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'निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार' नियमों में 8 साल बाद संशोधन
डिजिटल डेस्क, भोपाल। राज्य सरकार ने केंद्र के "नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार कानून 2009" के तहत 2011 में बनाये "नि:शुल्क और अनवार्य बाल शिक्षा का अधिकार" नियमों में 8 साल बाद संशोधन कर दिया है। अब इस कानून और नियम के तहत प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में बनाई गई शाला प्रबंध समिति (जिसमें अभिभावक सदस्य या पदाधिकारी होते हैं) को अशोभनीय आचरण पर संबंधित जिले का रेवेन्यु सब डिविजनल अधिकारी पद से हटा सकेगा।
यह प्रावधान पहली बार किया गया है। नये प्रावधान में कहा गया है कि शाला प्रबंध समिति के पालकों या अभिभावकों में से किसी निर्वाचित सदस्य/उपाध्यक्ष/अध्यक्ष को अशोभनीय व्यवहार, नैतिक पतन, कर्तव्य निष्पादन न करने, किसी आपराधिक गतिविधि में संलिप्त होने की शिकायत पर, जिले के राजस्व सब डिविजनल अधिकारी द्वारा उपयुक्त सुनवाई के बाद हटाया जा सकेगा। इसी प्रकार, अब समिति के अध्यक्ष को जिले के राजस्व सब डिविजनल अधिकारी द्वारा समिति की लगातार दो बैठकों में अनुपस्थित रहने की शिकायत पर सुनवाई के बाद हटाया जा सकेगा। नवीन प्रावधान के अनुसार, राजस्व सब डिविजनल अधिकारी के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति ऐसे आदेश की तारीख से 45 दिन के भीतर, जिला कलेक्टर को अपील कर सकेगा और इसके बाद अपील पर कलेक्टर का आदेश अंतिम होगा।
एससीईआरटी को दिए नवीन उत्तरदायित्व
उक्त नियमों में राज्य शिक्षा केंद्र की इकाई राज्य शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद एससीईआरटी को शैक्षणिक प्राधिकारी नियुक्त किया गया है। नये प्रावधान के तहत एससीईआरटी को नवीन उत्तरदायित्व सौंपे गये हैं। अब एससीईआरटी....
-नियमित आधार पर, बालक की समग्र गुणवत्ता निर्धारण प्रक्रिया की रुपरेखा बनायेगा और उसका क्रियान्वयन करेगा।
-समस्त प्रारंभिक कक्षाओं के लिये कक्षावार, विषयवार अधिगम परिणाम यानी लर्निंग आउटकम्स यानी सिखाने के परिणाम तैयार करेगा।
- परिभाषित अधिगम परिणामों यानी लर्निंग आउटकम्स अर्थात सिखाने के परिणाम को प्राप्त करने के लिये सतत और व्यापक मूल्यांकन को अमल में लाने के लिये दिशा-निर्देश तैयार करेगा।
Created On :   31 Aug 2017 6:18 PM IST