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गोबर के कंडे बने आय का जरिया, बिना दुधारू गौवंश भी हो उपयोगी
डिजिटल डेस्क, कामठी। गौवंश संरक्षण व संवर्धन के लिए चलाए जा रहे अभियान का असर अब ग्रामीण क्षेत्रों में दिखने लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर से कंडा बनाने का काम अब धीरे-धीरे व्यवसाय का रूप लेने लगा है। इससे गौवंश के संरक्षण को बल मिलेगा, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण रक्षा में भी मदद मिलेगी। हालांकि अभियान के बारे में कामठी तहसील के किसानों को अधिक जानकारी नहीं होने से वे इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। ऐसे में कामठी तहसील के गांवों के किसानों को इस योजना को लेकर जनजागृति की मांग की जा रही है, ताकि तहसील के पशुपालक और किसान योजना से लाभन्वित हो सके। किसान जैविक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गोबर से कंडा बनाने का काम अब व्यवसाय का रूप लेने लगा है. गांव-गांव में कंडा बनाने का कार्य पहले से ही चलता था, जो घरेलू उपयोग तक सीमित था, लेकिन जन जागरण अभियान के बाद से इसने व्यवसायिक रूप भी ले लिया है। जागरूकता से स्थिति ऐसी बनते जा रही है कि कंडा खरीदने वाले कुछ एजेंट कंडों को ग्रामों से खरीद कर बड़े शहरों में आपूर्ति करने लगे हैं। इससे कंडों की मांग बढ़ने लगी है। एजेंट गांवों में घूमकर कंडे खरीदते हैं, इससे ग्रामीणों की अधिक कमाई होने लगी है। कुछ ग्रामीणों ने इसे अपने स्थायी रोजगार के रूप में अपना लिया है।
पूजा से लेकर अंत विधि तक होता है उपयोग
ग्रामीण पंरपरा के अनुसार दशहरा उत्सव के बाद गोबर से कंडा बनाने का काम शुरू होता है, जो गर्मी के अंत तक चलता है। कंडा बनाने का काम लगभग 8 माह जारी रहता है। वर्तमान में बड़े पैमाने पर कंडा बनाने का काम करने वाले सीमित संख्या में हैं। लगातार बाहर से आ रहे खरीदारों की संख्या इसी प्रकार रही, तो यह एक बड़ा उद्योग बन सकता है। स्थानीय स्तर पर कंडों की मांग ईंट-भट्ठी व घरेलू उपयोग तक ही सीमित थी। अब कंडों को बड़े शहरों में ले जाकर बेचा जा रहा हैं। शहरों में भी कंडों पर भोजन बनाने का क्रेज बढ़ा है। वहीं मुक्तिधामों में भी लकड़ी के स्थान पर कंडों से अंतिम संस्कार के प्रति रुझान बढ़ा है। लकड़ी के स्थान पर कंडों से अंतिम संस्कार सस्ता व सुविधाजनक रहता है। इससे एक चौथाई खर्च से काम हो जाता है।
ईंधन के रूप में पेड़ों पर निर्भरता होगी कम : ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कंडों का निर्माण किया जाता है। व्यावसायिक उत्पादन होने पर इसकी उपलब्धता सहज व सुगम होगी। यह लकड़ी की अपेक्षा सस्ता भी होता है, जिससे लकड़ी के विकल्प के रूप मे कंडों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए तो जलाऊ संसाधन के लिए पेड़ों पर निर्भरता कम होगी, जिससे पेड़ों की कटाई भी कम होगी और पर्यावरण की रक्षा भी होगी। वर्तमान में कंडों की मांग व बिक्री कम है, लेकिन उम्मीद है कि आने वाले समय में इसकी मांग बढ़ेगी। इसके उपयोग को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। कंडा गौवंशों से मिलने वाला सीधा उत्पाद है। इसे प्रत्येक गौ- पालक कर सकता है। किसी तकनीक या लैब परीक्षण जैसे जटिल प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होने से सभी के लिए सहजता से संभव है।
Created On :   6 Jun 2022 6:11 PM IST