बयान दर्ज कराने में हुई देरी के आधार पर अस्वीकार नहीं कर सकते मुआवजे का दावा

Cannot deny compensation claim on the basis of delay in recording statement
बयान दर्ज कराने में हुई देरी के आधार पर अस्वीकार नहीं कर सकते मुआवजे का दावा
हाईकोर्ट बयान दर्ज कराने में हुई देरी के आधार पर अस्वीकार नहीं कर सकते मुआवजे का दावा

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ बयान दर्ज करने में हुई देरी के आधार पर मुआवजे के दावे को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने यह बात सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले 18 साल के सुनील जमदाडे नाम के युवक के अभिभावकों को आठ लाख 39 हजार रुपए मुआवजा प्रदान करते हुए कही है। 

सांगली का रहने वाला जमदाडे नवंबर 2010 में अपने दोस्त सुशांत के साथ मोटरसाइलकिल की पिछली सीट पर बैठ कर कही जा रहा था। तभी एक ट्रक ने मोटरसाइकिल को ठोकर मार दी। इस सड़क दुर्घटना में लगी चोट के चलते जमदाडे की मौत हो गई। इसके बाद जमदाडे के माता-पिता ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल में मुआवजे के लिए दावा दायर किया। ट्रिब्यूनल ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद बीमा कंपनी को मृतक के माता-पिता को सात लाख 44 हजार रुपए मुआवजे के रुप में भुगतान करने का निर्देश दिया। ट्रिब्यूनल के इस आदेश के खिलाफ श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी ने हाईकोर्ट में अपील की। 

न्यायमूर्ति अनूजा प्रभुदेसाई की खंडपीठ के सामने बीमा कंपनी की अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान बीमा कंपनी ने दावा किया कि इस पूरे प्रकरण में ट्रक चालक की कोई गलती नहीं थी। सड़क दुर्घटना में ट्रक की कोई भूमिका नहीं थी। बाइक चालक की लापरवाही से दुर्घटना हुई है। इस मामले में दुपहिया वाहन चालक का बयान 6 माह बाद दर्ज किया गया है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा ट्रिब्यूनल ने जो मुआवजा तय किया था वह काफी ज्यादा है। वहीं मृतक के अभिभावकों की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल का बेटा ही घर में इकलौता कमानेवाला था। वह पानीपुरी की दुकान पर काम करता था। 18 साल के बेटे के न रहने से मेरे मुवक्किल पूरी तरह से निराश्रित हो गए हैं। 

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने न सिर्फ एक लाख रुपए के मुआवजे की राशि को बढा दिया बल्कि यह माना कि ट्रक के चलते सड़क दुर्घटना हुई है। इस दुर्घटना में मोटरसाइकिल चालक को भी चोट लगी है। हालांकि उसकी जान बच गई है। ऐसे में भले ही उसका (मोटरसाइकिल चालक) बयान 6 माह बाद दर्ज किया गया फिर भी उसके बयान को खारिज नहीं किया जा सकता है। इस तरह से न्यायमूर्ति ने बीमा कंपनी की अपील को खारिज कर दिया। 

 

Created On :   9 Aug 2022 7:18 PM IST

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