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और कितनी पीढिय़ों को देखना पड़ेगा माँ का ऐसा रूप
चौसठ योगिनी मंदिर की पीड़ा - कभी पूरे विश्व में विख्यात था इसका गौरव, गैलरी बने तो आने वाली पीढ़ी भी देख सकेगी इसका स्वर्णिम अतीत
सदियों पूर्व तक चौसठ योगिनी का गौरव पूरे विश्व में विख्यात था। विदेशों से भी छात्र यहाँ संस्कृत और तंत्र साधना के सूत्र सीखने के लिए आते थे। आक्रांताओं ने इस धरोहर को ध्वस्त कर दिया। प्रतिमाओं को खंडित कर डाला। इन प्रतिमाओं का यही खंडित स्वरूप देखते हुए हमारी कई पीढिय़ाँ खत्म हो गईं। पुरातत्व विभाग का नियम है कि इन प्रतिमाओं के स्वरूप से छेडख़ानी नहीं की जा सकती...। अब लोगों की जुबान पर यही शब्द आ रहा है कि क्या हमारी आने वाली पुश्तों को भी देवियों का ऐसा ही स्वरूप देखना पड़ेगा...? ऐसा नहीं हो सकता कि चौसठ योगिनी मंदिर परिसर में एक सुंदर गैलरी विकसित की जाए..। पेंटिंग या फिर किसी अन्य माध्यम से यहाँ चौसठ योगिनी की ऐसी सजीव कलाकृतियाँ बनाई जाएँ, जो हमारी नई पीढ़ी को आकर्षित करे और एक संदेश भी दे कि सदियों पूर्व हमारे देश की शिल्पकला कितनी समृद्ध थी कि पत्थर की प्रतिमाएँ भी बोलती नजर आती थीं।
डिजिटल डेस्क जबलपुर । चौसठ योगिनी मंदिर का गौरव किसी से छिपा नहीं है। आज भी हजारों की संख्या में सैलानी यहाँ आते हैं। इतिहास के जानकारों की मानें तो चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कल्चुरी वंश के राजा युवराज द्वितीय ने कराया था। तेवर में खुदाई में सामने आ रही धरोहर इस बात पर भी इशारा कर रही है कि इस मंदिर का गौरव और भी पुराना हो सकता है। विदेशी आक्रांताओं ने यहाँ स्थापित प्रतिमाओं को खंडित कर डाला। बचा हुआ स्वरूप इस बात का साक्षी है कि उस दौर में इन प्रतिमाओं स्वरूप कितना जीवंत रहा होगा। भेड़ाघाट की तर्ज पर मुरैना में भी चौसठ योगिनी का मंदिर है। हालाँकि भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर इससे भिन्न है। यहाँ बीच में भगवान शिव और पार्वती की वृषभ पर आरूढ़ प्रतिमा है, जो दुर्लभ है। मंदिर के परकोटे में चारों तरफ चौसठ योगिनियाँ भगवान शिव और पार्वती का पहरा देती नजर आ रही हैं। इतिहास विद बताते हैं कि चौसठ योगिनी मंदिर की डिजाइन के आधार पर ही दिल्ली में संसद भवन का निर्माण हुआ था।
शिव और शक्ति का प्रतीक है मंदिर
चौसठ योगिनी मंदिर के साथ कई प्राचीन कहावतें जुड़ी हुई हैं। मंदिर के गर्भगृह में शंकर-पार्वती की नंदी पर सवार मूर्ति और शिवलिंग को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। औरंगजेब की सेना ने मंदिर के बाहरी हिस्से में लगी सभी मूर्तियाँ खण्डित कर दीं थीं, लेकिन गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले उन पर मधुमक्खी के कई झुण्डों ने हमला कर दिया था, जिसके कारण मुगल सेना को भागना पड़ा था। इसी वजह से ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के शिवलिंग में अभिषेक करने से शत्रुओं से रक्षा होती है।
क्या है पुरातत्व विभाग का नियम
पुरातत्व विभाग के नियम हैं कि भारतीय संस्कृति से जुड़ी हर प्राचीन कलाकृति, मूर्ति या जानकारी को उसके मूल स्वरूप में ही रखा जाएगा। इसमें किसी तरह की छेड़छाड़ या बदलाव करने से इसका पुरातन महत्व खत्म हो जाता है। दरअसल इसमें एक मैसेज छिपा है कि अतीत में यहाँ क्या हुआ था।
Created On :   24 Feb 2021 2:53 PM IST