसंपदा, आर-पार की लड़ाई के संकेत 

डिजिटल डेस्क, गड़चिरोली। एक ओर सरकार विश्वस्तर पर पर्यावरण बचाने के लिए कड़े से कड़े निर्णय ले रही है वहीं दूसरी तरफ सरकार पुंंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए आदिवासी जिले की 40 हजार 900 एकड़ जमीन और वनसंपदा नष्ट करने पर तुली हुई है। गड़चिरोली जिले में और 25 खदानें शुरू होने की संभावना है। इसके अलावा धानोरा, चामोर्शी व भामरागढ़ में भी खदानें प्रस्तावित है। इससे हजारों हेक्टेयर जंगल नष्ट होंगे। आदिवासी समुदाय ने कहा कि इससे सैकड़ों परिवार बेघर हो सकते है। इस मामले के समाधान के लिए सरकार से चर्चा की जाएगी। बात नहीं बनी तो पहले शांतिपूण तरीके से आंदोलन करेंगे फिर उग्र रूप अपनाया जाएगा।

 

आदिवासी समुदाय ने चेतावनी दी है कि इस आंदोलन में नुकसान की जिम्मेदारी शासन की होगी। उन्होंने आरोप लगाया कि  मेक इन इंडिया और मेक इन गड़चिरोली के जुमलो तले नागरिकों को गुमराह किया जा रहा है। विकास का आधार शिक्षा,स्वास्थ्य सुविधाएं,रोजगार के अवसर और अच्छा पर्यावरण होना चाहिए। फिर भी स्थानीय लोगों को गमुराह किया जा रहा हैं। 

 

खनन के विरोध में 459 ग्रामसभाएं 

खदान के विरोध में उतरे सुरजागड़ इलाके की निता और पारंपरिक गोटुल समिति के समर्थन में गड़चिरोली जिले के अलग अलग क्षेत्र से आए लोगों ने भी अपना विरोध जताया है। खनन के विरोध में जिले में अलग-अलग क्षेत्रों में अब तक 459 सभाएं हो चुकी है।

 

एक नजर 

कुल वनक्षेत्र               78 प्रतिशत 
आदिवासी जनसंख्या        38 प्रतिशत 
नष्ट होनेवाला जंगल        15 हजार हे. 
प्रभावित होने वाले परिवार   550 
रोजगार प्रभावित संख्या     35 हजार 

 

पालक मंत्री राजे अमरीश आत्राम क कहना है कि खदानों को मंजूरी देने का निर्णय पूर्व की केंद्र सरकार के समय में हुआ है। इसमे राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है। खदानों से रोजगार प्राप्त हाेगा इसमे कोई संदेह नहीं है। परिसर में कारखाने शुरू होंगे। स्थानीय नागरिकों में दो गुट है। एक कारखानों का समर्थन करता है दूसरा विरोध। एटापल्ली में दुर्घटना होने के बाद ग्रामीणों के साथ मैंने खुद चर्चा की थी। इस दौरान नागरिकों के रोष को देखते हुए उन्हें आश्वासन दिया है कि जिला अधिकारी के माध्यम से राज्य सरकार को स्थानीय नागरिकों की भावनाओं से अवगत कराया जाएगा। फिर राज्य सरकार केंद्र के साथ इस संबंध में चर्चा करेगी। फिलहाल एक या दो ही खदानें शुरू हुई है। अन्य खदानों की लीज हुई है। लेकिन अब तक काम शुरू नहीं हुआ है। 

 

सैलू गोटा के मुताबिक मायनिंग के लिए जो क्षेत्र निश्चित हुआ है। उसे छोड़कर खुदाई हो रही है। पुरी तरह से वनकानून का उल्लंघन किया जा रहा है। मायनिंग से कोई रोजगार प्राप्त नहीं होता। पुंजीपतियों के लाभ के लिए मायनिंग हो रही है। इस संबंध सरकार से इसका जवाब पूछा जाएगा। हम शांतिपूर्ण वार्ता करने का प्रयास कर रहे है। लेकिन लगता है, मजबूरन संघर्ष तेज करना पड़ेगा।  

 

गोटुल समिति के अनुसार खदानों को मंजूरी देते समय वन संवर्धन कानून 1980, पर्यावरण अधिनियम 1986, पेसा कानून 1996, महाराष्ट्र ग्रामपंचायत अधिनियम 1959 के प्रकरण 3 की धारा 54, अनुसूचित जनजाति एवं पारंपारिक वन निवासी (वन हक्क मान्यता ) अधिनियम 2006, खान एवंम खनन अधिनियम और कानूनी प्रावधनों का उल्लघंन सरकार और प्रशासन कर रहा है।  

 

प्रस्तावित खदानें

कोरची तहसील 
(12 लोह खनिज खदानें ) 
एटापल्ली तहसील 
(11 लोह खनिज खदानें ) 
अहेरी तहसील (2 खदान)

Created On :   20 Jan 2019 2:59 PM IST

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