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अनादर के एहसास के साथ दुष्कर्म पीड़िता को बितना पड़ता है जीवन - HC
डिजिटल डेस्क, मुंबई। दुष्कर्म पीड़िता को पतन व अनादर के एहसास के साथ शेष जीवन जीना पड़ता है। इसलिए बलात्कार के आरोपी के प्रति नरमी नहीं दिखाई जा सकती है। क्योंकि दुष्कर्म का जुर्म एक जघन्य अपराध है। बांबे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए नौकरानी के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी पाए गए एक होटल मालिक के बेटे की तीन साल की सजा को बढाकर सात साल कर दिया है। यहीं नहीं आरोपी पर एक लाख दस हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने में से एक लाख रुपए पीड़िता को देने का निर्देश दिया गया है।
न्यायमूर्ति साधना जाधव व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ ने आरोपी फयाज जरीवाला की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसले में कहा है दुष्कर्म का अपराध महिला के सम्मान व गरिमा को एक बड़ा झटका होता है। पीड़िता को इस अपराध के बाद अपना शेष जीवन अपमान व अनादर के बोध के साथ जीना पड़ता है। दुष्कर्म एक जघन्य अपराध है इसलिए इस मामले में किसी प्रकार की उदारता नहीं दिखाई जा सकती है। फैसले में खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट फैसलों का हवाला देते हुए कहा है कि महिला कोई इच्छा की विषय वस्तु नहीं है। इसलिए समाज का पीड़िता को उपहास व अनैतिक रुप से देखना अपेक्षित नहीं है।
खंडपीठ ने कहा कि यदि एक बार यह पुष्ट हो जाता है कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय है तो आरोपी को सजा मिलनी चाहिए। यह सजा अपराध के अनुपात में दी जानी चाहिए। निचली अदालत की ओर से इस मामले में आरोपी को सुनाई गई तीन साल की सजा को लेकर खिन्नता व्यक्त करते हुए खंडपीठ ने कहा कि आरोपी को इतनी कम सजा क्यों दी गई है इसको लेकर किसी विशेष कारण का भी उल्लेख नहीं किया गया है।
गौरतलब है कि पीड़िता ने इस मामलें आरोपी व उसकी मां के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में पीड़िता ने दावा किया गया था कि आरोपी की करतूतों के चलते वह गर्भवती हो गई थी। इसके बाद आरोपी की मां उसे गर्भपात के लिए अस्तपताल ले गई लेकन जब डाक्टरों ने गर्भपात करने से मना कर दिया तो पीड़िता को जेजे अस्पताल में बच्चे को जन्म देना पड़ा। बच्चा जब सिर्फ 6 दिन का था तो आरोपी की मां ने उसे छीन लिया। और पीड़िता को कैद करके रखा। इस बीच किसी तरह पीड़िता घर से बाहर निकली और जेजे अस्पताल की नर्स की मदद से पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। 15 जून 2006 को निचली अदालत ने आरोपी को तीन साल की सजा सुनाई जबकि आरोपी की मां को बरी कर दिया। आरोपी ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपली की जबकि राज्य सरकार ने आरोपी की सजा को बढाने के लिए आवेदन किया।
खंडपीठ ने अपील पर सुनवाई के दौरान निचली अदालत के फैसले पर अप्रसन्नता व्यक्त की और आरोपी की सजा को तीन साल से बढाकर सात साल कर दिया। खंडपीठ ने इस दौरान आरोपी की मां को बरी किए जाने को लेकर भी नाराजगी जाहिर की। क्योंकि आरोपी की मां ने बच्चे को अनाथ छोड़ दिया जिसके चलते उसकी मौत हो गई और इसकी जानकारी भी पीड़िता को नहीं दी गई। खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में आरोपी की मां के खिलाफ अपील करना चाहिए था। आरोपी चूंकी अपील पर सुनवाई के दौरान जमानत पर था इसलिए खंडपीठ ने उसे जेल अधिकारियों के सामने समर्पण करने के लिए 4 जून 2021 तक का समय दिया है।
Created On :   9 Dec 2020 9:40 PM IST