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कृषि विधेयक - लाभ को लेकर संशय, एमएसपी की अनिवार्यता पर जोर , जिले के समृद्ध किसानों ने रखे अपने विचार
डिजिटल डेस्क शहडोल । कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 संसद में पारित हो चुका है। केंद्र सरकार कृषि विधेयक को किसानों के लिए हितकर बता रही है, लेकिन जिले के समृद्ध किसान इसे बिलकुल भी हितकर नहीं मान रहे हैं। ज्यादातर किसानों की यही राय सामने आई कि इस विधेयक से किसानों का भला नहीं होने वाला। आय दोगुनी करने के बारे में किसी प्रकार का जिक्र नहीं है। किसान अपनी उपज कितने दामों पर बेचेगा इसको लेकर सार्थक नीति का प्रावधान नहीं दिख रहा है। 25 एकड़ या इससे ऊपर की कास्तकारी करने वाले किसानों से जब भास्कर ने चर्चा की तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी।
एमएसपी दर की हो बाध्यता
सोहागपुर के समृद्ध किसान बालमीक गौतम ने कहा कि विधेयक तब अच्छा होता जब इसमें इस बात का प्रावधान होता कि एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से नीचे किसी भी उपज की खरीदी कहीं नहीं होगी। चाहे किसान हो या व्यापारी समर्थन मूल्य पर तय रेट पर ही खरीदी हो। इसके बिना यह विधेयक किसानों के लिए नुकसानदेय ही है। दाल, चावल जैसे चीजों को आवश्यक वस्तु से मुक्त करने का परिणाम कालाबाजारी को बढ़ावा देने जैसा होगा। अब छोटे किसान कम उपज लेकर कहां बेचने जाएगा। ऐसे में व्यापारी औने पौने दामों पर खरीद लेगा। कुल मिलाकर विधेयक में इस प्रावधान होता कि किसान अपनी उपज की दर स्वयं तय करेगा तभी इसकी सार्थकता होती।
आय बढ़ाने का प्रावधान नहीं
कल्याणपुर के बड़े काश्तकार सीतेश जीवन पटेल कहते हैं कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बातें बेमानी साबित हो रही हैं। किसानों की आय कहां दोगुनी हुई। कोरोना महामारी से किसान वैसे ही परेशान थे। खेती की लागत बढ़ती ही जा रही है। प्राकृतिक प्रकोप से फसलें नष्ट हो रही हैं। बिजली, पानी और डीजल किसानों के लिए सबसे अहम हैं, लेकिन डीजल के रेट आसमान छू रहे हैं। सरकार को पहले इस पर सब्सिडी देनी चाहिए। दिल्ली में धान का समर्थन मूल्य 2600 रुपये है। हमारे यहां भी समर्थन मूल्य दोगुनी करनी चाहिए। मक्का आदि फसलों पर ध्यान देना चाहिए। डीजल पर सब्सिडी, समर्थन मूल्य बढ़ाने से ही किसानों की आय दोगुनी हो सकती है।
उपज के भी दाम फिक्स हों
कठौतिया के उन्नत कृषक अभियान सिंह का कहना है कि किसानों की उपज के भी दाम फिक्स होने चाहिए। विधेयक में बाजार तो खोल दिए लेकिन इस बात का प्रावधान नहीं है कि कौन सी फसल कितने दाम पर बेची जाएंगी। जैसे दवा आदि का मूल्य तय है कि कितने में बिकेंगी, लेकिन फसलों का कोई दर तय नहीं करता। सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 1975 रुपये तय कर दिया, लेकिन मार्केट में 1500 में बिक रहा है। मक्का का कोई रेट तय नहीं किया गया। कुल मिलाकर यह विधेयक किसानों के लिए लालीपॉप से कम नहीं है। किसान अभी अनिश्चय की स्थिति में हैं, कि वे अपनी उपज किस दर पर बेच सकेंगे। इस शंका का समाधान शासन स्तर पर होना चाहिए।
ईमानदारी से पालन पर फायदा
सोहागपुर क्षेत्र के समृद्ध किसान शेखर मिश्रा कहते हैं कि यदि कृषि विधेयक का ईमानदारी से पालन हो तो किसानों को फायदा हो सकता है। कहीं भी उपज बेचने की आजादी से किसान मन पसंद स्थानों पर ले जाकर बिक्री कर सकते हैं। हालांकि कुछ चीजों को आवश्यक वस्तु की श्रेणी से बाहर कर दिए जाने से भण्डारण करने वाले व्यापारी जमाखोरी को बढ़ावा दे सकते हैं। इससे मंहगाई बढऩे की आशंका है। इस विधेयक से किसानों को फायदा पहुंचाने वाले मुद्दों को बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। किसानों की उपज के दर निर्धारित होने चाहिए। ताकि वे लागत के अनुरूप दाम तय कर इसकी बिक्री करते हुए खेती को लाभ का धंधा बना सकें।
आर्थिक गुलामी की तैयारी
अनूपपुर जिले केे ग्राम पंचायत जमुड़ी के कृषक अनंत जौहरी ने कहा कि यह कंपनी युग की शुरुआत है। नागरिकों के लिए भोजन, पानी और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं की जिम्मेदारी सरकारों की होती है। सरकार अपने कत्र्तव्यों से पल्ला झाडऩे के लिए अन्नदाता को मुसीबत की ओर ढकेल रही है। इस विधेयक को लाने की बजाय सरकार चाहती तो उत्पादक अन्नदाता से एमएसपी पर ही उत्पाद खरीद लेती। कंपनियों के कृषि क्षेत्र में पदार्पण से अन्नदाता की मुसीबतें बढ़ेगी, उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ही कंपनी के निर्णय पर आश्रित हो जाएंगे। यहीं से शुरू होगा अधिकारों का हनन। वैश्विक कंपनियों के आने से भारतीय कृषकों की की स्थिति और भी खराब हो जाएगी।
Created On :   24 Sept 2020 6:09 PM IST