अदालतों पर मुकदमों का भार - कई मामलों के निपटारे में ही लग जाएंगे 30 साल

‌Burden of cases is increasing on the courts - it will take 30 years to settle many cases
अदालतों पर मुकदमों का भार - कई मामलों के निपटारे में ही लग जाएंगे 30 साल
रिपोर्ट में खुलासा  अदालतों पर मुकदमों का भार - कई मामलों के निपटारे में ही लग जाएंगे 30 साल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। महानगर में कोई नया आपराधिक मामला दर्ज न हो तो भी मौजूदा गति से अब तक दर्ज मामलों का निपटारा होने में 30 साल का समय लग जाएगा। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की कानून व्यवस्था को लेकर प्रजा फाउंडेशन की जारी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज 1 लाख 26 हजार 921 मामलों में से साल 2020 के आखिर तक 76 फीसदी यानी 96 हजार 57 मामलों की सुनवाई जारी है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में हर साल औसत सिर्फ 2550 मामलों में या तो फैसले हुए हैं या शिकायतें वापस ले ली गईं हैं। जबकि सालभर में (वर्ष 2020) 51 हजार 68 मामले दर्ज हुए थे। प्रजा फाउंडेशन के ट्रस्टी निताई मेहता ने कहा कि अदालतों में जिन मामलों की सुनवाई होती है उनमें पुलिस आरोप साबित करने में भी फिसड्डी साबित हो रही है। 

कम हुआ है दोषसिद्धी का प्रमाण

गंभीर अपराधों में दोषसिद्धी की दर पिछले तीन सालों में 20 फीसदी से गिरकर 15 फीसदी पहुंच गई है। साल 2020 में गंभीर मामलों में भी 85 फीसदी आरोपी बरी हो गए। वहीं साल 2020 में जिन 77 हजार 899 मामलों की सुनवाई अदालतों में शुरू हुई, साल खत्म होने के बाद भी उनमें से 99 फीसदी मामलों की सुनवाई जारी थी जबकि कुल 2 लाख 49 लाख 27 मामलों में भी 98 फीसदी की सुनवाई लंबित थी। 

महिलाओं, बच्चों को भी न्याय नहीं

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध के भी ज्यादातर मामलों की छानबीन लंबित है। आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध के 80 फीसदी जबकि बच्चों के खिलाफ हुए अपराध के 77 फीसदी मामलों की छानबीन पूरी नहीं हो पाई थी जबकि 19 फीसदी मामलों में ही पुलिस आरोपपत्र दाखिल कर सकी थी। साल 2020 में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अत्याचार के जिन 450 मामलों में फैसले आए उनमें 27 फीसदी में ही आरोपियों को सजा हुई और 73 फीसदी आरोपी बरी हो गए। साल 2020 के अंत तक पाक्सो कानून से तहत दर्ज मामलों मे से भी 69 फीसदी की जांच प्रलंबित थी। पुलिस औसत महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों में 27 फीसदी और बच्चों के खिलाफ हुए अपराध में 40 फीसदी मामलों में दोष साबित कर पाती है। 

पुलिसवालों की कमी भी बनी परेशानी

प्रजा फाउंडेशन के रिसर्च एंड डेटा प्रमुख योगेश मिश्रा ने कहा कि पुलिस वालों, न्यायाधीशों और सरकारी वकीलों की कमी के चलते भी हालत खराब हुए हैं। फिलहाल मुंबई पुलिस के कुल 51 हजार 58 मंजूर पदों में से 19 फीसदी रिक्त हैं और कुल पुलिसवालों की संख्या 41788 ही है। इसका असर छानबीन और कानून व्यवस्था पर पड़ता है। इसके अलावा मामलों की निगरानी की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों की संख्या भी मंजूर पदों से 33 फीसदी कम है। इसके अलावा न्यायाधीशों की 30 फीसदी और सरकारी वकीलों की संख्या 33 फीसदी कम है। 


 

Created On :   8 Dec 2021 9:46 PM IST

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