- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- चोट के निशान न होना दुष्कर्म न होने...
चोट के निशान न होना दुष्कर्म न होने का प्रमाण नहीं, आरोपियों को मिली 20 साल की सजा बरकरार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महिला के गुप्तांग में वीर्य का न मिलना उसके साथ दुष्कर्म न होने का प्रमाण नहीं हो सकता है। इसके साथ ही महिला के गुप्तांग में चोट के निशान न होने का अर्थ यह नहीं है कि उसके साथ जबरन यौन संबंध नहीं बनाए गए है। यह बात कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने एक 24 वर्षीय महिला के साथ चाकू की नोक पर दुष्कर्म करनेवाले दो आरोपियों की 20 साल की कारावास की सजा को बरकरार रखा है। ठाणे कोर्ट ने इस मामले में आरोपी विकास तिलोरे व विक्की उर्फ विकास को 20 साल के कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ दोनों आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी। अभियोजन पक्ष के मुताबिक आरोपियों ने रात के 12 बजे पीड़िता के कलवा इलाके में स्थित घर में जबरन घूसकर उसके साथ चाकू की नोक पर उसके पांच व सात साल के बच्चों को जान से मारने की धमकी देकर उसके साथ दुष्कर्म किया था। फिर बाहर से दरवाजा बंद करके भाग गए थे। पीड़िता अपने पति से अलग हो चुकी है और अकेले घर में अपने बच्चों के साथ रहती थी।
न्यायमूर्ति अनूजा प्रभु देसाई ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि दुष्कर्म की घटना के बाद पीड़िता को जब मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया था तो इससे पहले उसने स्नान कर लिया था। लिहाजा डाक्टरों ने जब गुप्तांग से जांच के लिए जो नमूना लिया तो उसमें वीर्य नहीं मिला। इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि नमूने में वीर्य न मिलने का अर्थ यह नहीं है कि पीड़िता के साथ यौन संबंध नहीं बनाए गए हैं। न्यायमूर्ति ने प्रकरण से जुड़े गवाहों के बयान व सीएफएसएल रिपोर्ट पर गौर करने के बाद पाया कि पीड़िता की हथेली व आंख पर चोट के निशान हैं। आरोपी की चड्ढी में वीर्य के अंश मिले हैं। पीड़िता के पैजामे पर भी वीर्य के धब्बे हैं। हालांकि घटना स्थल से मिले कंडोम में वीर्य नहीं पाया गया था। इसके अलावा चटाई व सलवार में भी खून के निशान पाए गए थे। जो आरोपियो की इस मामले में संलिप्तता को दर्शाते हैं। इस मामले में पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नजर आ रही है।
आरोपियों के वकील ने निचली अदालत के आदेश को खामीपूर्ण बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की थी। वकील के मुताबिक उनके मुवक्किल को इस मामले में फंसाया गया है। इसके साथ ही दावा किया गया था कि आरोपियों को अपुष्ट गवाही के आधार पर सजा सुनाई गई है। उन्हें अपना बचाव करने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला है। सीएफएसएल की रिपोर्ट के कई पहलूओं की जानकारी आरोपियों को नहीं मिली है। जिससे वे प्रभावी ढंग से अपना बचाव नहीं कर पाए है। इस तरह न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े गवाहों व सबूतों पर गौर करने के बाद आरोपियों की सजा को कायम रखा और उनकी अपील को खारिज कर दिया।
Created On :   20 Oct 2021 9:29 PM IST