जिस राष्ट्र के पास नैतिक मूल्य नहीं, उसकी समृद्धि अर्थहीन -दयाशंकर तिवारी

A nation that does not have moral values, its prosperity is meaningless - Dayashankar Tiwari
जिस राष्ट्र के पास नैतिक मूल्य नहीं, उसकी समृद्धि अर्थहीन -दयाशंकर तिवारी
जिस राष्ट्र के पास नैतिक मूल्य नहीं, उसकी समृद्धि अर्थहीन -दयाशंकर तिवारी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जिस समाज और राष्ट्र के पास नैतिक मूल्य नहीं हैं, वह खोखला है। उस राष्ट्र की सारी समृद्धि अर्थहीन है। नैतिकता ही राष्ट्रीय चरित्र का मापक है। यह विचार  दयाशंकर तिवारी, नगरसेवक, भाजपा ने ‘समाज और नैतिकता’ विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए। तिवारी लोहिया अध्ययन केन्द्र के ‘संवाद’ उपक्रम अंतर्गत आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे। कार्यक्रम की प्रस्तावना राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. मनोज पाण्डेय ने रखी और स्वागत उद्बोधन केन्द्र के महासचिव  हरीश अड्यालकर ने किया। संचालन डॉ. जयप्रकाश ने और धन्यवाद ज्ञापन अतुल त्रिवेदी ने किया। इस अवसर पर डॉ. ओमप्रकाश मिश्र, अमित कुमार प्रभाकर, अनिल त्रिपाठी, डॉ. गीता सिंह, कृष्ण नागपाल, संजय सहस्रबुद्धे, राजेंद्र मिश्र ‘राज’, डॉ. विकास कामड़ी, तेजवीर सिंह, उमेश यादव, नितीन सेलोकर, कुंजन लिल्हारे, डॉ. मार्तंड शाही, लखनलाल नायक, सुरेश अय्यंगार, रमेश मौंदेकर, ब्रजभूषण शुक्ला, अशोक कुमार शुक्ला, अजय गौर, टीकाराम साहू ‘आजाद’, वासु गुरनानी उपस्थित थे।

समाज में भूमिका समझें
समाज में बढ़ती अनैतिकता पर चिंता व्यक्त करते हुए दयाशंकर तिवारी ने कहा कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने अंत:करण में झांके और यह चिंतन करे कि उसकी समाज में क्या भूमिका है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे राष्ट्र के समक्ष ऐसे आदर्श नहीं प्रस्तुत किए गए, जो समाज में नैतिक-मूल्यों के संवाहक बनते। समग्र समाज को इस पर गहराई से विचार करने की जरूरत है।

हर किसी को सोचने की जरूरत है
संवाद के संयोजक नागपुर विद्यापीठ के प्राध्यापक डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि आज समाज में बढ़ते हुए कदाचार के लिए नैतिक मूल्यों का पतन मूल कारण है। नैतिक मूल्य ही समाज और राष्ट्र के चारित्रिक निर्माण में सहायक हैं, इसलिए जरूरी है कि इस पर समाज गहराई से विचार करे और इस पर चर्चा व चिंतन को प्रोत्साहित किया जाए।

आदर्श का लोप
स्वागत उद्बोधन में केन्द्र के महासचिव  हरीश अड्यालकर ने कहा कि समाज के समक्ष आदर्श का लोप हो चुका है। समाज ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जहां  दिशा दर्शन कराने वाले भी मौन हैं। इस पर विचार करने का कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम हमारे समाज के समक्ष नहीं नजर आ रहा है।
 

Created On :   4 Jan 2020 4:38 PM IST

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