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हौसले को सलाम : तलाक के बाद पर्यवेक्षक बनी तब्बसुम, जानिए पूरी कहानी
डिजिटल डेेस्क बालाघाट । कुछ लोगों के लिए जीवन खुशियों की आसान राह पर चलने वाला सफर होता है लेकिन कुछ के लिए जीवन की राह कठिन संघर्षों से भरी होती है और उनकी राह पर कांटे ही कांटे होते है। हिम्मत और मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाया जा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है तब्बसुम खान ने । इन महिलाओं ने अपने कठिन संघर्ष से सफलता हासिल कर समाज को भी नई राह दिखाई है।
इंदिरा नगर बालाघाट की रहने वाली 30 वर्षीय तब्बसुम खान का जीवन बहुत उतार चढ़ाव से भरा रहा है। गरीब परिवार में जन्मी तब्बसुम के पिता अतिक खान मजदूरी कर परिवार का पालन-पोषण करते थे। तब्बसुम की 12 वीं तक की पढ़ाई होने के बाद 19 वर्ष की आयु में 11 अप्रैल 2005 को उसका निकाह कर दिया गया था। उसका पति पढ़ा लिखा नहीं था, जिसके कारण उसकी सोच रूढ़ीवादी ही बनी रही और वह तब्बसुम को दहेज के लिए प्रताडि़त करने लगा। तब्बसुम रोज की प्रताडऩा से तंग आ गई और उसने आत्महत्या करने का मन बना लिया। उसने आत्म हत्या करने के पहले अपनी मां को लिखकर सारी समस्या से अवगत कराया।
तब्बसुम की मां ने बेटी की चि_ी को पढ़ा तो उसके भी होश गुम हो गये। उसकी मां ने हिम्मत कर उसे ससुराल से अपने घर ले गयी। जिसके बाद जनवरी 2006 में उसका तीन तलाक के माध्यम से तलाक हो गया। 20 वर्ष की आयु में तलाक हो जाना तब्बसुम के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं था। तलाक के बाद उसने मन बनाया कि वह अपनी पढ़ाई को पूरा करेगी और कुछ करके दिखायेगी।
तब्बसुम ने उसे शादी में मिले सामान को बेचकर अपनी पढ़ाई की फीस का इंतजाम किया और वर्ष 2008 में प्रायवेट से बी.ए. कर लिया। स्नातक होने के बाद वर्ष 2009 में उसका आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के पद पर चयन हो गया। कार्यकत्र्ता के मानदेय से उसका काम अब कुछ आसान हो गया था। अपनी मां के साथ रहते हुए तब्बसुम लगाताार पढ़ाई करते हुए अपना क रियर बनाने मेहनत करती रही उसकी मेहनत रंग लाई और वह समाज कल्याण विभाग में पर्यवेक्षक चुन ली गई ।
Created On :   27 Sept 2017 1:33 PM IST