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सुधा भारद्वाज को हाईकोर्ट से मिली जमानत, आठ अन्य के आवेदन खारिज
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने बुधवार को भीमा-कोरेगांव एल्गार परिषद मामले में आरोपी सुधा भारद्वाज को जमानत प्रदान कर दी है। जबकिइसी मामले के आठ आरोपियों के जमानत आवेदन को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने जिन आरोपियों को जमानत देने से मना किया है उसमें आरोपी सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, डाक्टर शोमा सेन, महेश राऊत, पी.वरवरा राव, वरनन गोंस्लविज व अरुण फरेरा का नाम शामिल है।
न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) की विशेष अदालत को भारद्वाज की जमानत की शर्तों को तय करने को कहा है। इसके बाद भारद्वाज की रिहाई की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा। खंडपीठ ने चार अगस्त को सुनवाई के बाद भारद्वाज के जमानत आवेदन पर फैसला सुरक्षित कर लिया था। जिसे खंडपीठ ने बुधवार को सुनाया है। भारद्वाज साल 2018 से मुंबई के भायखला महिला जेल में गिरफ्तारी के बाद से बंद है।
भारद्वाज ने अधिवक्ता युग चौधरी के माध्यम से कोर्ट में जमानत आवेदन दायर किया था। आवेदन में भारद्वाज ने दावा किया था कि उन्हें हिरासत के लिए विशेष न्यायाधीश के सामने पेश करने की बजाय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश केडी वदने के सामने पेश किया गया था। अधिवक्ता चौधरी ने खंडपीठ को बताया था कि विशेष न्यायाधीश न होने के बावजूद न्यायाधीश वदने अदालती आदेश पर विशेष न्यायाधीश के रुप में हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही न्यायाधीश वदने ने विशेष न्यायाधीश न होने के बाद भी पुणे पुलिस की ओर से दायर किए गए आरोपपत्र का संज्ञान लिया। इसके साथ ही उनके खिलाफ 90 दिन के भीतर आरोपपत्र दायर नहीं किया गया है। इसलिए मेरी मुवक्किल (भारद्वाज) डिफाल्ट जमानत पाने की हकदार है।
खंडपीठ ने अपने 120 पन्ने के आदेश में साफ किया है कि अवैध गतिविधि प्रतिंबंधक कानून व आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) के तहत आरोपी को हिरासत में रखने व मामले को लेकर आरोपत्र दायर करने के लिए अतिरिक्त समय देने का आदेश सक्षम अधिकार क्षेत्र रखनेवाली कोर्ट ने नहीं जारी किया है। इसके अलावा भारद्वाज के खिलाफ तय समय में आरोपपत्र भी दायर नहीं हुआ है। भारद्वाज डिफाल्ट बेल पाने की शर्तों को पूरा करती हैं। क्योंकि यदि तय समय में आरोपपत्र दायर नहीं होता है तो आरोपी को हिरारसत में रखना मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। खंडपीठ ने हालांकि स्पष्ट किया है कि न्यायाधीश के वदने के आदेश के चलते मामले की कार्यवाही अर्थहीन होती है।
Created On :   1 Dec 2021 8:38 PM IST