Coronavirus in Bundelkhand: लॉकडाउन से घुमंतुओं के सामने रोजी-रोटी का संकट!

Coronavirus in Bundelkhand: Lockdown threat to livelihood in front of nomads!
Coronavirus in Bundelkhand: लॉकडाउन से घुमंतुओं के सामने रोजी-रोटी का संकट!
Coronavirus in Bundelkhand: लॉकडाउन से घुमंतुओं के सामने रोजी-रोटी का संकट!

डिजिटल डेस्क, बांदा (उप्र)। देश में लागू लॉकडाउन भले ही कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने का सरल उपाय साबित हो जाए, लेकिन इसने बुंदेलखंड में घुमंतू समुदाय के लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा कर दिया है। सरकारी अमला भले ही हर व्यक्ति को भोजन देने का दावा कर रहा है, लेकिन तल्ख सच्चाई यह कि कई कोशिशों के बाद भी इन सभी तक सरकारी लंच पैकेट रविवार शाम पहुंच पाए, वह भी आधे लोगों को मिल सके।

सभी काम-धंधे ठप हो गए
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के अतर्रा कस्बे के मुहल्ले मूसानगर और राजा तालाब में खुले आकाश के नीचे बरसाती की पन्नी (पॉलीथिन) से झुग्गी-झोपड़ी बनाकर नीतू (48), प्रीति (22), सावित्री (46), मुन्ना (37), देसी कुचबंधिया (65), संती (44), कलुइया (46), दुर्विजय (62) और माया (48) जैसे करीब 30 घुमंतू परिवार (भाट, कुचबंधिया) पिछले कई सालों से यहां गांव-देहात में खजूर का झाड़ू बेचकर और सिलबट्टे (सिलौटी) की टंकायी कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे, लेकिन कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते पिछले 25 मार्च से लागू 21 दिवसीय लॉकडाउन से इनके सभी काम-धंधे ठप हो गए और इनके सामने दो वक्त की रोटी का सकंट पैदा हो गया है।

लॉकडाउन से गांवों में ग्रामीण घुसने नहीं देते
65 वर्षीय बुजुर्ग देसी कुचबंधिया बताता है कि उसका परिवार कई सालों से यहां पन्नी की झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रह रहा है और खजूर की कूंच (झाड़ू) व छींका बनाकर गांव-देहात में बेचकर गुजरा कर लेते थे, लेकिन कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन से गांवों में ग्रामीण अब घुसने नहीं दे रहे। स्थित यह बन गई है कि कई दिनों से झोपड़ी में चूल्हा नहीं जले हैं। उसने बताया कि कई बार तहसील जाकर अधिकारियों से अपनी भूख सुनाई, लेकिन कोई मदद नहीं मिली।

गांव वालों ने दुत्कार कर भगा दिया
अपने छह बच्चों के साथ रह रही नीतू (46) बताती है कि भूख से बिलबिला रहे बच्चों को लेकर रविवार सुबह पड़ोसी गांव बरेंहड़ा गई थी, लेकिन गांव वाले दुत्कार कर भगा दिए हैं। सरकारी मदद भी कुछ नहीं मिल रही है। नीतू ने बताया कि गांवों में सिलबट्टे टांककर कुछ अनाज मिल जाता था, अब गांवों में नहीं घुसने दिया जा रहा है।

लॉकडाउन की वजह से बच्चे भूखों मर रहे है
अतर्रा कस्बे के मूसानगर मुहल्ले में रह रही महोबा जिले की संती (42) बताती है कि वह अपने पांच बच्चों के साथ पिछले पांच साल से यहां झोपड़ी बनाकर रह रही है, राशन कार्ड तक नहीं बना है। लॉकडाउन की वजह से बच्चे भूखों मर रहे हैं। उसने बताया कि रविवार शाम कुछ अधिकारी उनके कुनबे में आये थे और 10 लोगों के बीच पांच सरकारी लंच पैकेट देकर गए हैं, जिन्हें बच्चों में बांट दिया था, बाकी ऐसे सो गए।

अतर्रा कस्बे में भी यही हाल
कमोवेश यही स्थित इस अतर्रा कस्बे में बसे सभी 30 परिवारों के करीब एक सौ लोगों की है। लॉकडाउन की वजह से इन सभी के सामने रोटी का संकट है। अतर्रा के तहसीलदार सुशील कुमार सिंह से सोमवार को जब इन घुमंतू समुदाय की भुखमरी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक घुमंतुओं के सामने रोटी के संकट की जानकारी नहीं थी। रविवार शाम को कुछ मीडियाकर्मियों से पता चला, तब वहां जाकर लंच पैकेट बंटवाये गए हैं। यहां अनाज की कमी नहीं है, सभी को भोजन उपलब्ध कराया जाएगा।

Created On :   13 April 2020 3:19 PM GMT

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