आजादी के 70 साल बाद भी नहीं मिलीं सुविधाएं, जान हाथ पर रख मुख्यमार्ग पर पहुंचते हैं ग्रामीण

bineki village have no any Facilities after 70 years of freedom
आजादी के 70 साल बाद भी नहीं मिलीं सुविधाएं, जान हाथ पर रख मुख्यमार्ग पर पहुंचते हैं ग्रामीण
आजादी के 70 साल बाद भी नहीं मिलीं सुविधाएं, जान हाथ पर रख मुख्यमार्ग पर पहुंचते हैं ग्रामीण

डिजिटल डेस्क नरसिंहपुर । देश आजाद हुए 70 साल हो गए, तमाम विकास के नजारे और दावों के बीच नरसिंहपुर जिले का ग्राम बिनेकी आज भी जिले से कटा हुआ है। गांव में पहुंचना है तो 10 किलोमीटर लंबी पहाड़ी से पगडंडीनुमा रास्ता तय करना होगा। दूसरा विकल्प है छिंदवाड़ा जिले के हर्रई के समीप स्थित चिलका गांव से होकर यहां पहुंचे। यहां अस्थाई लकड़ी का जर्जर पुल ही आवागमन का साधन है। इस पुल से गुजरने के लिए मजबूत दिल चाहिए, दो पहाडिय़ों को जोडऩे वाले इस पुल के नीचे से शक्कर नदी की तेज धारा बहती है। गांव में आधारभूत सुविधाओं की बात तो छोडि़ए जीवन यापन करना भी बेहद कठिनाईपूर्ण है।
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी महज 139थी । जनपद पंचायत करेली के अधीन बिनेकी गांव बासादेही ग्राम पंचायत के कार्यक्षेत्र में है। पंचायत में शामिल गांवों को सरकारी प्रयासों के दावे बिनेकी गांव को देखकर कोरी बातें नजर आते हैं।
चढऩा पड़ता है पहाड़
जिल की सीमाओं की बात करें तो यह गांव नरसिंहपुर जिले का है। गांव जाने कोई सड़क नहीं है। जाना जरूरी है तो पहाड़ी चढ़ो अथवा 45 किलोमीटर दूर छिंदवाड़ा के हर्रई नगर पहुंचकर फिर चिलका होते हुए पैदल गांव का रास्ता तय करो। राशन, बैंक, स्वास्थ्य जैसी सेवाओं को पाने के लिए बिनेकी के लोगों को यह दुखद स्थिति का सामना रोज करना मजबूरी है।
मजबूत दिल वाले करते हैं पुल पार
गांव पहुंचने के लिए दो पहाड़ों के बीच बहती शक्कर नदी पर अस्थायी लकड़ी का पुल बनाया है। सीधे खड़े होकर पुल पार करना संभव नहीं है। रेंगते हुए पुल से गुजना ही इकलौता साधन है, यह वही कर सकते हैं जिनका दिल मजबूत हो। यह स्थिति साधारण दिनों की है, बरसाती मौसम में पुल पा करना किसी बड़े खतरे से कम नहीं है। इस पुल के लिए लकड़ी रखी रहती है, पुल पार करने के लिए लोग लकड़ी जमाते हैं फिर पार होते हैं।
सरकारी इमारत के नाम पर केवल स्कूल
बिनेगी में सरकारी तौर पर सड़क, बिजली, पानी कुछ भी नहीं है। मात्र एक प्राथमिक स्कूल है जिसमें 13 बच्चे पढ़ते हैं। पढ़ाने के लिए दो शिक्षक है जो बारी-बारी सप्ताह में तीन-तीन दिन के लिए जाते हैं, क्योंकि आवागमन में लगने वाली ताकत के बाद एक दिन आराम जरूरी ही है।
अधिकारी जनप्रतिनिधि कतराते हैं जाने से
दुर्गम हालात और सुविधाओं के टोटे के चलते अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी गांव जाने से कतराते हैं। सरकार द्वारा योजनाओं की मैदानी हकीकत जानने के निर्देश पर प्रशासनिक अमला दौरा करता है लेकिन इस गांव में नहीं जाता। यही स्थिति जनप्रतिनिधियों की है। गांव के लोग बताते हैं कि यहां नेता तो वोट मांगने भी नहीं आते। हालांकि विधायक बनने के बाद अपने कार्यकाल में विधायक सुनील जायसवाल जरूर यहां पहुंचे थे, जिन्होंने सोलर लाइट गांव को प्रदान किए थे।
महिला प्रधान माहौल
गांव के वाशिंदों की जिंदगी देखी जाए तो यहां महिला प्रधान माहौल दिखाई देता है। महिलाएं 10 किलोमीटर पहाड़ी उतरकर मजदूरी करने आती है, पुरूष वर्ग घर पर काम करता है। यहां कोदो कुटकी की खेती होती है और वनोपज का संग्रहण किया जाता है।
पुनस्र्थापना ही विकल्प
गांव की दुर्गम स्थिति इसके विकास में बाधक है, गांव की बसाहट को पहाड़ी से नीचे लाकर बसाना अथवा छिंदवाड़ा जिले के चिलका गांव में इन्हें शामिल कर विकास की धारा में लाना एक बेहतर विकल्प है, लेकिन इस मुद्देपर अभी तक गौर भी नहीं किया गया है।
इनका कहना है
नयाखेड़ा बासादेही पंचायत के अन्तर्गत आने वाले बिनेकी गांव एक हिसाब से पहुंचविहीन गांव है। जनपद पंचायत द्वारा यहां निवास करने वाले आदिवासी परिवारों के लिए 16 आवास बनाने का काम शुरू किया है। जिसमें से 8 लगभग लेंटर लेबल पर हैं। यहां पर भवन निर्माण के लिए मटेरियल पहुंचाने में काफी मशक्कत करना पड़ी। यहां व्यवस्थित आवागमन के लिए हर्रई से होकर जाने वाले मार्ग पर पुल निर्माण ही एकमात्र विकल्प है, लेकिन यह पंचायत या जनपद स्तर का काम नहीं है। गांव की स्थिति सभी के संज्ञान में है।
राजीव लंघाटे सीईओ जनपद पंचायत करेली

 

Created On :   23 Oct 2017 11:52 AM GMT

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