अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल औरंगाबाद शिफ्ट

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अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल औरंगाबाद शिफ्ट

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नियमानुसार अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल का तीन साल का पदभार नागपुर से औरंगाबाद को हस्तांतरित हो गया। अब महामंडल की आधिकारिक जिम्मेदारी मराठवाड़ा साहित्य परिषद, औरंगाबाद के पास होगी। इस बाबत नई और पुरानी नीतियों में समन्वय कैसे साधा जाए, इस पर महामंडल के नवनियुक्त अध्यक्ष कौतिकराव ठाले-पाटील ने परोक्ष रूप से पूर्व अध्यक्ष डॉ. श्रीपाद भालचंद्र जोशी की कार्यप्रणाली पर नाराजगी व्यक्त कर संपूर्ण महामंडल पर जोशी का प्रभाव होने की टिप्पणी की। 

नई कार्यकारिणी का गठन
1 अप्रैल 2016 से महामंडल का कार्यालय नियमानुसार महामंडल की घटक संस्था विदर्भ साहित्य संघ को मिला। घटक संस्था के पास तीन वर्ष की कालमर्यादा रविवार, 31 मार्च को समाप्त हुई। 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2022 तक कार्यालय मराठवाडा साहित्य परिषद, औरंगाबाद में रहेगा। इसके अनुसार रविवार को विदर्भ साहित्य संघ के महामंडल की अंतिम बैठक रविवार, 31 मार्च को संपन्न हुई। इसमें नई कार्यकारिणी की नियुक्ति की गई। महामंडल के अध्यक्ष पद पर कौतिकराव ठाले-पाटील, उपाध्यक्ष पद पर मौजूदा प्रभारी डॉ. विद्या देवधर, कार्यवाहक के रूप में डॉ. दादा गोरे और कोषाध्यक्ष के रूप में डॉ. रामचंद्र कालुंखे की नियुक्ति की घोषणा की गई। इस दौरान कौतिकराव ठाले-पाटील ने कहा कि, जब दूसरे लोग काम करते हैं, तब उन्हें उनकी पद्धति से काम करने दें। उन्हें सहयोग करें और बहुमत का निर्णय मान्य करें।

अपने भाषण में पाटील ने पिछले तीन साल से डॉ. श्रीपाद जोशी के नेतृत्व में चल रहे महामंडल के काम पर अप्रत्यक्ष और कुछ जगह प्रत्यक्ष नाराजगी भी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि, महामंडल का काम महामंडल की पांचवी घटक संस्था के रूप में नहीं, बल्कि महामंडल के रूप में चलेगा। काम के लिए घटक संस्थाओं को प्रेरित करने का मुख्य कर्तव्य महामंडल को निभाना होगा। इस अवसर पर डॉ. विलास देशपांडे, डॉ. इंद्रजीत ओरके, कपूर वासनिक, उषा तांबे उपस्थित थे। 

डा. जोशी के कार्यकाल में लिए गए निर्णयों पर लग सकती है रोक
डॉ. श्रीपाद जोशी के कार्यकाल में लिए गए अनेक निर्णयों पर नई कार्यकारिणी द्वारा रोक लगाने की संभावना है। फिलहाल ठाले-पाटील के भाषण से इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। ठाले-पाटील ने कहा कि, महामंडल से संलग्न संस्था के रूप में कोकण साहित्य परिषद व कोल्हापुर स्थित दक्षिण महाराष्ट्र साहित्य परिषद को मान्यता देने का निर्णय महामंडल का नहीं होने के बावजूद पूर्व अध्यक्ष ने वह निर्णय लेकर केवल कागजों पर प्रावधान किया। दोनों संस्था महाराष्ट्र साहित्य परिषद के अंतर्गत होने से मान्यता देने का पूर्णत: निर्णय उनका है, जिस कारण उनकी मान्यता पर दोनों संस्थाओं को संलग्न रखना है या नहीं? इस पर विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि, एकाधिकारशाही से लिए गए निर्णय का क्रियान्वयन अब लोकशाही से किया जाएगा। 
 

Created On :   1 April 2019 10:02 AM GMT

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