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धारा 498ए से जुड़े अपराध को कंपाउंडेबल बनाने पर केंद्र सरकार करे विचार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा है कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए को कंपाउंडेबल अपराध (समझौते से मामले को सुलझाना) बनाने पर विचार करे। ताकि पक्षकार हाईकोर्ट आए बिना मामले को मैजिस्ट्रेट कोर्ट में आपसी सहमति से सुलझा सके। पति के रिश्तेदारों द्वारा जब पत्नी पर क्रूरता बरती जाती है तो धारा 498ए के तहत मामला दर्ज किया जाता है। हाईकोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय आने में पक्षकारों को न सिर्फ दिक्कतों का सामना करना पड़ता है बल्कि उनका समय व पैसा भी नष्ट होता है। सबसे महत्वपूर्ण हाईकोर्ट का वक्त भी बरबाद होता है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे व न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि हाईकोर्ट में रोजना आपसी सहमति के तहत 498ए के मामलों को रद्द करने के लिए दस से अधिक याचिकाएं दायर की जाती है। क्योंकि इस धारा को नान कंपाउंडेबल अपराध बनाया गया है। जो कि बिल्कुल भी समझ से परे प्रतीत होता है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में 23 सितंबर 2022 को आदेश जारी किया था। लेकिन फैसले की प्रति बुधवार को उपलब्ध हुई है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दत्ता माने ने पक्ष रखा था।
खंडपीठ ने यह फैसला एक व्यकित की ओर से भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया है। यह एफआईआर याचिकाकर्ता की पत्नी ने उसके घरवालों पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए पुणे के हडप्सर पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई थी। नियमानुसार यदि कोई अपराध नान कंपाउंडेबल है और मामले से जुड़े पक्षकार आपासी सहमति से मामले को सुलझाने की इच्छा रखते है तो उन्हें हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ती है और सुनवाई के दौरान पक्षकारों को हाईकोर्ट में भी उपस्थित रहना पड़ता है। ऐसे में यदि धारा 498ए के कंपाउंडेबल अपराध बनाया जाता है तो इससे न सिर्फ पक्षकारों को मदद मिलेगी बल्कि अदालत का समय भी बचेगा। खंडपीठ ने एडिनल सालिसिटर को शीघ्रता केंद्र सरकार के संबंधिक मंत्रालय के समक्ष इस मामले को रखने को कहा है। क्योंकि राज्य सरकार ने इस विषय से संबंधित एक विधेयक को पारित किया था। जिसे बाद में राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। 2021 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से इस बारे में कुछ स्पष्टीकरण मांगा था। जो कि भेज दिया गया था। विधि आयोग की रिपोर्ट में भी 498ए को कंपाउंडेबल अपराध बनाने की सिफारिस की गई थी। खंडपीठ ने नेशनल क्राइन रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के आंकड़ो का हवाला देते हुए कहा है कि साल 2020 में धारा 498ए के तहत 1,11,549 मामले दर्ज किए गए थे। इसमें से 16151 मामले पुलिस ने प्रारंभिक जांच के बाद किसी न किसी कारण के चलते बंद कर दिए। इस धारा के तहत एक लाख 20 हजार लोगों की गिरफ्तारी की गई। इसमें से सिर्फ 3425 लोगों को सजा हुई जबकि 14340 लोग बरी हो गए। फिर भी धारा 498ए को कंपाउंडेबल नहीं बनाया गया है।
Created On :   12 Oct 2022 9:03 PM IST