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पांच हजार बच्चें को किताबें दान कर शिक्षा की जलाई अलख
डिजिटल डेस्क कटनी । कॉलेज लाइफ में मंहगी किताब न खरीद पाने की मजबूरी और लायब्रेरी के भरोसे पढ़ाई करने वाला युवक आगे चलकर इस दर्द का वह इलाज खोजा कि आज स्कूली बच्चों के बीच इनकी पहचान किताब वाले अंकल के रुप में हो गई है। शहर के आजाद चौक में निवासरत राकेश सुहाने उन युवाओं में से हैं। जिनके लिए किताब-कापी दान करना किसी पर्व से कम नहीं होता। वर्ष 2000 में शुरु की गई पहल 19 वर्ष के अंतराल में उस वृक्ष के रुप में पहुंच चुकी है। जिस वृक्ष के नीचे आर्थिक रुप से कमजोर करीब 5000 बच्चे दान की किताब-कापियों से पढकऱ जीवन के उस मुकाम में पहुंच गए हैं। जहां पर अभिभावकों को अपने बच्चों के ऊपर गर्व होता है तो दानदाता भी इस दान को अपना सौभाग्य समझते हैं।
कापियों के साथ स्टेशनरी
प्राथमिक से लेकर हाईस्कूल तक के बच्चों को जब शिक्षा विभाग से नि:शुल्क किताबें मिलने लगी। तब दानदाताओं ने सहायक किताबों के साथ कापियां दान करनी शुरु कर दी। साथ में स्टेशनरी की सामग्री भी जोड़ दी गई, ताकि सरकारी स्कूल में पढऩे वाला आर्थिक रुप से कमजोर विद्यार्थी भी अच्छी किताबें पढकऱ जीवन की ऊंचाईयों तक पहुंच सके।
स्कूल से लेते हैं जानकारी
इसके लिए शहर के साथ ग्रामीण स्कूलों को भी चिन्हित किया जाता है। यहां पर पढऩे वाले बच्चों को कौन-कौन सी किताबें या फिर कापियां की आवश्यकता है। इसकी जानकारी दानदाता युवक स्कूल के ही प्रधानाध्यापक या प्राचार्य से मांगते हैं। एक-एक स्कूल से लिस्ट मिलने के बाद बच्चों के आवश्यकतानुरुप सामग्री जुटाते हैं। सामग्री जुटाने के बाद श्री सुहाने अपनी माता स्व. चंपा देवी सुहाने की स्मृति में स्कूलों में बगैर
शोर-शराबे के यह काम पिछले कई वर्षों से करते आ रहे हैं।
जरुरत में हर समय तैयार
शिक्षण सत्र के शुरुआती दिनों में किताब दान का काम तो किया जाता है। साथ ही जरुरत पर वर्ष भर यह दान का काम अनवरत चलता रहता है। युवा बताते हैं कि यदि किसी स्कूल से शिक्षण सामग्री की कोई सूचना आती है, तब वहां पर जाकर स्टेशनरी और अन्य कापियां बांटी जाती है। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है। जिससे देश और समाज का विकास हो सकता है। श्री सुहाने ने बताया कि अन्य तरह की गतिविधियां भी आयोजित की जाती है। जिसमें कई लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से उनकी मदद करते हैं।
Created On :   10 Feb 2020 2:47 PM IST